उज्जैन: दुनिया के प्राचीनतम नगरों में शामिल मध्य प्रदेश का उज्जैन शहर ही संभवतः ऐसा इकलौता स्थान है, जहां प्रतिदिन किसी एक व्यक्ति की मौत होना अवश्यम्भावी है. वजह यह है कि यहां काल के अधिपति और संहार के देवता भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजमान हैं. देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपना अलग विशेष महत्व इसलिये और भी अधिक है, क्योंकि संसार में एकमात्र यही शिवलिंग है, जो दक्षिणमुखी है. यहां हर सुबह चार बजे होने वाली भस्मारती में अन्य सामग्री के अलावा ताजा चिता की भस्म का अंश भी होता है. चूंकि शिव को भस्म प्रिय है, लिहाज़ा यहां स्थित शिवलिंग पर भस्म के श्रंगार से ही दिन की शुरुआत होती है और उस समय होने वाली आरती भस्मारती कहलाती है.


ऐसी मान्यता है कि तब शिव जागृत अवस्था में होते हैं और वे अपने भक्तों की हर मनोकामना को सरलता से पूर्ण करते हैं. इसी मान्यता के कारण इसमें शामिल होने के लिए देश-विदेश के भक्तों की भीड़ उमड़ती है और कई बार मंदिर प्रशासन को श्रद्धालुओं की संख्या पर पाबन्दी लगानी पड़ती है.


पौराणिक ग्रंथों में अवंतिका और उज्जयिनी के नाम से प्रसिद्ध तथा काल की गणना का केंद्र मानी जाने वाली यह नगरी तंत्र-साधना और ज्योतिष विद्या में भी सबसे अधिक महत्व रखती है. हर 12 साल में यहां लगने वाले सिंहस्थ (कुम्भ ) पर्व के अवसर पर देश-विदेश से साधु-संतों के अलावा तंत्र सिद्धि प्राप्त करने के लिए तांत्रिक व अघोरी भी बड़ी संख्या में जुटते हैं.


केंद्र में कांग्रेस शासनकाल के दौरान सत्ता के गलियारे में सबसे ताकतवर समझे जाने वाले चंद्रास्वामी ने एक इंटरव्यू में खुद यह बताया था कि उनके पास जो भी सिद्धि है, वह उन्हें उज्जैन में साधना करने से ही प्राप्त हुई है. तंत्र सिद्धि पाने के लिए मुख्य रुप से यहां के चक्रतीर्थ श्मशान घाट पर जलती हुई चिताओं के निकट पूरी रात बैठकर अघोरी साधना करते हैं. हिमालय के पहाड़ों पर तपस्या करने वाले ऐसे ही, एक अघोरी हैं बाबा बम बम नाथ, जो पिछले 16 बरस से यहां श्मशान परिसर में बनी एक कुटिया में रहते हैं और रात तीन बजे साधना करने के बाद जलती चिताओं की भस्म से अपने शरीर पर लेप करते हैं और फिर वहां से निकल महाकाल की भस्मारती में शामिल होते हैं.


वह बताते हैं, "इतने बरसों में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं भस्मारती में शामिल न हो पाया हूं, भले ही तूफान-बारिश हो या कड़ाके की ठंड. महाकाल की इच्छा से ही यह साधना हो रही है और वे ही करवा रहे हैं, लेकिन मेरी साधना का उद्देश्य लोगों का कल्याण करना है, न कि मंत्री-सन्तरियों के फायदे के लिये गलत क्रियाएं करना. आप चंद्रास्वामी से मेरी तुलना नहीं कर सकते. मैं अघोरी हूं जो सिर्फ शिव की इच्छा और उसी के आदेश का पालन करता है."


वैसे कहते भी हैं कि जो महाकाल का भक्त है, उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता. महाकाल के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है. महाकाल की महिमा का वर्णन इस प्रकार से भी किया गया है -
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥

इसका तात्पर्य यह है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है. महाकाल को काल का अधिपति माना गया है तथा खासतौर पर भगवान शंकर का पूजन करने से मृत्यु का भय दूर हो जाता है एवं अगर सच्चे मन से भगवान शंकर की पूजा की जाये तो मृत्यु के बाद यमराज द्वारा दी गई यातनाओ से भी मुक्ति मिल जाती है.


उज्जैन की पहचान सिर्फ सिंहस्थ पर्व ही नहीं है, बल्कि अवंतिका, विशाला, अमरावती, सुवर्णश्रृंगा, कुशस्थली और कनकश्रृंगा ग्रंथों और इतिहास के पन्नों में चमकती यह प्राचीन नगरी वही है जहां राजा हरिश्चंद्र ने मोक्ष की सिद्धि की थी. जहां सप्तर्षियों ने मुक्ति प्राप्त की थी और जो भगवान श्रीकृष्ण की पाठशाला थी, भर्तृहरि की योग भूमि थी. जहां कालिदास ने ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ और मेघदूत जैसे महाकाव्य रचे. राजा विक्रमादित्य ने अपना न्याय क्षेत्र बनाया. बाणभट्ट, संदीपन, शंकराचार्य, वल्लभाचार्य जैसे संत विद्वानों ने साधना की और न जाने कितनी महान आत्माओं की यह कर्म और तपस्थली बनी.


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