TRS Party Name Changed: तेलंगाना में आज सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) पार्टी अब क्षेत्रीय से राष्ट्रीय पार्टी बन गई है. राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद इसका नाम टीआरएस से बदलकर बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) कर दिया गया है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने अपनी पार्टी की महत्वपूर्ण आम सभा की बैठक में यह फैसला लिया.

 

पार्टी का नाम बदलने की घोषणा से उत्साहित कार्यकर्ताओं ने अपनी पार्टी के नेता चंद्रशेखर राव (केसीआर) को ‘राष्ट्रीय नेता’भी करार दिया. कार्यकर्ताओं ने इस मौके पर पटाखे फोड़े और मिठाइयां बांटकर जश्न भी मनाया. इसके अलावे ‘टीआरएस और केसीआर जिंदाबाद’के नारे भी लगाए. पार्टी  कार्यकर्ताओं ने ‘देश के नेता केसीआर’के नारे लगाए और पोस्टर पर भी इसी तरह के नारे लिखे नजर आए.

राव के इस फैसले के बाद राजनीतिक पंडितों की निगाहें उनके पार्टी के ऊपर टिक गई हैं. कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह कदम राव के लिए राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में अपना कद बढ़ाने में काफी सहायक होगा, जबकि बहुत से जानकार इसको दूसरी तरह से देखते हैं. उनका कहना है कि राव का यह दांव उलटा भी पड़ सकता है.

राजनीतिक पंडितों ने क्या कहा

 

कई विश्लेषक इस विचार को राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर राज्य में पार्टी के आधार को मजबूत करने की कवायद के तौर पर देख रहे हैं, जहां भाजपा 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक रूप से सक्रिय दिख रही है. हालांकि, एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या 2001 में एक अलग तेलंगाना राज्य बनाने के सिंगल प्वाइंट एजेंडे के साथ गठित टीआरएस राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा पाएगी और क्या केसीआर के नेतृत्व को अन्य राज्यों में स्वीकार किया जाएगा, खासकर उत्तर भारत में?

एक राजनीतिक जानकार ने कहा कि केसीआर ऐसे राजनेता नहीं हैं जो बिना किसी ठोस वजह के काम करते हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने की उनकी योजना केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के खिलाफ आई शून्यता को भरने के लिए है.

कौन- कौन सी योजनाएं चल रही हैं

 

इसके अलावा, तेलंगाना के 68 वर्षीय केसीआर का मानना है कि प्रदेश में कई कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं. इसकी मदद से वह महिलाओं, किसानों और हाशिए के समूहों का समर्थन हासिल करके अपनी पार्टी को सफलता दिला सकते हैं. इन योजनाओं में ‘रायथु बंधु’, ‘दलित बंधु’, ‘केसीआर किट’ और ‘आसरा’ पेंशन शामिल हैं.

‘रायथु बंधु‘ के तहत हर किसान की प्रारंभिक निवेश की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है, जबकि ‘दलित बंधु’ के जरिये प्रत्येक अनुसूचित जाति परिवार को एक उपयुक्त आय-सृजन व्यवसाय स्थापित करने के लिए 10 लाख रुपये की सहायता दी जाती है.

इसी तरह, ‘केसीआर किट’ के तहत गर्भवती महिलाओं को अपनी और नवजात शिशु की देखभाल के लिए 12,000 रुपये की सहायता राशि दी जाती है जबकि सभी गरीबों को ‘आसरा’ पेंशन दी जा रही है.
टीआरएस का नाम बदलने और इसे ‘राष्ट्रीय’ दल के रूप में बदलने के पीछे केसीआर की योजना 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष की राजनीति में खुद को मजबूत स्तंभ के रूप में पेश करना है.

एम. कोडंदरम ने क्या कहा

 

तेलंगाना जन समिति के संस्थापक और राजनीतिक विश्लेषक एम. कोडंदरम ने कहा है कि ‘‘यह पहली बार है, जब टीआरएस जैसी राज्य-मान्यता प्राप्त पार्टी खुद को बीआरएस के रूप में बदल रही है. यह एक दुस्साहस होने जा रहा है.’’

उन्होंने कहा कि पूरे आंध्र प्रदेश में मजबूत उपस्थिति वाली तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) एक राष्ट्रीय दल है, लेकिन तेदेपा की राष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रगति नहीं हुई है. कोडंदरम ने कहा कि इसी तरह का मामला ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के साथ है लेकिन तेदेपा और एआईएमआईएम दोनों ने ही अपनी पार्टियों का नाम नहीं बदला. एक और  विश्लेषक ने कहा कि बीजेपी राज्य में अपनी राजनीतिक गतिविधियां तेज कर रही है, जिसके चलते केसीआर लोगों का ध्यान राष्ट्रीय मुद्दों पर आकर्षित करना चाहते हैं.

कई क्षेत्रीय नेताओं से कर चुके हैं मुलाकात

 

प्रसिद्ध कौटिल्य इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी (केआईपीपी) के राजनीतिक विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह एक ‘जुआ’ है कि राव सीधे राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में उतर रहे हैं. हाल ही के दिनों में, केसीआर ने जद (एस)  पार्टी के प्रमुख एचडी देवेगौड़ा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) की ममता बनर्जी, आप के अरविंद केजरीवाल और अन्य सहित कई क्षेत्रीय पार्टी नेताओं से मुलाकात की है.

वह एक 'गैर- बीजेपी , गैर-कांग्रेसी' गठबंधन के पक्ष में हैं. केसीआर की राष्ट्रीय आकांक्षाओं पर राजनीतिक टिप्पणीकार के रामचंद्र मूर्ति ने कहा है कि या तो एक राष्ट्रीय नेता को साथ लेना या छोटे दलों के साथ विलय करना, राष्ट्रीय पार्टी बनने का एक तरीका था.

वरिष्ठ पत्रकार ने क्या कहा

 

कई तेलुगु और अंग्रेजी अखबारों के संपादक रहे मूर्ति ने कहा, ‘‘हालांकि, मुझे नहीं लगता कि कोई भी पार्टी टीआरएस के साथ विलय करने के लिए उत्सुक होगी. यहां तक ​​कि जेडीएस भी ऐसा नहीं करेगा. वह केवल पार्टी से गठबंधन करेगा. गुजरात से भी एक पूर्व सीएम आया और टीआरएस प्रमुख से मिला. उनका गठबंधन हो सकता है लेकिन उनके साथ विलय नहीं होगा.’’

विश्लेषक ने कहा कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर केसीआर को ‘बड़ा फायदा’ हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन यह निश्चित रूप से एक क्षेत्रीय से एक राष्ट्रीय नेता के रूप में ‘उनकी छवि सुधारने’में मदद करेगा. इससे उन्हें और उनकी पार्टी को प्रदेश में बीजेपी  के 'ऑपरेशन तेलंगाना' शुरू करने के मद्देनजर तेलंगाना में अपनी स्थिति को मजबूत करने में मदद मिलेगी.

दलितों, आदिवासियों और किसानों पर निर्भर है केसीआर

 

विश्लेषक ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर परिणामों से अलग यह एक फायदे का सौदा है क्योंकि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है. अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए केसीआर दलितों, आदिवासियों और किसानों के वोटों पर भी निर्भर हैं. उन्होंने अपने राज्य में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 6 से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया है.


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