मुंबई: महाराष्ट्र होने वाले सभी बड़े फैसले पर अमल जिस मंत्रालय में होता है उसी जगह पर एक ऐसी घटना हुई है जिसे सुनने के बाद हर कोई दंग रह गया है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कुछ महीने पहले महाराष्ट्र के पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट (पीडब्ल्यूडी) के एक काम मे अनियमितता पाए जाने को लेकर तैयार की फाइल पर हस्ताक्षर कर उससे जुड़े इंजीनियरों के खिलाफ जांच के आदेश दिए थे.


लोगों के होश तब उड़े जब उनको पता चला कि मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर के ठीक ऊपर लाल स्याही से किसी ने यह लिख दिया कि एक इंजीनियर को छोड़कर बाकियों के खिलाफ जांच की जाए. इस घटना के बाद मंत्रालय के अधिकारियों ने अज्ञात शख्स के खिलाफ मुंबई के मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन में चीटिंग और फोर्जरी का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.


क्या था पूरा मामला?
दरअसल यह पूरा मामला बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस की नेतृत्व वाली सरकार के समय का है. कुछ साल पहले जेजे स्कूल ऑफ आर्ट भवन में किए गए काम में कथित वित्तीय अनियमितता पाए जाने के आरोप के बाद उस समय कई पीडब्ल्यूडी इंजीनियरों के खिलाफ विभागीय जांच की सिफारिश की थी. महाविकास अघाड़ी की सरकार सत्ता में आने के बाद पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर अशोक चव्हाण ने उस जांच का समर्थन किया, इसे मुख्यमंत्री कार्यालय भेज उद्धव ठाकरे के सामने रखा गया.


कुछ दिनों बाद जब फाइल पीडब्ल्यूडी विभाग वापस लौटाई गई तब उस फाइल को पढ़ कर चव्हाण हैरान रह गए. मुख्यमंत्री ने विभाग के प्रस्ताव में बदलाव किया था. मुख्यमंत्री के सिग्नेचर के ऊपर लाल रंग की स्याह से लिखा था कि एक इंजीनियर को छोड़कर बाकियों के खिलाफ जांच की जाए. चव्हाण को उस समय संदेह हुआ और उन्होंने जब ध्यान से देखा कि ठाकरे के हस्ताक्षर के ऊपर लाल रंग की स्याही से लिखे आदेश को बहुत ही सटा सटा कर लिखा था मानो जगह की कमी हो.


चव्हाण खुद भी मुख्यमंत्री का पदभार संभाल चुके हैं उन्हें पता है लोग पहले टिप्पणी लिखते हैं, चाहे उसके लिए कितनी भी जगह क्यों ना लगे और उसके बाद ही सिग्नेचर करते हैं. यहां यह बात हूबहू उल्टी नजर आ रही थी. सूत्रों की माने तो चव्हाण ने दोबारा से जांच करने के लिए उस फाइल को मुख्यमंत्री कार्यालय भिजवाया.


मुख्यमंत्री कार्यालय सभी फाइल्स को मुख्यमंत्री के सिग्नेचर के तुरंत बाद स्कैन करके अपने रिकॉर्ड में रख लेता है. चव्हाण की भेजी फाइल के बारे में जब मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने अपने सिस्टम में देखा तो पाया मुख्यमंत्री ने उस फाइल पर सिर्फ हस्ताक्षर किए थे और लाल रंग की स्याही से किसी भी जांच को बंद करने जैसा कोई नोट नहीं लिखा था.


आपको बता दें कि जिस इंजीनियर के खिलाफ जांच रोक दी जाए वाला नोट लिखा था वह इंजीनियर तब (उस समय जब मामला आया था) एग्जीक्यूटिव था जो अब प्रमोट होकर सुपरिंटेंडेट इंजीनियर बन गया है. मुंबई पुलिस के डीसीपी एस चैतन्य ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि यह मामला 2020 में मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 420, 465, और 471 के अंतर्गत दर्ज हुआ था जिसकी जांच चल रही है. अभी तक इस मामले में कोई भी आरोपी या फिर संदिग्ध हमें नहीं मिला है.


पहले भी सामने आया है कुछ इसी तरह का मामला!
साल 2018 में, जोगेश्वरी पूर्व में स्थित एक 500 करोड़ रुपये कीमत के भूखंड के संबंध में बीएमसी और एक विकासक के बीच विवाद चल रहा था तभी उस समय के बीएमसी कमिश्नर अजोय मेहता ने उस फाइल पर नोटिंग करते हुए लिखा कि हमे इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय में चैलेंज करना चाहिए पर किसीने उस नोटिंग में एक मामूली सा बदलाव कर दिया और लिखा कि हमे इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय में चैलेंज नही करना चाहिए. यह नोटिंग इंग्लिश में लिखी थी (असली वाला नोटिंग "we should challenge this in the Supreme Court". बदलाव करने के बाद का नोटिंग "We shouldn't challenge this in the Supreme Court")) इसके बाद बीएमसी ने इस बात की शिकायत आज़ाद मैदान पुलिस स्टेशन में की थी.


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