इलाहाबाद: तीन तलाक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणाी की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है. कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक देने को क्रूरता और महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन माना है.


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में तलाक को लेकर मुसलमानों की सबसे मुकद्दस किताब कुरान का हवाला देते हुए कहा कि पवित्र कुरान में भी तीन तलाक को अच्छा नहीं माना गया है.


कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, "हमारे संविधान में महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिला हुआ है और पर्सनल लॉ के नाम पर उनसे ये अधिकार नहीं छीना जा सकता."


तीन तलाक क्या बला है, इसपर बहस करने से पहले ये सारी बातें जरूर जानें


कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम समाज का एक वर्ग इस्लामिक कानून की गलत ब्याख्या कर रहा है. दो अगल-अलग याचिकाओं में जस्टिस सुनीत कुमार की एकलपीठ ने ये फैसला दिया है.


क्या होगा इस फैसले का असर


इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद तीन तलाक का मुद्दा एक बार फिर गरमा जाएगा. बीते दिनों इसे लेकर मुस्लिम समाज के एक वर्ग ने तीन तलाक में किसी तरह के बदलाव का जमकर विरोध किया था. मुस्लिम समाज के उलेमाओं का कहना है कि तीन तलाक उनकी शरीयत का हिस्सा है और इसमें बदलाव का हक किसी को नहीं है.


आखिर मुसलमान तीन तलाक के सवाल पर बहस से क्यों डरता है, क्या हैं वजहें?


तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट में भी कई महिलाओं ने चुनौती दे रखी है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक को लैंगिक न्याय, समानता और संविधान के खिलाफ बताया है. दूसरी तरफ विधि आयोग ने भी जिन 11 सवालों पर आम लोगों की राय मांगी है उनमें तीन तलाक का भी सवाल दर्ज है. विधि आयोग के इस सवालनामे के बाद ही मुस्लिम समाज ने तीन तलाक का घोर विरोध किया था.


ग़ौरतलब है कि तीन तलाक का मामला मुसलमानों के बीच बहुत संवेदनशील मुद्दा है. अतीत में भी इसे मुद्दे पर मुस्लिम समाज का भारी विरोध सामने आया है. मुसलमानों के प्रमुख संगठन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक का विरोध किया है. बोर्ड का कहना रहा है कि ये धार्मिक अधिकार है इसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती. लेकिन इस बार स्थिति इसलिए भी बदली हुई है कि क्योंकि कुछ महिला संगठनों में भी तीन तलाक का विरोध किया है.


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