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ट्रांसजेंडर को केबिन क्रू की नौकरी क्यों नहीं: सुप्रीम कोर्ट
पहली नज़र में देखने पर वो एयर होस्टेस की नौकरी के लिए फिट नज़र आती हैं. लेकिन एयर इंडिया ने उन्हें नौकरी नहीं दी. वजह ये कि वो ट्रांसजेंडर हैं.
नई दिल्ली: ट्रांसजेंडर को केबिन क्रू की नौकरी क्यों नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने एयर इंडिया और नागरिक उड्डयन मंत्रालय से ये सवाल पूछा है. नौकरी के लिए अयोग्य ठहराई गई शानवी पोनुसामी की याचिका पर दोनों को 4 हफ्ते में जवाब देना है.
शानवी ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है. पहली नज़र में देखने पर वो एयर होस्टेस की नौकरी के लिए फिट नज़र आती हैं. लेकिन एयर इंडिया ने उन्हें नौकरी नहीं दी. वजह ये कि वो ट्रांसजेंडर हैं. उन्हें बताया गया कि केबिन क्रू की नौकरी में तीसरे लिंग की श्रेणी नहीं बनाई गई है.
एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए शानवी ने बताया कि वो पहले एक निजी कंपनी के लिए चेन्नई एयरपोर्ट में ग्राउंड स्टाफ का काम कर रही थीं. एयर इंडिया में केबिन क्रू की वैकेंसी निकलने पर उन्होंने भी आवेदन दिया. उनसे कहा गया कि वो बतौर महिला फॉर्म भरें.
शानवी के मुताबिक उन्होंने इस नौकरी के लिए 4 बार कोशिश की. हर बार परीक्षा में अच्छे अंक मिले. लेकिन उन्हें नौकरी नहीं दी गई. उन्हें बताया गया कि इस नौकरी में तीसरे लिंग की श्रेणी नहीं रखी गई है. उन्होंने 2 साल से ज़्यादा समय तक नागरिक उड्डयन मंत्रालय और एयर इंडिया के चक्कर लगाए. लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी.
गौरतलब है कि 15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे सेक्स का दर्ज़ा दिया था. कोर्ट ने हर सरकारी फॉर्म में स्त्री और पुरुष के अलावा तीसरे लिंग का भी कॉलम रखने को कहा था. साथ ही, ट्रांसजेंडर्स को सामाजिक रूप से पिछड़ा मानते हुए शिक्षा और नौकरी में ओबीसी श्रेणी के तहत 0.5 फीसदी आरक्षण देने को भी कहा था. शानवी ने अपनी याचिका में इस फैसले का भी हवाला दिया है.
याचिका में कहा गया है कि किन्नर वर्ग सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहद कमजोर है. उसे समाज और सरकार से प्रोत्साहन की ज़रूरत है. लेकिन कोर्ट के फैसले के बावजूद व्यवस्था में बैठे लोग बदलाव को तैयार नज़र नहीं आते.
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अनिल चमड़ियावरिष्ठ पत्रकार
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