मुंबईः ठाकरे परिवार से पहली बार कोई महाराष्ट्र के सीएम की कुर्सी पर बैठ चुका है. 59 साल के उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र को चलाएंगे. आज शिवाजी पार्क स्टेडियम में भव्य कार्यक्रम में उद्धव ठाकरे ने सीएम पद की शपथ ली. शिवसेना प्रमुख के तौर पर उद्धव ने अपनी पार्टी के लिए क्या किया और बाल ठाकरे के बाद उद्धव ने पार्टी को कैसे संभाला, क्या है उद्धव की ताकत और कैसे महाराष्ट्र की राजनीति में गेमचेंजर बनकर उभरे उद्धव ठाकरे इसका पूरा घटनाक्रम यहां जान सकते हैं.


ठाकरे परिवार से पहली बार कोई सीएम
इसे ही राजनीति कहते हैं, जिनके नाम का कोई एलान नहीं था और जिनके चेहरे की सीएम की कुर्सी के लिए कोई चर्चा नहीं थी वो उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. पहली बार ठाकरे परिवार से कोई सीधे सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले चुका है.


फोटोग्राफी का रखते हैं शौक
कौन जानता था कि 20 साल पहले हाथ में कैमरा लेकर जंगल में जानवरों की तस्वीर लेने का शौक रखने वाला ये शख्स महाराष्ट्र की राजनीति का सर्वेसर्वा बन जाएगा. कहा जाता है कि एक दौर था कि उद्धव राजनीति में खास दिलचस्पी नहीं रखते थे और उनका एक ही जुनून था फोटोग्राफी. कैमरे पर उद्धव की पकड़ इतनी कसी हुई है कि उनके खींचे हुए फोटोग्राफ बड़ी बड़ी मैगजीनों में छपे और प्रदर्शनी में शामिल हुए. जेजे स्कूल ऑफ ऑर्ट्स से ग्रेजुएट उद्धव प्रोफेशनल फोटोग्राफर रहे. लेकिन बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे ने जब राजनीति में एंट्री ली तो जुनून का रंग बदलता गया.



2000 के बाद से राजनीति में लेने लगे दिलचस्पी
साल 2000 के बाद से उद्धव राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे और पिता बाल ठाकरे के कार्यक्रमों का हिस्सा बनने लगे. फिर वो वक्त भी आया जब उद्धव के नाम पर बड़ी जिम्मेदारी का एलान हुआ वो साल था 2002. साल 2002 में उद्धव ठाकरे को मुंबई महानगरपालिका के चुनाव में पार्टी को संभालने की जिम्मेदारी मिली थी और उस चुनाव में शिवसेना में अच्छा प्रदर्शन किया था. तब से लेकर अब तक बीएमसी पर शिवसेना ने अपनी पकड़ को कमजोर नहीं पड़ने दिया. 2002 में बीएमसी चुनाव के ठीक बाद यानि साल 2003 में उद्धव ठाकरे को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया. और सिलसिला यहां नहीं रुका. साल 2004 में ही बाल ठाकरे ने पार्टी के अगले प्रमुख के तौर पर उद्धव ठाकरे के नाम का एलान कर दिया.


राज ठाकरे हुए अलग
एलान तो हो गया लेकिन यहीं से शिवेसना में फूट का बीज पड़ गया. दरसअल बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी उनके भतीजे राज ठाकरे को माना जाता था. राज ठाकरे उद्धव ठाकरे से कहीं ज्यादा और सक्रिय तरीके से बाल ठाकरे के साथ नजर आते थे. राज ठाकरे की आंखों में बाल ठाकरे वाली ही आक्रामकता देखी जाती थी. लेकिन तमाम कयासों से उलट शिवसेना की बागडोर उद्धव ठाकरे के हाथ में थमा दी गई थी. राज ठाकरे ये बर्दाश्त ना कर सके और साल 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली.


उद्धव ठाकरे ने पार्टी को टूटने नहीं दिया
उस दौर में राज ठाकरे की आक्रामकता और ताकत देखकर लगता था कि उद्धव राजनीति में राज ठाकरे से पीछे छूट जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं, उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे के अलग होने के बावजूद पार्टी को टूटने नहीं दिया. उद्धव ने अपने तरीके से राजनीति और शिवसेना को आगे बढ़ाने का काम किया. और अब उद्धव और राज ठाकरे के राजनीतिक कद का फर्क दुनिया के सामने है. उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन चुके हैं जबकि राज ठाकरे की पार्टी का सिर्फ एक विधायक चुनाव जीता है.


राजनीति में देर से एंट्री लेने के बावजूद उद्धव के नेतृत्व में पार्टी ने कई स्थानीय चुनावों और विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया यानी पिता बाला साहेब ठाकरे की कमी उद्धव ने पार्टी को खलने नहीं दी. शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादक के तौर पर पार्टी की विचारधारा को उद्धव ने कमजोर नहीं पड़ने दिया. उद्धव ठाकरे ने साल 2007 में विदर्भ क्षेत्र में किसानों की कर्ज माफी के लिए एक सफल अभियान चलाया जब सूखे की वजह से किसान भारी कर्ज में डूबे हुए थे.


माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री का पदभार संभालते के बाद ही उद्धव किसानों की कर्जमाफी को लेकर बड़ा एलान करेंगे. उद्धव ने महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों से करीब 400 किसानों को भी शपथ समारोह के लिए न्योता दिया था.