नई दिल्ली: क्या बीसीजी के वैक्सीन से कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज हो सकता है? अब तक इसको लेकर कई तरह की बातें हो रही थीं. लेकिन अब रिसर्च शुरू हो गई है. इसके लिए बाकायदा वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है. बैसिलस कालमेट गुएरिन (बीसीजी) टीका हिंदुस्तान में जन्म के बाद हर बच्चे को लगाया जाता है.
क्या बीसीजी का टीका कोरोना वायरस से लड़ने में सक्षम है? क्या बीसीजी का टीका कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में कारगर है? क्या बीसीजी के टीके से कोरोना वायरस का तोड़ मिल सकता है? ऐसी तमाम तरह की धारणायें जो अब तक फिजाओं में थीं, उसकी तह तक जाने के लिए देश में बाकायदा रिसर्च शुरू हो गई है. ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी DCGI ने देश के 5 मेडिकल संस्थानों को वैक्सीन के ट्रायल की जिम्मेदारी सौंपी है.
इन संस्थानों में हरियाणा के रोहतक का Pandit Bhagwat Dayal Sharma Post Graduate Institute of Medical Sciences भी शामिल है. रोहतक पीजीआई में इस शोध का जिम्मा संस्थान के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग को सौंपा गया है.
रोहतक पीजीआई की प्रिंसिपल प्रोफेसर सविता वर्मा ने बताया कि ये वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल है. पॉजिटिव पेशेंट के कांन्टेक्ट में जो मेडिकल स्टाफ और फैमिली वाले आ रहे हैं, ट्रायल में ये देख रहे हैं कि क्या ये संक्रमण रोक रहा है.
175 लोगों पर बीसीजी के टीके का परीक्षण किया जाएगा
इसका मतलब टीबी की बीमारी में काम आने वाले बीसीजी की वैक्सीन का ट्रायल उन लोगों पर किया जाएगा जो कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज के नजदीक रहे हों. इनमें डॉक्टर, नर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ शामिल हैं. यही नहीं, कोरोना पॉजिटिव मरीज के घरवालों पर भी ट्रायल किया जाएगा. रोहतक पीजीआई में 175 लोगों पर बीसीजी के टीके का परीक्षण किया जाएगा. टीका लगने के 6 महीने तक ऐसे लोगों का मेडिकल ऑब्जर्वेशन किया जाएगा.
सविता वर्मा ने कहा कि पहले तो अस्पताल में पेशेंट की देखरेख करने वाले मेडिकल स्टाफ से बात होगी. अगर वो तैयार होंगे तो उनको लेंगे. फिर कोरोना पॉजिटिव पेशेंट के क्लोज कान्टेक्ट से बात करेंगे अगर वो तैयार होंगे तो उनको भी लेंगे.
तो बीसीजी के टीके में कोरोना से लड़ने की संभावनायें तलाशने के लिए रिसर्च शुरू हो चुकी है. क्लीनिक ट्रायल की तैयारी चल रही है. ऐसे में ये जानना भी दिलचस्प है कि आखिर बीसीजी के टीके का कोरोना महामारी से कनेक्शन क्या है...
बीसीजी टीका देने वाले देशों मे कोविड का रेट कम
Special Centre for Molecular Medicine के प्रोफेसर गोबर्धन दास ने बताया कि बीसीजी टीका अमेरिका, इटली, स्पेन, नीदरलैंड नहीं देते हैं और यहां कोरोना का प्रकोप बहुत ज्यादा है. जबकि ब्राजील, जापान बीसीजी टीका अपने देश में देते हैं तो वहां कोविड का रेट कम है.
मतलब बीसीजी न देने वाले अमेरिका, इटली, स्पेन जैसे देशों के मुकाबले बीसीजी देने वाले ब्राजील, जापान जैसे देशों के ट्रेंड ने बीसीजी की टीके में कोरोना से लड़ने की संभावनायें जगाई हैं. हालांकि देश के सबसे बड़े मेडिकल संस्थान AIIMS के डायरेक्टर प्रोफेसर रणदीप गुलेरिया कहते हैं कि बीसीजी के टीके से कोरोना के इलाज के अभी कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
प्रोफेसर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि मेरा मानना है कि अभी इतना सबूत नहीं है कि बीसीजी से प्रोटेक्शन है. ये फैक्ट देखा गया है वो इंसीडेंटल है या सही है, उसके लिए और स्टडी चाहिए.
तो बीसीजी का टीका कोरोना से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार हो सकता है या नहीं, इसी बात का पता लगाने की जिम्मेदारी देश के 5 बड़े मेडिकल संस्थानों पर आ गई है. लेकिन इसके नतीजे आने में वक्त लगेगा क्योंकि इस ट्रायल की प्रक्रिया लंबी है.
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