Kota Suicide Case: राजस्थान के कोटा में छात्रों के सुसाइड करने का सिलसिला थम नहीं रहा है. अब नीट (NEET) की तैयारी कर रहे दो छात्रों ने रविवार (28 अगस्त) को अपनी जान दे दी. करीब चार घंटे के भीतर ही ये दोनों घटनाएं हुई हैं. जिसके बाद राजस्थान सरकार ने कोटा के कोचिंग सेंटरों में रूटीन टेस्ट (Routine Test) कराने पर दो महीने के लिए रोक लगा दी है.
राजस्थान का कोटा वो जगह है जहां इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए आयोजित होने वाली संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए देशभर से हर साल लगभग दो लाख छात्र-छात्राएं आते हैं.
इस महीने अब तक 6 केस आए सामने
जनवरी से लेकर अब तक कोटा में सुसाइड के 24 केस सामने आ चुके हैं. अगस्त महीने में ही 6 स्टूडेंट की जान गई है. इन 24 में से सात बच्चे ऐसे हैं. जिन्हें कोचिंग में दाखिला लिए छह महीने भी पूरे नहीं हुए थे. कोटा में औसतन हर महीने तीन छात्र खुदकुशी करते हैं. साल 2022 में 15 छात्रों ने आत्महत्या की थी. यहां 2015 से 2019 के बीच 80 स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया है.
एक छात्र ने लगाई फांसी, दूसरा छठी मंजिल से कूदा
सोचिए ये बच्चे क्या झेल रहे होंगे. रविवार को बिहार के रोहतास जिले का 18 साल का आदर्श राज जहां फांसी पर लटक गया, वहीं 16 साल के अविष्कार संभाजी कासले ने इंस्टीट्यूट की छठी मंजिल से छलांग लगा दी. कोटा के पास कामयाबी की भले ही कितनी ही चाबियां हों, लेकिन दम तोड़ते बच्चों की जिंदगी बचाने वाला कोई ताला नहीं है.
अविष्कार के आखिरी पल सीसीटीवी में भी कैद हो गए. रविवार को कोटा का कोचिंग सेंटर खुला था और महाराष्ट्र के लातूर का रहने वाला अविष्कार टेस्ट पेपर देने पहुंचा. उसने पेपर दिया और रूम से बाहर निकला, लेकिन नीचे नहीं उतरा. वो छठी मंजिल पर गया और वहां से छलांग लगा दी. अविष्कार संभाजी कासले का डॉक्टर बनने का ख्वाब उसे कोटा खींच लाया था.
टेस्ट में कम नंबर बन रहे सुसाइड की वजह
कोटा के तलवंडी इलाके में रहकर NEET क्रैक करने के लिए वो मेहनत कर रहा था. माता पिता दोनों टीचर हैं. उन्होंने भी बेटे के सपने पूरा करने के लिए कसर नहीं छोड़ी. बच्चा अकेला न रहे. इसलिए नाना नानी साथ थे. मगर कोचिंग में ज्यादा नंबर लाने का दबाव दिमाग पर भारी पड़ने लगा. सही गलत सोचने का फर्क मिट गया. टेस्ट में कम नंबर जिंदगी पर हावी हो गए.
प्राथमिक जांच के आधार पर कोटा के पुलिस उपाधीक्षक धर्मवीर सिंह का कहना है कि अविष्कार के पिछली बार हुए रूटीन टेस्ट में कम नंबर आए थे. जिसे लेकर वह तनाव में था. नम्बर कम आने से वह डिप्रेशन में चल रहा था. स्टूडेंट की हिस्ट्री खंगाली जा रही है.
प्रशासन ने उठाए ये कदम
एक दिन में चार घंटे के अंदर दो बच्चे अपनी जिंदगी खत्म कर लें. सिस्टम के लिए, प्रशासन के दावों पर इससे बड़ा सवालिया निशान क्या होगा. जिला कलेक्टर ने कहा कि अब दो महीने तक कोटा में कोचिंग सेंटर में टेस्ट नहीं होगा. किसी तरह का कोई एग्जाम कंडक्ट नहीं कराया जाएगा. संडे को तो बिल्कुल नहीं. इसके अलावा ये भी तय किया कि हफ्ते में एक दिन फन-डे की तरह सेलिब्रेट होगा. उस दिन बच्चों को सिर्फ आधा दिन पढ़ाई करवाई जाए, बाकी वक्त मस्ती.
स्टूडेंट पुलिस स्टेशन खोलने का दिया सुझाव
सिटी एसपी शरद चौधरी ने एक और प्रपोजल दिया और कहा गया कि कोटा में बच्चों के लिए खासकर एक स्टूडेंट पुलिस स्टेशन तैयार किया जाए. जिसमें बच्चों खुलकर अपनी समस्या बता सकें. कोटा के डीएम ओपी बुनकर ने कहा कि नियमों की पालन करना बेहद आवश्यक है. ऐसे में अगर लापरवाही होती है तो कार्रवाई की जाएगी.
प्रस्ताव भेजने, स्टेशन खोलने और दो महीने तक टेस्ट कैंसिल करने से अगर बच्चों के सुसाइड थम जाएंगे तो इससे अच्छा और क्या होगा, लेकिन एक सच ये भी है कि कोटा में कोचिंग सेंटर्स अपने हिसाब से काम करते हैं. इसलिए तो सरकार चलाने वाले भी कोचिंग सेंटर्स को माफिया कहने में जरा भी नहीं हिचकिचाते.
राजस्थान सरकार के मंत्री क्या बोले?
राजस्थान सरकार में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि कोचिंग माफिया पैदा हो गये हैं, इनका इलाज करेंगे. मुख्यमंत्री के समझाने से नहीं समझ रहे हैं तो कानून के द्वारा समझायेंगे. वहीं मंत्री महेश जोशी ने कहा कि सुसाइड के बारे में सोचना महा पाप है. इनकी काउंसलिंग होनी चाहिए, बच्चों को तनाव नहीं लेना चाहिए.
मंत्री गोविंद राम मेघवाल ने कहा कि आजकल युवा अवसाद से पीड़ित हैं. पहले लोग परिवारों के साथ रहते थे. वे परिवारों से बात करते थे और मार्गदर्शन लेते थे. मैं अपील करता हूं विद्यार्थियों को बुरी संगत छोड़कर जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने को कहा जाए.
कोटा में क्या हो रहा है?
कोटा हमेशा उन टॉपर्स के लिए खबर बनता है जो वहां ट्यूशन लेकर इंजीनियरिंग और मेडिकल के इम्तेहान पास करते हैं. इस ड्रीम फैक्ट्री में तनाव और असफलता के डर से जूझ रहे बच्चों को गंभीरता से नहीं लिया जाता. जो हताश होकर खुद की जिंदगी खत्म करने जैसा कदम उठाते हैं.
अब सवाल है कि बच्चे अपनी जिंदगी खत्म क्यों कर रहे हैं. ऐसी क्या बात है जो उन्हें अंदर ही अंदर कचोटती है. जवाब है पढ़ाई का प्रैशर, इंजीनियर-डॉक्टर बनने का सपना. जिसे पूरा करने के लिए कोचिंग में दाखिला लेते हैं, लेकिन टेस्ट में कम नंबर डिप्रेशन की तरफ धकेल देते हैं.
आदर्श के भी आए थे कम नंबर
कोटा सिटी के एडिशनल एसपी भगवत सिंह हिंगड ने बताया कि आदर्श कोटा के लैंडमार्क में रहकर नीट की तैयारी कर रहा था. टेस्ट में उसके 720 में से 250 नम्बर आ रहे थे. वह रविवार को टेस्ट देकर आया था और उसने रात को सुसाइड कर लिया.
छात्र के भाई-बहन बिहार लौटे
आदर्श चार महीने पहले ही बिहार के रोहतास से आया था. माता पिता का सपना था कि बेटा बड़ा होकर नाम रोशन करेगा, डॉक्टर बनेगा. एक झटके में सब खत्म हो गया. भाई-बहन जो उसके साथ आए थे शहर छोड़कर चले गए हैं. जिस भाई के साथ आए थे उसकी लाश ले गए. आदर्श कभी नहीं लौटेगा, लेकिन आत्महत्या का जिम्मेदार कौन है .क्यों नहीं इसका परमानेंट सॉल्यूशन तलाशा जाना चाहिए.
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