तीन राज्यों के नतीजे तय करेंगे हिंदुत्व के रथ पर सवार पूर्व कांग्रेसी का बीजेपी में कद
दौर ऐसा था जब हिमंता पूरे नॉर्थ ईस्ट में कांग्रेस की साख बचाने में लगे रहते थे. आज की स्थिति ये है कि हिमंता बीजेपी में हैं और वो इकलौते ऐसे नेता हैं जिनकी पकड़ नॉर्थ ईस्ट के हर राज्यों में है.
पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण...भारत के अलग अलग बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में सबसे सक्रिय चेहरे और फायरब्रांड इमेज की बात करें तो सबसे पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चेहरा सामने आता है. लेकिन इसके अलावा भी बीजेपी के एक मुख्यमंत्री हैं जो कांग्रेस से बीजेपी में आने के बावजूद भी हिंदुत्व के बड़े चेहरे और बीजेपी के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक हो गए है - हिमंत बिस्वा सरमा.
एक दौर ऐसा था जब हिमंत पूरे नॉर्थ ईस्ट में कांग्रेस की साख बचाने में लगे रहते थे. आज की स्थिति ये है कि हिमंत बीजेपी में हैं और वो इकलौते ऐसे नेता हैं जिनकी पकड़ नॉर्थ ईस्ट के सभी राज्यों में है.
अब 3 राज्यों के नतीजे सामने आने वाले हैं, ये नतीजे न सिर्फ बीजेपी की राजनीतिक शैली की तस्वीर साफ करेंगे, साथ ही ये हिमंत बिस्वा सरमा का भविष्य में कद भी तय करेंगे. अगर इन राज्यों में कमल वाली पार्टी कमाल करती है तो अपने दम पर असम में बीजेपी को लाने वाले हिमंत को इसका श्रेय तो मिलेगा ही साथ ही बीजेपी के संगठन में उनका कद भी बढ़ेगा.
कब आएंगे इन राज्यों के नतीजे
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में 27 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान संपन्न हो गया है. मेघालय की 60 विधानसभा सीट और नगालैंड की 59 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव के नतीजे 2 मार्च को आएंगे. वहीं त्रिपुरा में 16 फरवरी को 60 सीटों के लिए वोटिंग हुई थी.
हिमंत बिस्वा के बीजेपी का फायरब्रांड बनने की कहानी
हिमंत बिस्वा सरमा ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1980 में की थी, तब वह छठी कक्षा में थे. उन्होंने ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ज्वॉइन किया था.
एएएसयू से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले हिमंत बिस्वा सरमा कभी कांग्रेस विरोधी हुआ करते थे. फिर कुछ सालों बाद कांग्रेस में शामिल हो गए और 2015 में उन्होंने कांग्रेस को छोड़ कर बीजेपी ज्वॉइन कर लिया. कहा जाता है कि उनके कांग्रेस छोड़ने की एक वजह गुरु तरुण गोगोई थी. बिस्वा की उनसे ठन गई थी.
ऐसा कहा जाता है तरुण गोगोई अपने बेटे गौरव गोगोई को आगे बढ़ा रहे थे और ये बात हिमंत को पसंद नहीं आई. इसके बाद वह कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व राहुल गांधी से मिलने की कोशिश में जुट गए. कई प्रयास के बाद हिमंत बिस्व सरमा की मुलाकात तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से होती है और फिर यहीं से बिस्वा सरमा का राजनीतिक सफर बीजेपी के साथ शुरू हो जाता है.
असम के पत्रकारों की माने तो गोगोई को साल 2011 के चुनाव में मिली जीत के पीछे बिस्वा की बड़ी भूमिका थी. साल 2015 में जब बिस्वा ने बीजेपी ज्वॉइन किया तब भी कांग्रेस का हराने और बीजेपी को जिताने में उन्होंने ही बड़ी भूमिका निभाई थी. हिमंत बिस्वा सरमा को नार्थ ईस्ट का चाणक्य भी कहा जाता है.
पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने अपनी किताब ‘2019 हाऊ मोदी वॉन इंडिया’ में राहुल गांधी और हिमंत बिस्व सरमा की बीच हुई उस अंतिम मुलाकात के बारे में लिखते हैं- “लंबी कोशिश के बाद हिमंत बिस्व सरमा राहुल गांधी से मिले. असम के सीएम पद पर अपनी दावेदारी पेश की. विधायक उनके साथ थे. लेकिन उस बैठक में राहुल गांधी हिमंत की महत्वाकांक्षाओं और उनकी बातों पर कुछ खास ध्यान नहीं देते हैं. "
राजदीप अपनी किताब में लिखते हैं कि उस बैठक में राहुल गांधी ने हिमंत से कहा था “डू व्हॉट एवर यू वांट टू डू,आई एम नॉट कनर्सन” जिसका मतलब है कि आपको जो भी करना है करिए मुझे इससे कोई लेना देना नहीं है. इसके बाद राहुल सामने मेज पर पड़ी प्लेट में रखी बिस्किट अपने कुत्ते को खिलाने लगते हैं.
राहुल गांधी पार्टी नेता की नहीं सुनते
हिमंत बिस्वा शर्मा ने साल 2015 में कांग्रेस को छोड़ बीजेपी ज्वॉइन कर लिया था और साल 2016 में राहुल गांधी को लेकर एक ऐसा बयान दे दिया जिसकी चर्चा आजतक होती है. दरअसल उन्होंने दावा किया था कि राहुल गांधी नेताओं से बात करने की से ज्यादा अपने कुत्तों के साथ खेलना पसंद करते हैं.
2016 से कांग्रेस पर निशाना साधते रहे हिमंत
साल 2015 में बीजेपी ज्वॉइन करने के बाद 2016 में असम में विधानसभा चुनाव हुए जहां कांग्रेस की हार हुई और बीजेपी की सरकार बनी. इसके बाद साल 2017 में राहुल गांधी ने अपने एक ट्वीट में लोगों को अपने कुत्ते पीडी से मिलवाया. इस ट्वीट के जवाब में हिमंत का बयान सामने आया.
उन्होंने कहा, "मैंने पहले भी बताया था. एक बार हम लोग असम के किसी गंभीर मुद्दे पर राहुल गांधी से मिलने पहुंचे थे. हालांकि उस वक्त भी वह अपने कुत्ते को खाना खिलाने में व्यस्त थे. राहुल गांधी के लिए असम का मुद्दे से बड़ा उनके लिए कुत्ते को खाना खिलाना था. आज इस ट्वीट से वह जाहिर भी हो गया है."
इसके बाद से उन्होंने कांग्रेस पर लगातार निशाना साधना शुरू किया, जो अब तक जारी है. साल 2016 में ही बिस्वा ने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि सोनिया गांधी आदरणीय महिला हैं, लेकिन राहुल गांधी उन्हें कंट्रोल करते हैं. वहीं साल 2021 में कहा था कि जब तक राहुल गांधी कांग्रेस का चेहरा रहेंगे तब तक बीजेपी को इसका फायदा मिलता रहेगा.
हिमंत का पूरे नॉर्थ ईस्ट में दबदबा
बीजेपी के लिए हिमंत बिस्व सरमा की भूमिका पूरे नॉर्थ ईस्ट में संकटमोचक की रही है. फिर चाहे वह त्रिपुरा हो या मणिपुर, इन राज्यों में जब भी बीजेपी की सरकार संकट में फंसी, हिमंत बिस्व सरमा ने अपने पॉलिटिकल मैनेजमेंट से सब कुछ संभाल लिया और बीजेपी की सरकार बरकरार रही.
क्या कहता है एग्जिट पोल
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में बीजेपी ने अपना परचम लहराने का हौसला तो बहुत दिखाया है. लेकिन क्या ऐसा मुमकिन है कि वो त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में दोबारा वापसी कर ले. चुनाव प्रचार के दौरान इन तीनों ही राज्यों के बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. त्रिपुरा में पहले से ही बीजेपी की ही सरकार थी लेकिन नागालैंड और मेघालय में वो अब तक बीजेपी गठबंधन में सरकार चला रही है.
इन तीनों ही राज्यों में 2 मार्च को नतीजे आएंगे. लेकिन इससे पहले एग्जिट पोल के जो नतीजे आये हैं वे दिलचस्प भी हैं और बीजेपी के लिए कुछ खुशखबरी भरे भी हैं.
मेघालय: इस राज्य में बीजेपी गठबंधन में सरकार चला रही थी लेकिन इस चुनाव में बीजेपी ने गठबंधन से नाता तोड़कर अपने बूते पर ही बीजेपी ने सारी सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया. एग्जिट पोल की माने तो पार्टी का ये दाव उसके लिए थोड़ा उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है. वहां अभी तक नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी यानी एनपीपी की ही सरकार थी जिसमें बीजेपी और यूडीपी उसकी सहयोगी थी.
त्रिपुरा: त्रिपुरा में पिछले पांच सालों से बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाई थी. लेकिन जैसे ही दिल्ली में बैठे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को ये अहसास हुआ कि वहां कुछ गड़बड़ है और विप्लव देब के नाम पर दोबारा चुनाव जीतना मुश्किल है तो पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने में जरा भी देर नहीं लगाई.
पार्टी का ये फैसला अब बीजेपी के लिए सौगात बनता दिख रहा है. गौरतलब है कि बीजेपी ने गुजरात, उत्तराखंड और कर्नाटक की तरह त्रिपुरा में भी मुख्यमंत्री का चेहरा बदल दिया था. बिप्लब देब को दो साल पहले ही सीएम पद से हटाकर माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया था. कहा जा रहा है कि बीजेपी ने सीएम फेस बदलकर एंटी इनकंबेंसी की काट ढूंढ़ ली है. माणिक साहा जनता की पसंद के मामले में पहले नंबर पर हैं.
इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल की मानें तो त्रिपुरा में 60 सीटों में से बीजेपी को 36-45 सीटें मिल सकती है. टीएमपी (टिपरा मोथा) को 9-16 सीटें मिलती दिख रही हैं. लेफ्ट+ को 6-11 सीटें और अन्य को कोई सीट मिलती नहीं दिख रही.
वहीं जी न्यूज़-Matrize एग्जिट पोल ने भी त्रिपुरा में 29 से 36 सीटों के साथ बीजेपी की वापसी की भविष्यवाणी की है. वहीं लेफ्ट+कांग्रेस को 32 फीसदी, टिपरा मोथा+ को 20 फीसदी और अन्य को 3 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है.
टाइम्स नाउ ईटीजी के एग्जिट पोल के अनुसार, बीजेपी को 21-27 सीटें, लेफ्ट को 18-24 सीटें मिलने का अनुमान है. इन सभी एग्जिट पोल को देखें तो राज्य में बीजेपी+ को 32 सीटें, लेफ्ट+कांग्रेस को 15 सीटें मिलने का अनुमान है.
हिमंत बिस्व सरमा की प्रोफाइल
हिमंत का जन्म 1 फरवरी 1969 को गुवाहाटी के गांधी बस्ती, उलूबरी में हुआ था. उनके पिता कैलाश नाथ शर्मा थे और मां का नाम मृणालिनी देवी हैं. हिमंत ने अपनी पढ़ाई कामरूप अकादमी स्कूल से की जिसके बाद साल 1985 में आगे की पढ़ाई के लिए कॉटन कॉलेज गुवाहाटी में दाखिला लिया.
साल 1990 में उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और 1992 में पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. साल 1991 से 1992 में उन्होंने कॉटन कॉलेज गुवाहाटी के जनरल सेक्रेटरी रहे. उन्होंने 15 मई 2001 से उपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत की. साल 2001 में असम के जालुकबरी से उन्होंने पहली बार जीत दर्ज की. इसके बाद साल 2006 में दूसरी और 2011 में तीसरी बार चुने गए. 2016 में बीजेपी के टिकट पर भी जालुकबरी से जीत दर्ज कराई.
हिमंत बिस्वा सरमा की खास बात ये है कि उन्होंने पहली बार विधायक बनते ही कैबिनेट में जगह बना ली. तब से लेकर अब तक वह कैबिनेट का हिस्सा रहे हैं. उनके पास एग्रीकल्चर, प्लानिंग एंड डेवलपमेंट, फाइनेंस, हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर जैसे मंत्रालय संभालने का भी अनुभव है.
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