नई दिल्ली: तीन तलाक का मद्दा एक बार फिर देश की राजनीति के केंद्र में आ गया है. लोकसभा में आज तीन तलाक बिल पर बहस हो रही है. सरकार इसे पास कराना चाहती है तो वहीं कांग्रेस ने इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजने की बात कह रही है. बीजेपी और कांग्रेस ने व्हिप जारी कर सभी सांसदों को सदन में मौजूद रहने को कहा है.


सरकार संख्याबल के आधार पर लोकसभा से तो बिल पास करवा लेगी लेकिन राज्यसभा में बिल अटक सकता है. बीजेपी लंबे समय से तीन तलाक के मुद्दे को उठाती रही है. हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि सरकार कट्टरपंथियों और विपक्षी दलों के विरोध का सामना करने के बावजूद तीन तलाक पर एक कानून बनाने के लिए प्रतिबद्ध है.


लोकसभा में चर्चा के बीच जानिए तीन तलाक को लेकर अब तक क्या देश की राजनीति, न्याय व्यवस्था और समाज में क्या हुआ? छह प्वाइंट्स में जानें तीन तलाक बिल का अब तक का सफर


1. सुप्रीम कोर्ट में पांच महिलाओं शाह बानो, आफरीन रहमान, इशरत जहां, गुलशन परवीन और अतिया साबरी ने तीन तलाक के खिलाफ अर्जी दी थी. पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे धार्मिक मसला बताते बुए इस पर सुनवाई न करने की मांग की थी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी ओर से दिए गए हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है.


2. 11 मई 2017 से 18 मई 2017 के बीच सुप्रीम कोर्ट में इस पर विस्तार से सुनवाई चली. इस मामले में कुल 30 पक्षों ने अपनी दलीलें रखीं. मुस्लिम महिला आंदोलन, मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड, लॉयर्स कलेक्टिव जैसे कई संगठनों ने महिला याचिकाकर्ताओं की मांग का समर्थन किया.


3. पांच जजों की संविधान पीठ ने 18 मई को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया. इसके बाद 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. पांच जजो की बेंच में से तीन जजों ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताया. पांच जजों की इस बेंच में तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंगटन फली नरीमन, जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे.


4. सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक को महिलाओं के मौलिक औऱ समानता के अधिकार का उललंघन माना. सुप्रीम कोर्ट ने इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किये जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता. जस्टिस खेहर ने कहा कि तीन तलाक पर सरकार संसद में कानून बनाए. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों से अपने मतभेदों को दरकिनार रखने और तीन तलाक के संबंध में कानून बनाने में केन्द्र की मदद करने को कहा है.


5. सरकार ने 19 सितंबर 2018 को तीन तलाक के खिलाफ अध्यादेश जारी किया. इसके बाद तीन तलाक को दंडात्मक अपराध घोषित करने वाला बिल 17 दिसंबर 2018 को लोकसभा में पेश किया गया. ये बिल तीन तलाक से संबंधित अध्यादेश की जगह पर लाया गया है. प्रस्तावित कानून के तहत एक बार में तीन तलाक देना गैरकानूनी और अमान्य होगा. तीन तलाक के लिए तीन साल तक की सजा हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट भी तीन तलाक को गैर कानूनी करार दे चुका है.


6. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बाद भी तीन तलाक केस सामने आए. अगस्त 2017 से दिसंबर 2018 के बीच तीन तलाक के करीब देश भर में करीब 248 केस दर्ज किए गए. वहीं अगर एक जनवरी 2017 से दिसंबर 2018 के बीच 477 केस दर्ज किए गए. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए. पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे 22 मुस्लिम देशों में तीन तलाक बैन है.