नई दिल्ली: हर सुबह की तरह उषा देवी ने अपने बेटों के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उन्हें लम्बी उम्र की दुआएं दीं थीं. उषा देवी ने ये सपने में भी नहीं सोचा था के ये उनके दोनों बेटों का आखिरी दिन साबित होगा. एक बूढ़ी मां ने अपने दोनों बेटों को एक साथ खो दिया.


पल्लू से आंसुओ को पोंछते हुए सिसकियां लेती हुई उषा देवी बार-बार उस आखिरी मुलाक़ात की दुहाई देती रहीं और आस पास मौजूद लोग उन्हें दिलासा, लेकिन उस मां को कैसे सब्र आएगा, जिसने सुबह अपने बेटों को प्यार से विदा किया और शाम को उनकी मौत की सूचना मिली. उषा देवी कहती हैं कि कर्ज़ के चलते बेटों को धमकियां मिलती थीं, लेकिन इस मुसीबत की घड़ी में बस उन दोनों को यही फ़िक्र थी कि कहीं कोई उनकी बूढ़े मां बाप को कुछ कह ना दे.


दरअसल दिल्ली के चांदनी चौक इलाक़े के एक कोने में बनी कृष्णा ज्वेलर्स के दो मालिक भाईयों ने अपने सपनों की ही उस दुकान की तीसरी मंज़िल पर फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.
47 साल के अंकित और 42 साल के अर्पित राम-लक्ष्मण की जोड़ी की तरह थे. दोनों भाईयों में काफ़ी प्यार था. छोटा भाई अपने बड़े भाई को इतना मानता था कि हर क़दम पर उनकी सलाह लिया करता था और शायद यही वजह रही कि दोनों भाइयों ने साथ में ही अपना जीवन खत्म कर लिया.


दोनों भाई अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए दिन रात जुटे हुए थे. लॉकडाउन के बाद व्यापार में काफ़ी ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा. व्यापार में आई मंदी और बढ़ते क़र्ज़ के चलते दोनों ही भाई परेशान चल रहे थे. घटना स्थल से बरामद सुसाइड नोट में दोनों ने ही आर्थिक तंगी का ज़िक्र किया, लेकिन किसी का नाम या किसी पर आरोप नहीं लगाया.

उस समय उनके 78 साल के पिता अधेश्वर दास गुप्ता उसी दुकान की पहली मंज़िल पर मौजूद थे. उस दिन को याद करके कांपती आवाज़ में वो कहतें हैं कि सुबह शाम बस काम काम. इसी काम ने मेरे दोनों बच्चों की जान ले ली. दोनों एक साथ चले गए. ये भी नहीं सोचा उनके बाद हम लोग कैसे जिएंगे? हमारा क्या होगा? उनके बच्चों का क्या होगा. छोटे छोटे बच्चों को ये भी अहसास नहीं है कि अब कभी उनके पिता काम से वापस नहीं लौटेंगे.


पिता रोते हुए कहते हैं कि ना जाने कितने कष्ट में होंगे मेरे दोनों बच्चे. हमारी इज़्ज़त रखने के लिए फांसी लगा ली. परिवार वालों के लिए मानों इस सदमें से बाहर निकलना नामुमकिन है और शायद वो कभी उस खौफनाक दिन को भुला भी नहीं पाएंगे. एक दिन पहले सबने रात में बैठ कर एक साथ खाना खाया. मां बाप को तो केवल अपने दोनों बच्चों का मुस्कुराता हुआ चेहरा आंखों में घूम रहा है.
सिसकियां लेते हुए वो आरोप लगातें हैं कि जिस सेठ से दोनों ने कर्ज़ा लिया था, वो दुकान में बाउंसर भिजवा के धमकियां देता था. उन्हें बर्बाद करने की बात करता था. घर और परिवार को तबाह करने की धमकी देता था.


प्राइवेट फाइनेंसर से लोन लेने की ज़रूरत क्यों पड़ी? इस पर दूसरे ज्वैलरी शॉप के मालिक कहतें हैं कि एक दिन में अगर एक करोड़ का माल उठाना है और हमारे पास केवल 40 लाख हैं तो कौन सा बैंक एक दिन में लोन दे देगा. एक दिन तो छोड़ो एक हफ्ते में नहीं देगा.अब प्राइवेट फाइनेंसर के पास जाने के अलावा इन व्यपारियों के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं. इस रास्ते में खतरा है, लेकिन और कोई रास्ता भी नहीं.


चांदनी चौक काफ़ी बड़ा बाज़ार है. हज़ारों लोग यहां व्यपार कर रहें हैं, लेकिन क़र्ज़ का बोझ दोनों भाई झेल नहीं पाए. ऊपर से देशभर में लगे लॉकडाउन के चलते व्यापार स्लो हो गया था. परिवार का आरोप है कि इसी प्राइवेट फाइनेंसर ने दोनों भाइयों को डरा धमका कर ऐसा क़दम उठाने को मजबूर किया.


नार्थ डिस्ट्रिक्ट दिल्ली के डीसीपी अंटो अल्फोंस के ऑफिस की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया, "फिलहाल इस मामले की जांच की जा रही है. सुसाइड नोट पर किसी का नाम ना होने की वजह से जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती." पुलिस का कहना है कि वह मामले की तफ्तीश में जुटी है और परिवार वालों ने जो आरोप लगाए हैं, उसकी जांच कर रही है. यदि आरोप सही साबित हुए तो कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी.


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