Uniform Civil Code: यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान ने माहौल को और गरमा दिया है. पीएम मोदी ने समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा कि दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल सकता है. इसके बाद तमाम विपक्षी दलों ने इसे लेकर सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं. वहीं मुस्लिम संगठनों का कहना है कि इससे देश की विविधता खत्म हो जाएगी. अब सवाल ये है कि आखिर देश के अलग-अलग समुदायों पर यूनिफॉर्म सिविल कोड का क्या असर होगा और इसे लागू कर पाना कितना आसान है. 


संविधान सभा में हुई थी चर्चा
इंडियन एक्सप्रेस ने इस मुद्दे पर एक एक्सप्लेनर लिखा है, जिसमें कई अलग-अलग मामलों के आधार पर ये बताया गया है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का लोगों पर किस तरह से असर होगा. आर्टिकल में संविधान सभा में हुई चर्चा का भी जिक्र किया गया है. जिसमें बताया गया है कि संविधान सभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपनाने को लेकर लंबी बहस हुई थी. जब 23 नवंबर 1948 को इसे लेकर चर्चा हो रही थी, तब कुछ मुस्लिम सदस्यों ने समान नागरिक संहिता को लोगों की सहमति से लागू करने की बात कही थी. हालांकि भीमराव अंबेडकर इसके खिलाफ थे. 


चर्चा के दौरान किसने क्या कहा?
इस दौरान मद्रास के एक सदस्य मोहम्मद इस्माइल ने एक प्रावधान जोड़ने का प्रस्ताव रखा, इस प्रस्ताव में कहा गया कि किसी भी समुदाय के कानून, जिसे मान्यता दी गई है... उसमें तब तक बदलाव नहीं हो सकता है जब तक समुदाय की तरफ से इसकी इजाजत नहीं दी गई हो. उन्होंने कहा कि ये उस समुदाय के लोगों का मौलिक अधिकार है और अगर इसके साथ छेड़छाड़ की जाती है तो ये उन लोगों के जीवन के तरीके में हस्तक्षेप करने जैसा होगा. 


उनके अलावा पश्चिम बंगाल से आने वाले सदस्य नजीरुद्दीन अहमद ने चर्चा के दौरान कहा कि यूसीसी से सिर्फ मुसलमानों को असुविधा नहीं होगी, क्योंकि सिर्फ मुस्लिमों की नहीं बल्कि हर धार्मिक समुदाय की अपनी धार्मिक मान्यताएं और प्रथाएं हैं, जिनका वो पालन करते हैं. इस दौरान कुछ और सदस्यों ने भी पूछा कि आप आखिर किस चीज को आधार बनाकर कानून बनाने जा रहे हैं. क्योंकि हिंदू कानून के भीतर ही अलग-अलग तरह के नियम कायदे हैं. 


इसी दौरान भारतीय विद्या भवन की स्थापना करने वाले वकील और शिक्षक केएम मुंशी ने भी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा कि हिंदुओं के अपने कानून हैं, क्या हम इस आधार पर इस कानून को इजाजत देने जा रहे हैं कि ये देश के पर्सनल लॉ को प्रभावित करता है? इसलिए ये कानून सिर्फ अल्पसंख्यकों को नहीं बल्कि बहुसंख्यकों को भी प्रभावित करता है.


अंबेडकर ने कही थी ये बात
यूसीसी पर चर्चा के अंत में डॉ भीमराव अंबेडकर ने आश्वासन दिया कि यूसीसी को लोगों पर फिलहाल लागू नहीं किया जाएगा, क्योंकि आर्टिकल 44 सिर्फ ये कहता है कि राज्य एक नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा. हालांकि अंबेडकर ने ये भी कहा कि भविष्य में स्वैच्छित तरीके से संसद यूसीसी को लागू करने का प्रावधान कर सकती है. 


यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर लॉ कमीशन ने कहा था कि ऐसा कानून बनाते समय, यह याद रखना चाहिए कि सांस्कृतिक विविधता से किसी भी हाल में समझौता नहीं किया जा सकता है, इसमें कहा गया कि इस बात का खयाल रखा जाना चाहिए कि ये एकरूपता हमारे देश की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा न बन जाए. 


सुप्रीम कोर्ट का क्या रहा है रुख
इंडियन एक्सप्रेस ने अपने आर्टिकल में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का भी जिक्र किया है, जो यूनिफॉर्म सिविल कोड के समर्थन में दिखे हैं. 1985 का ऐतिहासिक शाह बानो मामला इसका एक उदाहरण है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला के गुजारा भत्ता मांगने के अधिकार को बरकरार रखा था. इस फैसले के बाद खूब राजनीति हुई थी और सवाल उठा था कि कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ में किस हद तक हस्तक्षेप कर सकती हैं. इसके अलावा सरला मुद्गल बनाम भारत सरकार (1995) मामले का भी इसमें जिक्र किया गया है. इस मामले में बहुविवाह की इजाजत देने वाले कानूनों का फायदा उठाने के लिए इस्लाम में धर्मांतरण की बात सामने आई थी. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता के पक्ष में टिप्पणी की थी.


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