UCC: 'शरिया में रत्तीभर का बदलाव भी नहीं है मंजूर', लॉ कमीशन से बोला AIMPLB
Uniform Civil Code: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रतिनिधिमंडल ने लॉ कमीशन के चेयरमैन से मुलाकात की थी. इस दौरान बोर्ड ने यूसीसी को लेकर अपनी राय रखी.
Uniform Civil Code: देश में समान नागरिक संहिता (UCC) पर जारी बहस के बीच मुसलमानों की संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने साफ कर दिया है, उसे शरिया में जरा भी बदलाव मंजूर नहीं है. पर्सनल लॉ बोर्ड ने लॉ कमीशन से मुलाकात में ये बात कही है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार (23 अगस्त) को लॉ कमीशन के चेयरमैन जस्टिस ऋतु राज अवस्थी से मुलाकात की थी. इस दौरान मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि 'शरिया के मूल स्वरूप में रत्ती भर का भी बदलाव मंजूर नहीं होगा.'
बोर्ड के बयान के अनुसार, लॉ कमीशन ने पर्सनल लॉ बोर्ड से हलाला, मुता निकाह (एक सीमित समय के लिए शादी) और लैंगिक न्याय को लेकर भी राय मांगी.
शादी की उम्र पर पर्सनल लॉ बोर्ड ने दी राय
एआईएमपीएलबी ने शादी की उम्र के बारे में विधि आयोग को बताया कि इस्लाम में निकाह के लिए कोई निश्चित उम्र नहीं है. अगर शौहर और बीवी दोनों शादी की शर्तें पूरी करने की स्थिति में हैं, तो वे निकाह कर सकते हैं. बोर्ड ने अपने बयान में कहा कि अगर किसी को धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों से दिक्कत है तो वे पुरुष और महिला स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी कर सकते हैं, जो एक सेक्युलर कानून है.
बोर्ड का दावा- लॉ कमीशन से मिला आश्वासन
अपने बयान में बोर्ड ने दावा किया कि बैठक के अंत में जस्टिस अवस्थी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे कोई महत्वपूर्ण बदलाव का सुझाव नहीं देने जा रहे हैं जो शरिया कानून की बुनियादी विशेषताओं को बदल सकता है और उनकी भूमिका सिर्फ सुझाव देना है. यह सरकार पर है कि वह विधेयक को अंतिम रूप दे और इसे चर्चा के लिए संसद में रखे.
यूसीसी मुसलमानों को क्यों नामंजूर?
यूसीसी मुसलमानों के लिए क्यों नामंजूर है, ये समझाते हुए रहमानी ने आयोग को बताया, शरीयत कानून (मुस्लिम पर्सनल लॉ) दो मुख्य बातों पर आधारित है- एक कुरान और सुन्ना (पैगंबर के शब्द और कार्य) और दूसरा इज्तेहाद (इस्लामी विद्वानों की राय). मुसलमानों के लिए ये दोनों सबसे अहम है. उन्होंने कहा, ''हमारे लिए शरिया के मूल स्वरूप में एक मिनट का भी बदलाव स्वीकार्य नहीं होगा.''
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