Explained: आज राज्यसभा में पेश होगा ट्रांसजेंडर बिल 2019, जानिए इसके बारे में A टू Z
Transgender Persons (Protection of Rights) Bill, 2019: आज राज्यसभा में ट्रांसजेंडर बिल 2019 पेश किया जाएगा. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है इस बिल में...
Transgender Persons (Protection of Rights) Bill, 2019: संसद के शीतकालीन सत्र में आज राज्यसभा में एक बेहद खास बिल पेश किया जाएगा. यह बिल ट्रांसजेंडर बिल है. इस बिल में ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों की बात की गई है. उभयलिंगी या ट्रांसजेंडर बिल संसद के पिछले सेसन में लोकसभा में पास हुआ था. अब अगर यह बिल राज्यसभा में भी सर्वसमत्ति से पास हो गया तो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों को बल मिलेगा. अब चूकि आज इस बिल को राज्यसभा में पेश किया जाएगा तो आइए जान लेते हैं इस बिल से जुड़ी सभी छोड़ी-बड़ी जरूरी बातें क्या है..
क्या है ट्रांसजेंडर बिल 2019
ट्रांसजेंडर बिल 2019 का मतलब है कि ट्रांसजेंडर लोगों के साथ भेदभाव ख़त्म हो और उन लोगों को भी बराबर सम्मान मिले, समाज में उनके अधिकार सुरक्षित हो सकें. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का कहना है कि इस बिल के पास होने के बाद ट्रांसजेंडर को शिक्षा, नौकरी, स्वास्थ्य, सामाजिक सुविधाओं के लाभ, आन्दोलन के अधिकार, संपत्ति कब्ज़ा करने या किराए पर लेने के अधिकार, सरकारी या प्राइवेट ऑफिस में किसी पोस्ट पर बैठने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
इस बिल के पास हो जाने से एक और लाभ ट्रांसजेंडर लोगों को होगा और वह यह है कि उनके साथ किसी भी तरह का लैंगिक भेदबाव नहीं किया जाएगा. इस बिल में ये भी प्रावधान है कि ट्रांसजेंडर को उनकी लैंगिक पहचान के आधार पर घर या गांव से निकाला नहीं जा सकता है. यही हमारे देश का संविधान भी कहता है. संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए. समानता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14-18 में उल्लेखनीय है. भारतीय संविधान के आर्टिकल 15 कहता है कि, '' धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर राज्य अपने किसी भी नागरिक से कोई भेदभाव नहीं करेगा.'' हालांकि ट्रांसजेंडर लोगों के साथ कई स्तर पर भेदभाव होता रहा है.
ट्रांसजेंडर लोगों के लिए बना कानून तो प्रताड़ित करने पर मिलेगा दंड
इस बिल के कानून बन जाने के बाद अगर शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या भावुकता के आधार पर अगर किसी ट्रांसजेंडर का शोषण किया जाता है तो ऐसा करने वाले व्यक्ति के लिए सख्त सजा का प्रावधान है. ऐसा करने पर छः से दो साल की सज़ा और फाइन लगाने का प्रावधान है.
इस बिल पर क्यों हुआ था विवाद
इसी साल अगस्त में यह बिल लोकसभा में पास हुआ था. इस बिल के पास होने के साथ ही इसपर जमकर बवाल होना शुरू हो गया था. दरअसल जिस दिन ये बिल लोकसभा में पास हुआ, उस दिन को ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़े लोगों ने “जेंडर जस्टिस मर्डर डे” कहा. कहा कि इस दिन लैंगिक न्याय की हत्या हुई.
ऐसी इसलिए हुआ क्योंकि इस बिल में इंटरसेक्स लोगों को भी ट्रांसजेंडर की श्रेणी में गिना गया. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि आखिर यह ‘इंटर-सेक्स’ व्यक्ति कौन होता है. इसका जवाब है कि पैदाइश के व़क्त जिस व्यक्ति के निजी अंगों से ये साफ़ नहीं होता कि वो पुरुष हैं या औरत, उन्हें ‘इंटर-सेक्स’ कहते हैं. जबकि ट्रांसजेंडरशिप और समलैंगिकता जन्म के बाद अपने रहन-सहन और साथी के चुनाव से निर्धारित होती है. यही कारण है कि ट्रांसजेंडर समुदाय का कहना है कि सभी इंटरसेक्स को समलैंगिक समुदाय में शामिल नहीं किया जा सकता है.एक और वजह है जिसके कारण इस बिल का विरोध हुआ था. वह यह है कि इस बिल में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर समुदाय को सरकारी अधिकारी और डॉक्टर की मौजूदगी में सेक्सुएलिटी का प्रमाणपत्र लेना होगा, जबकि सेक्सुएलिटी स्वतंत्रता का मामला है.
वहीं अगर कोई समलैंगिक या ट्रांसजेंडर किसी दबाव की वजह से अपना घर छोड़ना चाहता है, वो घर छोड़कर अपने समुदाय के पास नहीं जा सकता है. उसे पहले अदालत में जाना होगा, जहां से अदालत उन्हें पुनर्वास केंद्र भेज सकती है. इस तथ्य को भी समलैंगिक समुदाय ने मानवाधिकार के उल्लंघन के तौर पर देखा.