Uniform Civil Code: यूनफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर देशभर में चर्चा है, इसी बीच तमाम संगठनों की तरफ से लॉ कमीशन को इसे लेकर अपने सुझाव सौंपे जा रहे हैं. ज्यादातर संगठन यूसीसी का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कुछ संगठन इसे लागू करने से पहले कुछ बदलाव चाहते हैं. कुछ ऐसे भी संगठन हैं, जो इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं और इसे देश की भावना के खिलाफ बता रहे हैं. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि आखिर ये पूरा मसला क्या है और इसके कानूनी पहलू कितने मजबूत हैं. ये भी समझना जरूरी है कि कॉमन सिविल कोड और यूनिफॉर्म सिविल कोड में क्या अंतर है.
इस पूरे मामले को समझने के लिए सत्य हिंदी ने संविधान के जानकार और यूसीसी पर बारीकी से कई आर्टिकल लिखने वाले प्रोफेसर फैजान मुस्तफा से बातचीत की. करीब एक घंटे की इस बातचीत में मुस्तफा ने समान नागरिक संहिता से जुड़े हर पहलू को समझाया और बताया कि इसे कैसे लागू किया जा सकता है.
कॉमन और यूनिफॉर्म सिविल कोड में अंतर
प्रोफेसर मुस्तफा ने कॉमन सिविल कोड और यूनिफॉर्म सिविल कोड के बीच का अंतर समझाते हुए कहा, "कॉमन का मतलब है कि जो सबके लिए समान हो, वहीं यूनिफॉर्म का मतलब ये है कि जो एक से लोग हैं उनके लिए एक सा कानून... जो हमारा समानता का अधिकार है वो ये नहीं कहता है कि सारे देश के लिए एक समान कानून बनाया जाए. वो ये कहता है कि जो एक से लोग हैं, उनके लिए एक सा कानून हो. हमारा जो अनुच्छेद 14 है, वो समानता के अधिकार की बात करता है. वो ये कहता है कि एक वर्ग के अंदर जितने लोग एक समान हैं, उनके ऊपर एक कानून हो."
संविधान के एक्सपर्ट फैजान मुस्तफा ने कहा कि जो भिन्न हैं, उनके लिए भिन्न कानून होना समानता के अधिकार का हिस्सा है. जो एक से हैं, उनके लिए एक कानून हो... अगर कॉमन सिविल कोड शब्द होता तो ये सबके लिए एक कानून होता. इसलिए यूनिफॉर्म शब्द आया है, इसका मतलब है कि बदलाव किया जा सकता है. इसमें अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कानून हो सकते हैं.
क्या अलग-अलग हो सकते हैं कानून?
इंटरव्यू के दौरान जब फैजान मुस्तफा से पूछा गया कि क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड के तहत हिंदुओं के लिए अलग सिविल कोड और मुसलमानों के लिए अलग सिविल कोड हो सकता है? इसके जवाब में उन्होंने कहा, एक तरफ तो ये बात हो गई कि कानून एक वर्ग के अंदर समान लोगों पर समान होगा. जो अलग-अलग लोग हैं उन पर लागू नहीं होगा. कानून और संविधान इसकी इजाजत देता है कि वर्गीकरण किया जाए, लेकिन जब आप कोई भी वर्गीकरण करेंगे तो संविधान कहता है कि ये सिर्फ धर्म के आधार पर नहीं किया जा सकता है. तो इससे ये कहा जा सकता है कि ये शायद कानून की पॉलिसी नहीं है कि अलग-अलग कानून हो, लेकिन ये भी मुमकिन है कि हिंदुओं के लिए अलग कानून हो. जैसा कि आज हिंदू लॉ, हिंदू पर्सनल लॉ पर बेस्ड है. इसी तरह मुस्लिमों और बाकी धर्म को मानने वालों के लिए भी उनके पर्सनल लॉ हैं.
सबसे पहला कदम पुरुष और महिलाओं में समानता
संविधान एक्सपर्ट मुस्तफा ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड की तरफ धीरे-धीरे कदम जरूर बढ़ाए जाने चाहिए, लेकिन इसमें ये कहा जाना चाहिए किसी भी धर्म में जेंडर इनजस्टिस नहीं हो. हिंदुओं और मुसलमानों के लिए कानून अलग हो सकता है, लेकिन हर कानून संविधान के हिसाब से सही होना चाहिए. कोई कानून आप ऐसा नहीं बना सकते हैं जो समानता के अधिकार के खिलाफ हो. मुस्लिम लॉ अलग हो सकता है, लेकिन इसमें मर्द और औरतों में असमानता नहीं हो सकती है. पिछले लॉ कमीशन ने भी लिखा था कि हम सबसे पहले मर्द और औरत के बीच की समानता को ठीक करें. यही इसका पहला कदम होना चाहिए.
यूसीसी में क्या है 'सिविल' और 'कोड' का मतलब
फैजान मुस्तफा ने यूनिफॉर्म सिविल कोड में शामिल शब्द 'सिविल' को समझाते हुए कहा, लॉ में दो तरह के अधिकार हैं. एक अधिकार वो है जिसमें आपका मेरे ऊपर कोई लोन है, वो पर्सनल मामला है. ये मामला सिविल लॉ से डील करता है. इसके एवज में मैं मुआवजा दूंगा, या ज्यादा से ज्यादा थोड़ी सी सजा हो जाए. अगर आप पर जुर्माना लगता है तो वो क्रिमिनल लॉ में आता है. हमारे यहां ज्यादातर सिविल मामलों में एक ही कानून है. जिसमें पार्टनरशिप एक्ट, ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, कंपनी बनाने को लेकर एक ही कानून है. सिर्फ शादी, तलाक और जायदात जैसे मामलों में पर्सनल लॉ लगता है. इसी को सिविल कहा जाता है.
अब कोड का मतलब लोग ये समझते हैं कि इसके तहत सिर्फ एक ही कानून होगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. इंडियन पीनल कोड (IPC) देश का एक जनरल लॉ है, जिसमें डकैती, हत्या और बाकी तमाम अपराध आते हैं. इसके अलावा हमारे देश में कम से कम तीन से चार हजार कानून होंगे, जो क्रिमिनल लॉ से डील करते हैं. UAPA भी क्रिमिनल है, लेकिन ये आईपीसी में नहीं है. कोड का मतलब एक लॉ नहीं है. कोड में भी कई लॉ हो सकते हैं.
'उत्तराखंड सरकार की कमेटी में कोई एक्सपर्ट नहीं'
उत्तराखंड सरकार की तरफ से यूनिफॉर्म सिविल कोड लाया जा रहा है, जिसे जल्दी लागू करने की बात कही जा रही है. इसे लेकर फैजान मुस्तफा ने कहा, इसका ऐलान चुनाव प्रचार के आखिरी दिन किया गया. यूसीसी को चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. जब उत्तराखंड सरकार ने कमेटी बनाने की बात कही थी तो मैंने खुद इसका स्वागत किया था, लेकिन जो इन्होंने कमेटी बनाई उसमें पर्सनल लॉ के एक्सपर्ट्स को ही शामिल नहीं किया. इसमें करीब सवा लाख सुझाव मिले, लेकिन इन सुझावों को एक्सपर्ट देखेंगे कि इसका आगे क्या असर होगा.
शादी को कैसे करेंगे परिभाषित?
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए एक्सपर्ट ने कहा कि अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड बनेगा तो इसमें बाल विवाह की इजाजत नहीं होगी. अभी कानून में बाल विवाह करने पर सजा देने का प्रावधान है, लेकिन ये शादी गैरकानूनी नहीं मानी जाती है. आज भी हिंदू मैरिज एक्ट में बाल विवाह में हुई शादी वैध होती है. देश में जितने भी बाल विवाह हो रहे हैं, उनमें से 94 फीसदी हिंदुओं के हो रहे हैं. इसमें कई तरह की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं. ये बड़ा पेचीदा मामला है. अगर शादी ही गैरकानूनी होगी तो नाबालिग के गर्भवती होने पर क्या होगा? चाइल्ड ब्राइड के राइट टू मेंटेनेंस का क्या होगा? अभी तो शादी की ही परिभाषा का फैसला सुप्रीम कोर्ट में होना है. इसे भी यूसीसी में तय करना होगा कि आप शादी की क्या परिभाषा लेते हैं. इसीलिए ये आसान काम नहीं है, इसकी तरफ कदम जरूर बढ़ाने चाहिए, लेकिन एक झटके में कुछ नहीं किया जा सकता है.
लोगों को नहीं है सही जानकारी
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर लॉ कमीशन ने सुझाव मांगे हैं, जिसके बाद 20 लाख से ज्यादा लोगों और संगठनों ने यूसीसी पर अपने सुझाव दिए हैं. इसके लिए सोशल मीडिया पर मुहिम भी चलाई जा रही है, जिसमें लिखकर दिया जा रहा है कि हम यूनिफॉर्म सिविल कोड का समर्थन करते हैं. इस पर संविधान एक्सपर्ट मुस्तफा ने कहा कि इससे बहुत कुछ हासिल नहीं होगा. एक तरफ समर्थन करने वाले मेल कर रहे हैं और दूसरी तरफ विरोध करने वाले हैं. जो विरोध कर रहा है उसे ये नहीं पता है कि वो विरोध क्यों कर रहा है और जो समर्थन कर रहा है उसे भी नहीं पता है कि वो इसका क्यों समर्थन करता है.
ये भी पढ़ें - Opposition Meeting: सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों को डिनर पर बुलाया, केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को भी गया कॉल