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महाराष्ट्र: ठाकरे सरकार को होने जा रहे हैं 100 दिन पूरे, जानें कब कब मंडराए संकट के बादल?

महाराष्ट्र के महाविकास गठबंधन सरकार के 100 दिन पूरे होने वाले हैं. तो आइए जानते हैं उन पहलुओं के बारे में जिससे ठाकरे सरकार को दो चार होना पड़ा.

मुंबई: उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र के महाविकास गठबंधन सरकार को 100 दिन पूरे हो रहे हैं. पिछले साल 28 नंवबर को उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के सीएम पद की शपथ ली थी. ठाकरे का मुख्यमंत्री बनना कई मायनों में ऐतिहासिक था. एक तो ये सरकार तीन विपरीथ विचारधाराओं की पार्टियों के एक साथ आने से बनी थी. दूसरा सरकार बनाने के लिये शिवसेना को अपने आक्रमक हिंदुत्व की विचारधारा पर नरम होना पड़ा. तीसरा इन तीनों पार्टियों के साथ आने से विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी विपक्ष में चली गई और चौथा शरद पवार ने फिर एक बार महाराष्ट्र की वर्तमान सियासत में अपने आप को प्रासंगिक बना दिया.

इन सौ दिनों के दौरान कई बार ऐसे मौके आए जब लगा कि शायद ये सरकार किसी भी वक्त गिर सकती है. कई मुद्दों पर तीनों पार्टियों में अनबन हो गई. नेताओं के बीच जुबानी जंग हुई, लेकिन आखिरकार बात ज्यादा बिगड़ने से पहले ही मामला संभाल लिया जाता. सत्ता की डोर ने तीनों पार्टियों को एक साथ बनाये रखा. शरद पवार और उद्धव ठाकरे के बीच आपसी तालमेल ने सरकार को खतरे में पड़ने से बचा लिया. एक नजर डालते हैं उन मसलों पर जब सरकार में शामिल पार्टियों के बीच आपसी विवाद हो गया और गोली बगल से निकल गई.

नागरिकता संशोधन कानून

शिवसेना के लिये सबसे पहली चुनौती बनकर आया नागरिकता संशोधन बिल. जब ये बिल लोकसभा में पेश हुआ तो शिवसेना ने इसके पक्ष में वोट किया, लेकिन बात तब बिगड़ गई जब कांग्रेस और एनसीपी ने इस बिल के प्रति अपना विरोध जताया. नतीजा ये हुआ कि जिस शिवसेना ने लोकसभा में बिल के पक्ष में वोट दिया था उसने महाराष्ट्र सरकार में अपनी साथी पार्टियों का विरोध देखते हुए राज्यसभा में अपना रूख बदल लिया और बिल के लिये होने वाले मतदान में शामिल ही नही हुई. इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने कटाक्ष किया कि महाराष्ट्र की जनता जानना चाहती है कि रातोंरात शिवसेना का इस मसले पर स्टैंड कैसे बदल गया. इसके बाद फिर एक बार शिवसेना के रूख में बदलाव हुआ. सामना को दिये एक इंटरव्यू में उद्धव ठाकरे ने कहा कि इस कानून के प्रति उनका विरोध नहीं है. इस कानून को लेकर लोगों में गलतफहमी हुई है.

सावरकर को लेकर शिवसेना बनाम कांग्रेस

नागरिकता संशोधन बिल को लेकर हुई छीछालेदर से अभी शिवसेना उबरी भी न थी कि वीर सावरकर को लेकर विवाद खड़ा हो गया. 14 दिसंबर को पीएम मोदी के मेक इन इंडिया मुहीम का मजाक उड़ाने को लेकर मचे विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए वीर सावरकर को लेकर आपत्तिजनक बातें कह दीं. सावरकर के अपमान के मुद्दे पर इससे पहले शिवसेना हमेशा आक्रमक रूख अपनाती आई है. उसके सामने अब सवाल था कि वो राहुल गांधी पर कैसे हमला करे क्योंकि उन्ही की पार्टी के समर्थन से तो उद्धव सीएम बन पाये थे. शिवसेना को सरकार में भी रहना था और साथ ही ये दिखाना भी था कि वो सावरकर का अपमान सहन करने वाली नहीं है. ऐसे में औपचारिकता के लिये संजय राऊत ने एक ट्वीट कर दिया कि हम पंडित नेहरू और महात्मा गांधी का सम्मान करते हैं. तुम सावरकर का अपमान मत करो. सावरकर महाराष्ट्र के ही नहीं, देश के भी नायक हैं.

यलगार परिषद की जांच

मौजूदा ठाकरे सरकार से देवेंद्र फडणवीस की सरकार के कार्यकाल में पुणे पुलिस ने कुछ वामपंथी सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अर्बन नक्सल होने का आरोप लगाया था. 31 दिसंबर 2017 को पुणे में इन कार्यकर्ताओं की एक बैठक हुई थी जिसे यलगार परिषद नाम दिया गया. परिषद के बाद पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में दंगा भडक गया. इस सिलसिसे में यलगार परिषद में शामिल होने वाले कुछ नेताओं को गिरफ्तार किया गया.

जनवरी 2020 में एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को खत लिखकर मांग की इस मामले की जांच के लिये एसआईटी गठित की जाए क्योंकि पूर्व की फडणवीस सरकार ने अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए कई बेगुनाहों को फंसाया है. जैसे ही पवार के खत की खबर बाहर आई केंद्र सरकार ने जांच को पुणे पुलिस से हटाकर एनआईए को सौंपने का फैसला किया.

गृहमंत्री अनिल देशमुख जो कि एनसीपी से आते हैं उन्होने इस फैसले का विरोध किया और कहा कि जांच एनआईएक को न दी जाये इसलिये कानूनी राय ली जायेगी. लेकिन जब तक कि देशमुख कानूनी राय हासिल कर पाते, उद्धव ठाकरे ने उनके विरोध को दरकिनार करते हुए जांच एनआईए को सौंपने की मंजूरी दे दी.

उद्धव ठाकरे के इस फैसले का कांग्रेस और एनसीपी ने कड़ा विरोध किया. कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने ठाकरे के प्रति अपनी नाराजगी जताई. ऐसा लगा कि इस मसले को लेकर अब शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी के बीच ठन जायेगी, लेकिन मामला जल्द ही संभाल लिया गया. तीनो ही पार्टियों की तरफ से कुछ दिनों बाद ही बयान आ गया कि सरकार को कोई खतरा नहीं है.

मुस्लिम आरक्षण

फऱवरी के आखिरी हफ्ते में उस वक्त राज्य में सियासी तूफान आ गया जब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नवाब मल्लिक ने ऐलान किया कि शिक्षा संस्थानों में मुसलमानों को 5 फीसदी आरक्षण देने के लिये कानून लायेगी. उन्होने ये भी कहा कि रोजगार के क्षेत्र में भी मुसलमानों को आरक्षण दिये जाने पर विचार हो रहा है. दरअसल 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने जाते जाते मुसलमानों को आरक्षण देने के लिये एक अध्यादेश लाया था, लेकिन उसे अदालत में चुनौती दी गई. बाद में आई फडणवीस सरकार ने भी उस अध्यादेश को अप्रभावी हो जाने दिया. अब सबकी निगाहें शिवसेना पर थीं कि क्या एक मुसलिम विरोधी इतिहास रखने वाली शिवसेना इस तरह के कानून का समर्थन करेगी. मल्लिक के बयान के बाद फंसी शिवसेना की ओर से सिर्फ इतना कहा गया कि मुसलिम आरक्षण पर कोई चर्चा नहीं हुई है.

मुफ्त बिजली

टकराव सिर्फ शिवसेना का कांग्रेस-एनसीपी के साथ ही नहीं हुआ बल्कि कांग्रेस-एनसीपी के बीच भी विवाद हुआ. कांग्रेस के कोटे से बिजली मंत्री बने नितिन राऊत ने हाल ही में ऐलान किया कि जो लोग प्रति माह 100 यूनिट से कम बिजली का इस्तेमाल करते हैं उन्हें बिजली फ्री मिलेगी. उनके इस बयान पर एनसीपी ने आपत्ति जताई. उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री अजीत पवार ने राऊत के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि राज्य की आर्थिक स्थिति को देखते हुए मुफ्त बिजली नहीं दी जा सकती. इसपर राऊत ने कहा कि उन्होने एक कमिटी बनाई है और वे मुफ्त बिजली का प्रस्ताव वित्त विभाग को जरूर भेजेंगे.

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