नई दिल्ली: त्साई इंग-वेन ने दो दिन पहले ताइवान के राष्ट्रपति पद की दोबारा शपथ ली. इस शपथ ग्रहण कार्यक्रम में बीजेपी के दो सांसदों, मीनाक्षी लेखी और राहुल कस्वान ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया और वेन को बधाई दी. लेखी और कस्वान समेत दुनियाभर के 41 देशों के कुल 42 गणमान्य हस्तियों ने इस कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही शिरकत की.


गौरतलब है की चीन ताइवान को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा नहीं देता है और उसे अपना ही एक हिस्सा बताता है. त्साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में लेखी और कस्वान के वर्चुअल प्रजेंस (आभासी उपस्थिति) के बाद सवाल यह उठ रहा है कि क्या मोदी सरकार ने ताइवान के प्रति अपनी नीति बदल दी है? हालांकि इन दोनों सांसदो ने इस पर फिलहाल कुछ बोलने से परहेज़ किया मगर ABP NEWS को सरकार के उच्च सूत्रों ने बताया कि ऐसा निश्चित तौर पर चीन को ये इशारा करने के लिए किया गया कि अगर वो अपनी नीतियां नहीं बदलता तो भारत भी चीन के खिलाफ कुछ राजनयिक कदम उठा कर उसे सबक सिखा सकता है. एक तरफ लद्दाख में भारत और चीन कि फौज चीनी फौज कि हरकतों कि वजह से आमने सामने आ गए, लिहाजा ऐसे समय पर भारत का ये कदम उठाना मायने रखता है.


विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि भारत सरकार की अगुवा बीजेपी के 2 सांसदों का ताइवान के राष्ट्रपति के शपथ में शिरकत करना निश्चित तौर पर अहमियत रखता है. मगर इसका मतलब ये नहीं कि भारत अभी भी ताइवान को लेकर अपनी नीति में कोई बड़ा बदलाव कर रहा, या वहां राजनायिक मिशन शुरू करने का फिल्हाल कोई संकेत है. ऐसा करने के पीछे भारत का इरादा है चीन को संदेश देना कि अगर चीन भारत के प्रति अपनी नीतियां नहीं बदलता तो भारत भी चीन के कान मरोड़ सकता है.


दरअसल 2016 में जब त्साई ने पहली बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी तब मोदी सरकार ने न्योता मिलने के बावजूद अपने किसी सांसद को ताइवान नहीं भेजने का फैसला किया था. चीन ने शपथ ग्रहण समारोह में भारतीय सांसदों की उपस्थिति पर तो कोई विशेष बयान नहीं दिया, लेकिन ताइवानी राष्ट्रपति को बधाई संदेश देने वाले विदेशी नेताओं की निंदा जरूर की.


चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने पेइचिंग में कहा कि हमें उम्मीद और यकीन है कि (वो) ताइवान की आजादी के लिए पृथकतावादी गतिविधियों का चीन की जनता की ओर से विरोध किए जाने और राष्ट्रीय एकीकरण की मूल भावना का सम्मान करेंगे. लेखी और कस्वान ने अपने साझे संदेश में कहा कि भारत और ताइवान लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते हैं. जानकारों का कहना है कि भारत ऐसा करके ये स्पष्ट संदेश देने कि कोशिश कर रहा कि चीन अपनी पैंतरेबाजी से बाज़ नहीं आया तो भारत चुप नहीं बैठेगा. साफ है भारत अमेरिका बनाम चीन की प्रतिस्पर्धा की लड़ाई में चीन को अपने तरीकों से संदेश देना चाहता है.


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