तीन तलाक खत्म: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आपके मन में उठ रहे हर सवाल का जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मुस्लिमों में तीन तलाक के जरिए दिए जाने वाले तलाक की प्रथा ‘अमान्य’, ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है. कोर्ट के इस आदेश से मुस्लिम महिलाओं को बड़ी राहत मिली है. इस फैसले को लेकर अपने मन में उठ रहे हर सवाल का जवाब यहां पढ़ें.
नई दिल्ली: एक साथ तीन तलाक बोलने पर सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक करार दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मुस्लिमों में तीन तलाक के जरिए दिए जाने वाले तलाक की प्रथा ‘अमान्य’, ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है. कोर्ट के इस आदेश से मुस्लिम महिलाओं को बड़ी राहत मिली है.
सवाल- क्या है सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला? जवाब- कोर्ट के आदेश को बेहद सरल भाषा में समझें तो यानी अब कोई भी मुस्लिम पुरुष एक झटके में तीन बार तलाक तलाक तलाक कहकर अपनी पत्नी से रिश्ता नहीं तोड़ सकता. एक बार में तीन तलाक बोलकर रिश्ता खत्म करने को 'तलाक-ए-बिद्दत' कहा जाता है.
सवाल- अब अगर कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को एक साथ तीन तलाक कहेगा तो क्या होगा ? जवाब- सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक को ना सिर्फ असंवैधानिक बताया है बल्कि गैर कानूनी भी करार दिया. अब अगर कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को एक साथ तीन तलाक कहता है तो महिला अपना कानूनी हक लेकर सीधे कोर्ट जा सकती है. कोर्ट में पुरुष का तीन तलाक तत्काल खारिज हो जाएगा.
सवाल- क्या अब मुस्लिमों में तलाक हो ही नहीं सकता? जवाब- ऐसा बिल्कुल नहीं है, कोर्ट का फैसला सिर्फ एक साथ बोले जाने वाले 'तलाक ए बिद्दत' को लेकर है. सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ दिए जाने वाले तीन तलाक को तो जरूर असंवैधानिक करार दे दिया लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मुस्लिम समाज में तलाक हो नहीं सकते. तलाक ए बिद्दत यानि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस कुरान में कोई जगह नहीं मिली है. अदालत का कहना है कि मुस्लिमों में तलाक ए अहसन और तलाक ए हसन को तो कुरान और हदीस में मान्यता दिए जाने के प्रमाण मिलते हैं लेकिन तलाक ए बिद्दत के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता. अदालत का कहना था कि 1400 सालों से अगर कोई पाप हो रहा है तो उसे परंपरा के नाम पर जायज नहीं ठहराया जा सकता है और न ही उसे रस्मोरिवाज का हिस्सा बनाया जा सकता है.
सवाल- सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब केंद्र सरकार क्या करेगी ? जवाब- पांच जजों की संवैधानिक पीठ में से दो जजों ने सरकार से कहा कि संसद में 6 महीने के भीतर इसे लेकर कानून बनाया जाए. लेकिन बाकी के तीन जजों ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया. इसके बाद केंद्र सरकार पर अलग से कानून बनाने का दबाव नहीं है. इसके बावजूद अगर सरकार चाहे तो तीन तलाक पर अलग से कानून ला सकती है.
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सवाल- किसने सुनाया फैसला ? जवाब: सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने यह फैसला सुनाया. इस पीठ में चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं. यह पांचों जज पांच अलग अलग धर्म से आते हैं.
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सवाल- फैसला सुनाते हुए किस जज ने क्या कहा ? जवाब- सुबह साढ़े दस बजे सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर एक में फैसला पढ़ने का काम शुरू हुआ. सबसे पहले चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने फैसला पढ़ा. इसके बाद दूसरे जज अब्दुल नजीर ने अपना फैसला पढ़ा.
चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर के फैसले के अंश
- सुन्नी हनफ़ी वर्ग एक साथ 3 तलाक को मान्यता देता है. इसलिए ये अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आता है.
- हम अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्ति का इस्तेमाल करते हुए सरकार को निर्देश देते हैं कि वो 6 महीने में इस विषय पर कानून बनाए. तब तक हम मुस्लिम पतियों को तलाक ए बिद्दत का इस्तेमाल करने से रोक रहे हैं.
जस्टिस कुरियन जोसफ के फैसले के अंश
- सुप्रीम कोर्ट पहले भी शमीम आरा जजमेंट में 3 तलाक को कानूनन गलत करार दे चुका है. तब कोर्ट ने विस्तार से वजह नहीं बताई थी. अब विस्तार से इसे बताने की ज़रूरत है
- इस्लामी कानून के 4 स्रोत हैं. कुरान, हदीस, इज्मा और कियास. कुरान मौलिक स्रोत है. जो बात कुरान में नहीं है उसे मौलिक नहीं माना जा सकता. बाकी स्रोतों में कोई भी बात कुरान में लिखी बात के खिलाफ नहीं हो सकती
- 1937 के शरीयत एप्लिकेशन एक्ट का मकसद मुस्लिम समाज से कुरान से बाहर की बातों को हटाना था. मेरा मानना है कि 3 तलाक को संविधान में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संरक्षण नहीं हासिल है.
जस्टिस रोहिंटन नरीमन और यू यू ललित के फैसले के अंश
- इस्लाम में एक साथ 3 तलाक को गलत माना गया है.
- पुरुषों को हासिल एक साथ 3 तलाक बोलने का हक महिलाओं को गैर बराबरी की स्थिति में लाता है. ये महिलाओं के मौलिक अधिकार के खिलाफ है.
सवाल- सुनवाई के दौरान किसने क्या दलील दी थी? जवाब- इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 11 से 18 मई तक नियमित सुनवाई चली थी. इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए मुस्लिम महिलाओं की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दलीलें रखी गई जबकि पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे धार्मिक मसला बताते बुए इस पर सुनवाई न करने की मांग की थी. केंद्र सरकार ने भी सुनवाई के दौरान तलाक ए बिद्दत यानी एक साथ तीन तलाक को खत्म करने की पैरवी की थी.
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सवाल- भारत के अलावा दुनिया के किन देशों में बैन है ट्रिपल तलाक? जवाब- मिस्र दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां तीन तलाक को पहली बार बैन किया गया था. 1929 में ही सूडान ने अपने देश में तीन तलाक को बैन किया. पाकिस्तान में 1956 में ही तीन तलाक को बैन कर दिया गया. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने पत्नी को तलाक दिए बिना सेक्रेटरी से शादी कर ली थी. इसी के बाद वहां लोग उठ खड़े हुए और ट्रिपल तलाक बैन किया. 1959 में इराक ने तीन तलाक खत्म कर दिया. इसके अलावा साइप्रस, जॉर्डन, अल्जीरिया, इरान, ब्रुनेई, मोरक्को, कतर, बांग्लादेश और यूएई में भी तीन तलाक बैन है.
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