नई दिल्ली: त्रिपुरा में रविवार को हुए विधानसभा चुनाव में 74 फीसदी मतदान हुआ जो पिछले विधानसभा चुनाव (91.82 फीसदी) से 17 फीसदी कम हैं. विधानसभा की कुल 60 सीटों में से आज 59 पर मतदान हुआ. चारिलाम विधानसभा क्षेत्र में पिछले हफ्ते माकपा उम्मीदवार रामेंद्र नारायण देब वर्मा की मौत हो जाने के कारण आज मतदान नहीं हो पाया. इस निर्वाचन क्षेत्र में 12 मार्च को वोट डाले जाएंगे.


वैसे तो आज का मतदान विधानसभा चुनाव के लिए था लेकिन इसका सीधा असर अगले साल के लोकसभा चुनाव पर भी पड़नेवाला है. आपको बताते हैं कैसे त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव का लोकसभा चुनाव से गहरा और दिलचस्प रिश्ता है.


त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार सधे कदमों के साथ बूथ पर आए, मतदान किए, हाथ जोड़कर लोगों का अभिवादन किया और बिना कुछ बोले चले गए.


माणिक सरकार की इस खामोशी ने त्रिपुरा की सियासी सरगर्मी को और तेज कर दिया है. सवाल उठ रहा है कि क्या त्रिपुरा में सीपीएम का किला इस बार ढहनेवाला है? क्या 1998 से सत्ता पर काबिज माणिक सरकार को इस बार बीजेपी पटखनी देने में कामयाब हो जाएगी?


लोकसभा चुनाव में माणिक सरकार के नाम के साथ तुकबंदी करते हुए पीएम मोदी ने कीमती पत्थर माणिक की तुलना में बीजेपी के हीरे को त्रिपुरा के लिए फायदेमंद बताया था. लेकिन साल 1998 से त्रिपुरा के लिए लोगों ने इसी माणिक को अपने सिर माथे पर बिठाकर रखा है. पिछले 20 साल से लगातार 4 बार मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री हैं माणिक सरकार. चुनावी हलफनामे के मुताबिक माणिक सरकार के पास नगद 1520 रुपया और बैंक में जमा 2410 रुपया है. उनकी कुल चल-अचल संपत्ति 33 लाख है और उनका सार्वजनिक जीवन इतना बेदाग है कि आजतक उनपर किसी तरह का आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है. माणिक सरकार की ये सादगी सियासत की दुनिया में करिश्माई ताकत दिखाती आयी है और


साल 1993 से त्रिपुरा में सीपीएम की सरकार है, जबकि साल 1996 से त्रिपुरा की दोनों लोकसभा सीट पर सीपीएम का ही कब्जा रहा है.


आंकड़ों के नजरिए से इस साल के विधानसभा चुनाव और अगले साल होनेवाले लोकसभा में सीपीएम का पलड़ा भारी दिख रहा है लेकिन बड़ी सियासी सच्चाई ये भी है कि पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने अबतक के स्थापित कई सियासी समीकरणों को ध्वस्त करके रख दिया है.


बीजेपी ने 51 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. उसने इंडिजिनियस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) से चुनाव से पहले गठबंधन किया था. बाकी नौ सीटों पर वामविरोधी आईपीएफटी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं.


तीन मार्च को मतों की गिनती की जाएगी.