UCC: यूसीसी पर बुरा मानने से पहले इस बात को रखा जाए, फैजान मुस्तफा ने बताया
Uniform Civil Code Explained: यूसीसी में सबसे पहले उन जगह को टच करना चाहिए जहां पर सहमति बन चुकी हो. यानी उस जगह रिफॉर्म या यू कहें कानून में संशोधन का विरोध करने वाला कोई न हो.
Uniform civil Code: यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) पर इस समय कोर्ट से लेकर संसद तक बहस चल रह है. सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार दोनों कानून में इस रिफॉर्म की इस प्रक्रिया को अपनाने पर जोर दे रहे हैं. इसके बावजूद कुछ लोग यूसीसी का विरोध कर रहे हैं. खासकर मुस्लिम समाज इसका पुरजोर विरोध कर रहा है. यूसीसी को लेकर मतभेद होने के साथ-साथ लोगों को इसकी सही जानकारी न होना भी माना जा रहा है. कानून के जानकार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्ववाद्यालय के प्रोफेसर फैजान मुस्तफा का मानना है. कभी-कभी जानकारी के अभाव में अच्छी बात का भी विरोध होने लगता है.
पहले करना चाहिए ये कामः कानूनविद् फैजान मुस्तफा खुद यूनिफार्म सिविल कोड लाने के पक्ष में हैं. उनका मानना है कि किसी भी समाज और देश की तरक्की में समय के अनुसार कानूनों में भी बदलाव जरूरी होता है. साथ ही उऩ्होंनें चेताया भी है कि यूसीसी को एकसाथ लागू कतई नहीं करना चाहिए. अन्यथा इसके कुछ दुष्परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं. यूसीसी में सबसे पहले उन जगह को टच करना चाहिए जहां पर समाज की सहमति बन चुकी हो. यानी उस जगह रिफॉर्म या यू कहें कानून में संशोधन का विरोध करने वाला कोई न हो. यूसीसी में धार्मिकता से जुड़े हुए पहलुओं को पहले कतई न छुआ जाए.
इन विषयों पर सबकी ली जाए रायः अगर यूसीसी में किसी धार्मिक मामले या जातिगत मामले में रिफॉर्म की जरूरत पड़ती है, तो सबसे पहले उस समाज के लोग, कानून के जानकारों और धार्मिक गुरुओं को एक साथ एक जगह बैठाकर उसपर बात करनी चाहिए. जिस बात सभी लोग एकमत हो जाए उसे रिफॉर्म की प्रक्रिया में शामिल कर लिया जाए. यूसीसी में थोड़े लचीलेपन की गुंजाइश अवश्य रखनी चाहिए.
संशोधित हिंदू लॉ बिल 1941 में था क्या? जो बिल 1941 में तैयार किया और 1943 में संशोधनों के साथ पेश किया गया था. उसमें इस बात का उल्लेख किया गया था कि पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति की वारिस उसकी विधवा पत्नी को बनाया जाए. इसी बात को लेकर बवाल मच गया था. हिंदू समाज से इसकी कड़ी प्रतिक्रिया आई थी. उसमें तरह-तरह के सवाल उठे. जैसे यदि दो पत्नियां होंगी तो क्या होगा. दोनों पत्नियां अलग-अलग जाति हैं तो क्या होगा. यह एमेडमेंट करने से पहले महिला के चरित्र के बारे में जानना जरूरी होगा. अगर वह महिला पहले ही अपने पिता की संपत्ति में हकदार है तो क्या उसे दोनों जगह हिस्सा मिलना चाहिए ? उस महिला के कोई औलाद न हो और लड़का या लड़की गोद ली गई तो संपत्ति बंटवारे में कैसी वसीयत बनेगी आदि-आदि.
हिंदू लॉ कोड इसीलिए फंसा थाः भारत में हिंदू लॉ कोड लाकर पुराने हिंदू पर्सनल लॉ के नियमों में रिफॉर्म करने की कोशिश 1941 में शुरु की गई थी. 25 जनवरी 1941 में इसके लिए एक कमेटी का गठन किया गया था. इस रिफॉर्म कमेटी का अध्यक्ष बीएन राव को बनाया गया था. वह कोलकाता हाईकोर्ट में न्यायाधीश थे. इसके अलावा तीन अन्य सदस्य भी थे. जिनमें वकील द्वारका नाथ मित्रा, (पूर्व हाईकोर्ट जज), पुणे लॉ कॉलेज के प्रिसिंपल आर. घुरपुरे और बड़ौदा के वकील राज रतन वासुदेव विनायक जोशी उक्त कमेटी में थे. तैयारी के बाद 1943 में इसे संसद में पेश किया गया.
इसके पहले यह पास हो पाता पूरे देश में इसका विरोध शुरू हो गया था. किसी ने कहा कि यह हिंदू संस्कृति को नष्ट करने की शुरुआत है, तो कोई बोला अगर पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा को संपत्ति का हिस्सा मिलेगा तो बेटे का क्या होगा. किसी ने कहा कि ऐसे में जब बेटे को हिस्सा नहीं मिलेगा तो वह अपनी बहनों की शादी नहीं करेंगे. यहां 25 जजों को इस पर एक राय जुटाने के लिए बुलाया गया तो उसमें 24 जजों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस बिल को न लाया जाए तो ही ठीक होगा.
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