मुंबई: सत्ता की लड़ाई में जब बात विरासत को आगे बढ़ाने और वारिस की तलाश की होती है तो अपने ही अपनों को दगा दे जाते हैं. भारतीय राजनीति ऐसी मिसालों से भरी पड़ी है. आज महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम में एक भतीजे ने चाचा के खिलाफ बगावत की और उनकी मर्जी के बगैर सत्ता के किंगमेकर बन गए. लेकिन दिलचस्प ये है कि इस सियासी खेल में जिस उद्धव ठाकरे के अरमानों पर पानी फिरा है, कभी उनके परिवार में भी चाचा-भतीजा में जंग छिड़ी थी और काबलियत और स्वभाविक वारिस होने के बावजूद बेटे को भतीजे पर तरजीह दी गई और सत्ता के इस खेल में राज ठाकरे बेगाने कर दिए गए.


देखिए, कल रात जब महाराष्ट्र में सत्ता के फाइनल खेल में एनसीपी और कांग्रेस ने ऐलान किया कि उद्धव ठाकरे के नाम पर सहमति बन गई है और अब वो सूबे के अगले सीएम होंगे, तब हर तरफ ये खबर गई कि अब महाराष्ट्र में एक महीने से जारी राजनीति उठापटक खत्म हो गई है. लेकिन सुबह बाजी पलट चुकी थी और सत्ता की बागड़ोर एनसीपी के नेता शरद पवार के भतीजे अजित पवार की मेहरबानी से बीजेपी को मिल गई.


इस सियासी खेल में पवार परिवार की फूट खुलकर सामने आ गई. अब चाचा और भतीजा एक दूसरे के खिलाफ आमने-सामने खड़े हैं. अब शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले अपने चचेरे भाई से साफ तौर पर नाराज दिख रही हैं. उन्होंने कहा कि परिवार और पार्टी दोनों टूट गई है. पार्टी और परिवार के टूट से दुखी वो खुद से सवाल करती हैं कि आखिर किस पर भरोसा किया जाए.


Explained: ये पहला परिवार नहीं, जो गद्दी के लिए बिखरा, सत्ता के खेल में परिवारों का टूटना पुराना शग़ल है


पवार परिवार में जो हो रहा है, उसमें सबसे बड़ा नुकसान हो रहा है ठाकरे परिवार का. उसी ठाकरे परिवार का जिस परिवार में कभी उद्धव नहीं, बल्कि उनके चचेरे भाई राज ठाकरे की तूती बोलती थी. उन्हें शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे का स्वभाविक वारिस माना जाता था, लेकिन जब शिवसेना में वारिस के ऐलान करने का वक्त आया तो बाला साहेब ने अपने बेटे को तरजीह दी और भतीजे को बेगाना कर दिया. तब भतीजे ने चाचा से विद्रोह करके नई पार्टी बना ली.


बाला साहेब और राज ठाकरे के रिश्ते


बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे हमेशा अपने चाचा के कदमों पर चला करते थे. माना जाता था कि बाल ठाकरे राज को ही पार्टी की कमान देंगे. लेकिन 2004 में बाल ठाकरे ने भतीजे को दरकिनार करके उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया.


बाला साहेब के इस फैसले को राज ठाकरे स्वीकार नहीं कर पाए. चाचा-भतीजे में दूरी बढ़ती गई और आखिरकार 2005 में राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए. अगले साल उन्होंने अपनी पार्टी बना ली और पार्टी का नाम रखा महाराष्ट्र नव निर्माण सेना. राज ठाकरे की पार्टी ने 2009 में विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई और 14 विधायक उनकी पार्टी के बने, लेकिन जैसे-जैसे वक्त आग बढ़ता गया, राज ठाकरे की सियासत सिकुड़ती गई.


राज ठाकरे की पार्टी का 2014 और 2019 में सिर्फ 1-1 विधायक ही चुनाव जीत पाया. वहीं शिवेसना 2014 में 63 विधायकों और 2019 में 56 विधायकों के साथ राज्य की दूसरे सबसे बड़ी पार्टी बनी. सियासत में आज राज ठाकरे हाशिए पर हैं और उद्धव ठाकरे सूबे की सीएम की रेस में हैं. लेकिन जिस तरह उद्धव ठाकरे की कुर्सी अचानक फिसल गई है, उससे चाचा भतीजे की पुरानी जंग का किस्सा एक बार फिर जिंदा हो गई है.


प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोले उद्धव ठाकरे: यह महाराष्ट्र पर सर्जिकल स्ट्राइक, लोग इसका बदला लेंगे