नॉर्थ-ईस्ट में आने वाले राज्य त्रिपुरा में बीजेपी एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है. अब तक के नतीजों और रुझानों में ये साफ हो चुका है कि बीजेपी गठबंधन ने बहुमत हासिल कर लिया है. हालांकि बीजेपी को पिछले साल के मुकाबले कई सीटों का नुकसान हुआ है, इसके बावजूद सत्ता बचाने में पार्टी कामयाब हो गई है. ऐसा तब हुआ है जब बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले राज्य का मुख्यमंत्री ही बदल दिया. बिप्लब देव की जगह माणिक साहा को कमान सौंपी गई. जो बीजेपी के लिए घातक साबित नहीं हुआ. आइए जानते हैं त्रिपुरा में बीजेपी की जीत के अहम कारण...
बिप्लब देव की जगह माणिक साहा
पिछले यानी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने लेफ्ट को सत्ता से उखाड़कर पहली बार सरकार बनाई थी. इसके बाद बिप्लब देब को सीएम बनाया गया, जिन्होंने चार सालों तक बतौर मुख्यमंत्री काम किया, लेकिन मई 2022 में बीजेपी ने चौंकाने वाला फैसला किया. जिसमें कहा गया कि बिप्लब देब की जगह अब माणिक साहा को त्रिपुरा का मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है. चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने ये फैसला लिया. कई विपक्षी नेताओं ने इसे लेकर बीजेपी को जमकर घेरा और चार साल के कार्यकाल को नाकामी करार दिया.
बीजेपी आलाकमान तक ये बात पहुंच चुकी थी कि बिप्लब देव के विरोध में कई विधायक उतर चुके हैं, वहीं राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठने लगे थे. ऐसे में बीजेपी को ये पता चल चुका था कि अगर चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया तो जीत मिलना भी मुश्किल है. इसीलिए करीब 9 महीने पहले मुख्यमंत्री बदलने का फैसला लिया गया. जो आखिरकार अब बीजेपी के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ.
लेफ्ट पर लगाया धोखा देने का आरोप
इसके अलावा बीजेपी ने चार साल बाद मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद अपने कामकाज को लेकर चुनाव लड़ा. पार्टी कार्यकर्ताओं ने बूथ लेवल पर काफी मेहनत की और लोगों तक पहुंचे. वहीं बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने कांग्रेस को हर चुनावी रैली में ये कहकर घेरा कि वो लेफ्ट के साथ गठबंधन कर रही है. बीजेपी की तरफ से लेफ्ट पर आरोप लगाया गया कि उसने आदिवासियों को कई सालों तक धोखा दिया है. इसका कहीं न कहीं पार्टी को फायदा मिला. बीजेपी को पिछली बार भी काफी ज्यादा संख्या में आदिवासी वोट मिला था. हालांकि इस बार राजपरिवार की पार्टी टिपरा मोथा ने बीजेपी की सीटों को कम करने का काम किया.
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