नई दिल्लीः देश के निजी क्षेत्र के अस्पतालों में लोगों को इलाज कराना सरकारी अस्पतालों की तुलना में सात गुना अधिक खर्चीला पड़ता है. यह बात राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में सामने आई है. इसमें प्रसव के मामलों पर खर्च के आंकड़े शामिल नहीं किए गए हैं. यह आंकड़ा जुलाई-जून 2017-18 की सर्वेक्षण पर आधारित है.


राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (एनएसएस) की 75वें दौर की ‘परिवारों का स्वास्थ्य पर खर्च’ संबंधी सर्वेक्षण रिपोर्ट शनिवार को जारी की गई. इसके अनुसार इस दौरान परिवारों का सरकारी अस्पताल में इलाज कराने का औसत खर्च 4,452 रुपये रहा. जबकि निजी अस्पतालों में यह खर्च 31,845 रुपये बैठा.


शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अंतर


शहरी क्षेत्र में सरकारी अस्पतालों में यह खर्च करीब 4,837 रुपये जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 4,290 रुपये रहा. वहीं निजी अस्पतालों में यह खर्च क्रमश: 38,822 रुपये और 27,347 रुपये था.


ग्रामीण क्षेत्र में एक बार अस्पताल में भर्ती होने पर परिवार का औसत खर्च 16,676 रुपये रहा. जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 26,475 रुपये था. यह रिपोर्ट 1.13 लाख परिवारों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है. इससे पहले इस तरह के तीन सर्वेक्षण 1995-96, 2004 और 2014 में हो चुके हैं.


अस्पताल में भर्ती होने वाले मामलों में 42 प्रतिशत लोग सरकारी अस्पताल का चुनाव करते हैं. जबकि 55 प्रतिशत लोगों ने निजी अस्पतालों का रुख किया. गैर-सरकारी और परर्मार्थ संगठनों द्वारा संचालित अस्पतालों में भर्ती होने वालों का अनुपात 2.7 प्रतिशत रहा. इसमें प्रसव के दौरान भर्ती होने के आंकड़ों को शामिल नहीं किया गया है.


प्रसव के लिए कितना होता है खर्च


प्रसव के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर ग्रामीण इलाकों में परिवार का औसत खर्च सरकारी अस्पतालों में 2,404 रुपये और निजी अस्पतालों में 20,788 रुपये रहा. वहीं शहरी क्षेत्रों में यह खर्च क्रमश: 3,106 रुपये और 29,105 रुपये रहा.


रिपोर्ट के अनुसार देश में 28 प्रतिशत प्रसव मामलों में ऑपरेशन किया गया. सरकारी अस्पतालों में मात्र 17 प्रतिशत प्रसव के मामलों में ऑपरेशन किया गया और इनमें 92 प्रतिशत ऑपरेशन मुफ्त किए गए. वहीं निजी अस्पताओं में 55 प्रतिशत प्रसव के मामलों में ऑपरेशन किया गया और इनमें केवल एक प्रतिशत ऑपरेशन मुफ्त किए गए.


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