नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार मंगलवार को तीन तलाक बिल राज्यसभा में पेश करेगी. उच्च सदन में एनडीए के पास संख्याबल का अभाव है, ऐसे में बिल पास कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भी तीन तलाक बिल का विरोध कर रही है. ऐसे में बिल पास होगा या एक बार फिर राज्यसभा में अटक जाएगा यह गैर यूपीए और गैर एनडीए दलों पर निर्भर करेगा.
नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस किसी खेमे में नहीं है. इन नेताओं का साथ अगर सरकार को मिलता है तो बिल आसानी से पास हो जाएगा.
मंगलवार को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सदन में बिल पेश करेंगे. इसके लिए सत्ताधारी दल बीजेपी ने तैयारी कर ली है. सोमवार को पार्टी ने अपने सांसदों को व्हिप जारी कर सदन में मौजूद रहने के लिए कहा है.
राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद मोदी सरकार पास करवा सकती है तीन तलाक बिल, यह है पूरा गणित
विरोध में है विपक्षी पार्टियां
लोकसभा में यह विधेयक 25 जुलाई को पारित हुआ था और इसे अब कानून में तब्दील होने और अध्यादेश की जगह लेने के लिए राज्यसभा की मंजूरी पानी होगी. कांग्रेस के अलावा डीएमके, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, वाईएसआर कांग्रेस, जेडीयू और आरएसपी के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया था. हालांकि इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा क्योंकि बीजेपी के पास निचले सदन में अपने पास मजबूत बहुमत हासिल है. विपक्षी पार्टी बिल के प्रावधानों के विरोध में है और वह इसे संसदीय समिति में भेजे जाने की मांग कर रही है.
बिल में क्या है प्रावधान
‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019’ में तीन तलाक की प्रथा को शून्य और अवैध घोषित करने का प्रस्ताव है. ऐसे मामलों में तीन वर्ष तक के कारावास का भी प्रावधान किया गया है. यह भी प्रस्ताव किया गया था कि विवाहित महिला और आश्रित बालकों को निर्वाह भत्ता प्रदान करने और साथ ही अवयस्क संतानों की अभिरक्षा के लिए भी उपबंध किया जाए. विधेयक अपराध को संज्ञेय और गैरजमानती बनाने का उपबंध भी करता था . इसमें मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत देने की बात कही गई है.