Two Child Policy: दुनियाभर में बढ़ती जनसंख्या काफी सालों से चर्चा का विषय रही है. जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) से भविष्य में पैदा होने वाली समस्याओं से लोगों को आगाह किया जाता रहा है. भारत में भी जनसंख्या वृद्धि का मसला मौजूदा वक्त में काफी सुर्खियों में है. संयुक्त राष्ट्र (UN) की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2023 तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ देगा. ऐसे में टू चाइल्ड पॉलिसी (Two Child Policy) को लेकर एक बार फिर से बहस तेज हो गई है. भारत में अभी टू चाइल्ड पॉलिसी लागू नहीं है. कई बार इसे लागू करने की कोशिश की गई है, लेकिन सफलता नहीं मिली है. हालांकि देश में असम सहित कुछ राज्यों ने एक दायरे में इसे लागू किया है.


क्या कहती है यूएन की रिपोर्ट?


टू चाइल्ड पॉलिसी को लेकर चर्चा उस वक्त और तेज हो गई है जब संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में ये कहा गया है कि साल 2023 तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को भी पछाड़ देगा. 11 जुलाई को जारी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि साल 2022 में चीन की जनसंख्या 1.426 अरब है, जबकि भारत की आबादी 1.412 अरब है. इस लिहाज से भारत अगले साल तक आबादी के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ सकता है. वही विश्‍व की जनसंख्‍या इस साल 8 अरब तक पहुंचने की बात कही गई है. हालांकि रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि 1950 के दशक के बाद ऐसा पहली दफा है जब आबादी सबसे कम रफ्तार से बढ़ रही है. साल 2020 में यह दर घटकर एक फीसदी से भी कम रह गई है.


टू चाइल्ड पॉलिसी के क्या हो सकते हैं फायदे?


देश में आजादी के बाद से अब तक टू चाइल्ड पॉलिसी को 35 बार संसद में पेश किया जा चुका है. अब तक किसी भी सरकार ने इसे लागू करने की हिम्मत नहीं जुटाई है. इस पॉलिसी का मकसद शैक्षिक लाभ, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, बेहतर रोजगार के अवसर, होम लोन और टैक्स छूट के जरिए इसे अपनाने को प्रोत्साहित करना था. टू चाइल्ड पॉलिसी से आबादी पर नियंत्रण हो सकता है. आबादी नियंत्रित होने से सभी को रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, बड़ी आबादी को पौष्टक आहार मिलना संभव हो सकता है. लोगों की शैक्षणिक स्थिति के साथ जीवन स्तर में भी सुधार हो सकता है. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या कम हो सकती है.


टू चाइल्ड पॉलिसी के क्या हो सकते हैं नुकसान?


देश में अगर टू चाइल्ड पॉलिसी लागू होती है तो इसके कई नुकसान भी हो सकते हैं. चीन जनसंख्या नियंत्रण पॉलिसी का सबसे बड़ा उदाहरण है. यहां इस पॉलिसी से आबादी बिल्कुल थम गई, जिसके बाद बुजुर्गों की संख्या बढ़ गई. अब चीन ने अपने नागरिकों को 3 बच्चे पैदा करने की छूट दी है. यानी चीन की जनसंख्या नियंत्रण नीति एक तरह से गलत साबित हुई. अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से ये संकेत मिलता है कि परिवार नियोजन में दबाव या कम बच्चे पैदा करने का आदेश हानिकारक साबित हो सकता है. असुरक्षित गर्भपात की घटनाएं बढ़ सकती हैं. नवजात कन्या की हत्या या उन्हें लावारिश छोड़ने की घटनाओं में भी इजाफा संभव है. इसका असर ये होगा कि देश में सेक्स अनुपात और बिगड़ सकता है. काम करने वाले लोगों की भी कमी हो सकती है.


क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?


एबीपी न्यूज के वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही ये मानते हैं चूंकि भारत में प्रजनन दर बीते कुछ वर्ष से लगातार घट रही है, इसलिए टू चाइल्ड पॉलिसी जैसे किसी नियम की जरूरत ही नहीं है. वहीं, कई दूसरे एक्सपर्ट्स का भी कहना है कि टू चाइल्ड पॉलिसी का उल्टा असर हो सकता है. इससे लिंग चयन और असुरक्षित गर्भपात को बढ़ावा मिलेगा, जिससे देश में लिंगानुपात की खाई और चौड़ी हो सकती है.


केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा था?


केंद्र सरकार ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वो टू चाइल्ड पॉलिसी को अनिवार्य नहीं करेगी. एक याचिका को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय के हलफनामे के मुताबिक भारत में परिवार कल्याण योजना स्वैच्छिक है, जो दंपती को अपने परिवार का साइज तय करने और बिना किसी बाध्यता के अपनी पसंद के मुताबिक परिवार नियोजन के बेहतर तरीकों को अपनाने में सक्षम बनाता है. इसमें अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के प्रतिकूल प्रभावों का भी जिक्र किया गया था.


बढ़ती आबादी पर नेताओं की क्या है राय?


देश में बढ़ती आबादी (Population) को लेकर नेताओं की अपनी-अपनी राय है. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) मानते हैं कि सिर्फ जिंदा रहना ही जीवन का मकसद न हो. उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था कि खाना और जनसंख्या बढ़ाने का काम तो जानवर भी करते हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट किसी मजहब की नहीं, मुल्क की मुसीबत है. इसे जाति धर्म से जोड़ना ठीक नहीं है. इससे पहले यूपी के सीएम योगी ने कहा था कि जनसंख्या बढ़ने से अव्यवस्था और अराजकता की स्थिति आती है. रिलीजियस डेमोग्राफी पर भी इसका असर होता है.


एआईएमआईएम AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) का कहना है कि वो भारत में केवल दो बच्चे अनिवार्य ((Two Child Policy)) करने वाले किसी भी कानून का कतई समर्थन नहीं करेंगे. शिवसेना (Shiv Sena) ने भी हाल में बढ़ती आबादी पर अपने मुखपत्र सामना के जरिए चिंता जताई थी. सामना में कहा गया था कि जनसंख्या (Population) जैसे मसले को भी धार्मिक-राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है.


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