त्रिपुरा विधानसभा चुनाव: लेफ्ट का किला ढहाकर बीजेपी बनाएगी सरकार, जानें इस जीत के मायने
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव : ये वही राज्य है जहां बीजेपी पिछले चुनावों में खाता भी नहीं खोल पाई थी और कई सीटों पर पार्टी की जमानत भी जब्त हो गई थी. इस जीत के साथ मोदी मैजिक पर एक बार फिर मुहर लग गई है.
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नई दिल्ली: पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में बीजेपी ने बड़ी और ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. 43 सीटों पर जबरदस्त जीत के साथ बीजेपी गठबंधन राज्य में सरकार बनाने जा रही है. 25 सालों तक त्रिपुरा में सरकार चलाने वाली लेफ्ट के हाथों से उसका ये गढ़ बीजेपी की झोली में आ गया है. त्रिपुरा की कुल 60 सीटों में से 59 सीटों पर मतदान हुए. जिसमें बीजेपी गठबंधन को 43 सीटों पर जीत मिली. अपने गढ़ में सीपीएम को 16 सीटें नसीब हुई हैं.
बीजेपी ने राज्य में जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. साल 2013 में यहां बीजेपी खाता भी नहीं खोल पाई थी और कई सीटों पर पार्टी की जमानत भी जब्त हो गई थी. लेकिन इस बड़ी और ऐतिहासिक जीत के साथ मोदी मैजिक अब तक बरकरार है ये संदेश बीजेपी ने दे दिया है.
क्या हैं त्रिपुरा चुनाव नतीज़ों के मायने?
2019 में बीजेपी को होगा बड़ा फायदा तीन राज्यों के चुनाव में जो मोदी लहर की दिखी है वही असर अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में दिखा तो बीजेपी की पूर्वोत्तर में लोकसभा की सीटें बढ़ना तय है.
पूर्वोत्तर में कुल 8 राज्य हैं. जिसमें मेघालय में 2 सीट, मिजोरम में 1 सीट, मणिपुर में 2 सीट, अरुणाचल प्रदेश में 2 सीट,असम में 14 सीट, त्रिपुरा में 2 सीट, नागालैंड में 1 सीट और सिक्किम में 1 सीट है. इन 8 राज्यों में लोकसभा की कुल 25 सीटे हैं. 2014 में एनडीए के पास 25 में से बस 11 सीट थीं लेकिन पिछले 4 साल में बीजेपी ने असम, अरुणाचल, और अब त्रिपुरा, नागालैंड में जीत हासिल कर ली है. अगर यही ट्रेंड रहा तो बीजेपी की लोकसभा में सीटें यहां 11 से बढ़कर 17 हो जाएंगी. जिसमें त्रिपुरा की 2 और नागालैंड की 1 सीट शामिल है. यानी पूर्वोत्तर राज्यों में भगवा रंग चढ़ाकर पीएम मोदी 2019 के मिशन की राह और आसान कर रहे हैं. महज हिंदी भाषी बेल्ट की पार्टी नहीं रही बीजेपी अब 2019 के चुनाव में बीजेपी इस आत्मविश्वास के साथ जाएगी की वो महज़ एक हिंदी भाषी बेल्ट की पार्टी नहीं रह गई है. पूर्वोत्तर देश का वो हिस्सा रहा है जहां बीजेपी को आज़ादी से लेकर अबतक नकारा जाता रहा लेकिन त्रिपुरा जैसे राज्य में जीत के बाद ये बात तय हो गई कि पार्टी के लिए देश में कही भी जीतना अब अपवाद नहीं रह जाएगा.सीपीएम के हार के मायने
सीपीएम की हार के साथ लेफ्ट का ढाई दशक पुराना किला ढह गया. अब सिर्फ केरल में ही सीपीएम की सरकार बची है. हार से लेफ्ट पार्टी में नेतृत्व पर सवाल उठना तय है. प. बंगाल से तो पहले ही लेफ्ट का टीएमसी ने सूपड़ा साफ कर दिया है.
त्रिपुरा में ढाई दशक से सीपीएम की सरकार थी
त्रिपुरा की बात करें तो यहां पिछले ढाई दशक से सीपीएम+ की सरकार थी. 20 साल से माणिक सरकार मुख्यमंत्री थे. त्रिपुरा में माणिक सरकार बेहद लोकप्रिय रहे हैं. माणिक सरकार बेहद सादगी से जीवन जीने वाले मुख्यमंत्री हैं.
2013 में नहीं खुला था बीजेपी का खाता
बता दें कि साल 2013 में हुए चुनाव में बीजेपी का त्रिपुरा में खाता भी नहीं खुला था. त्रिपुरा में प्रधानमंत्री मोदी ने सात, राहुल गांधी ने 10 और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने नौ रैलियां की थीं.
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