त्रिपुरा के दो उत्पादों - प्रसिद्ध त्रिपुरेश्‍वरी मंदिर के प्रसाद 'पेड़ा' और आदिवासी महिलाओं की पारंपरिक पोशाक 'रिगनाई पचरा' को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग दिया गया है. मुख्‍यमंत्री माणिक साहा ने रविवार को यह जानकारी दी.


मुख्यमंत्री ने त्रिपुरा के दो उत्पादों को जीआई टैग मिलने पर खुशी जताते हुए अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, "मुझे बेहद खुशी है कि त्रिपुरेश्‍वरी मंदिर का 'पेड़ा' और आदिवासी महिलाओं की पारंपरिक पोशाक 'रिगनाई पचरा' को जीआई टैग दिया गया है.”


उन्होंने कहा कि दूध और चीनी से बना त्रिपुरेश्‍वरी मंदिर का पेड़ा और पोशाक 'रिगनाई पचरा' के लिए कपड़ा आदिवासियों, विशेषकर महिलाओं द्वारा हथकरघे से बुना जाता है.


प्रसिद्ध 'पेड़ा' अगरतला से 64 किमी दक्षिण में त्रिपुरा के गोमती जिले के उदयपुर में त्रिपुरसुंदरी मंदिर में 'प्रसाद' के रूप में उपयोग किया जाता है. 260 साल से अधिक पुराना त्रिपुरसुंदरी मंदिर भारत की 51वीं शक्तिपीठ है और कोलकाता के कालीघाट स्थित काली मंदिर और गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर के बाद पूर्वी भारत में तीसरा ऐसा मंदिर है. 


मुख्‍यमंत्री माणिक साहा ने ट्वीट कर कहा, मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि इस बार जीआई टैग राज्य की गौरव मां त्रिपुरासुंदरी के विशेष प्रसाद 'पेड़ा' और राज्य में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले 'रिगनाई/पचरा' को दिया गया है.इस विशेष उपलब्धि के लिए, मैं इन दोनों सहकारी समितियों, उदयपुर चंद्रपुर की माताबारी महिला क्लस्टर स्तरीय बहुमुखी सांबे समिति लिमिटेड और उदयपुर चंद्रपुर की दीवानबाड़ी महिला क्लस्टर बहुमुखी सांबे समिति लिमिटेड की मातृशक्ति को अपनी शुभकामनाएं और बधाई देता हूं.