नई दिल्ली: कैशलेश भारत की तरफ मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठा लिया है. कैबिनेट ने उस अध्यादेश पर मुहर लगा दी है जिसके तहत अब सैलरी चेक में देनी होगी या सीधे अकाउंट में ट्रांसफर करना होगा. अध्यादेश पर कैबिनेट की मुहर के बाद अब कर्मचारियों को कैश में तनख़्वाह देने पर पाबंदी लग गई है. कैबिनेट के इस अध्यादेश पर अभी राष्ट्रपति की मुहर लगनी बाकी है. इसके तहत कंपनियां और औद्योगिक प्रतिष्ठान वेतन का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक तरीके या चेक से कर सकेंगे.


केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज वेतन भुगतान कानून, 1936 में संशोधन के लिए अध्यादेश का रास्ता चुना. इसके जरिये नियोक्ता और कुछ उद्योग वेतन का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक तरीके या चेक से कर सकेंगे.


हालांकि, इसके अलावा कंपनियों के पास वेतन का भुगतान नकद में करने का भी विकल्प होगा.



वेतन भुगतान (संशोधन) विधेयक, 2016 के तहत मूल कानून की धारा छह में संशोधन का प्रस्ताव है जिससे नियोक्ता अपने कर्मचारियों को उनके वेतन का भुगतान चेक से या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से उनके बैंक खाते में डालकर कर सकेंगे. पिछले दिनों नोटबंदी पर हंगामे के बीच श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने संसद में यह विधेयक पेश किया था.


इसके तहत राज्य सरकारें ऐसे उद्योग या प्रतिष्ठान तय कर सकती हैं जो वेतन देने के लिए नकदीरहित तरीके का इस्तेमाल करते हैं.


विधेयक में कहा गया है कि यह नई प्रक्रिया डिजिटल और कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था के उद्देश्य को पूरा करती है.


यह कानून 23 अप्रैल, 1936 को अस्तित्व में आया था. इसके तहत वेतन का भुगतान सिक्के और मुद्रा नोटों या दोनों में किया जा सकता है. इसमें वेतन का भुगतान चेक या बैंक खाते के जरिये करने के प्रावधान को 1975 में शामिल किया गया. फिलहाल इस कानून के दायरे में प्रतिष्ठानों के कुछ श्रेणियों के वे कर्मचारी आते हैं जिनका वेतन 18,000 रुपये मासिक से अधिक नहीं है.


केंद्र सरकार वेतन भुगतान के बारे में रेलवे, हवाई परिवहन सेवाओं, खान, तेल क्षेत्र और स्वयं के प्रतिष्ठानों के मामले में नियम बना सकती है. अन्य मामलों में राज्यों को फैसला करना होता है.


कानून में राज्य स्तर पर संशोधन के जरिये आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, केरल और हरियाणा ने पहले ही चेक और इलेक्ट्रॉनिक तरीके से वेतन भुगतान का प्रावधन कर दिया है. फिलहाल कर्मचारी से लिखित में लेकर उसका वेतन चेक के जरिये या उसके खाते में सीधे डाला जा सकता है.


लोकसभा में पेश किया जा चुका है विधेयक


दरअसल, इस सिलसिले में एक विधेयक 15 दिसंबर 2016 को लोकसभा में रखा गया. इसे अगले साल बजट सत्र में पारित कराया जा सकता है. लेकिन सरकार ने दो और महीने इंतजार करने के बजाए अध्यादेश लाने का फैसला किया.


आपको बता दें कि अध्यादेश छह महीने के लिए ही वैध होता है. सरकार को इस अवधि में इसे संसद में पारित कराना होता है.


कैशलेस की ओर बढ़ता कदम


आपको बता दें कि इससे पहले भी सरकार ने कैशलेस ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं. सरकार ने रोजमर्रा के कई लेन देन में डिजिटल पेमेंट पर छूट का ऐलान कर रखा है. इसके अलावा नीति आयोग ने ‘लकी ग्राहक योजना’ और ‘डिजी धन व्यापारी योजना’ लॉन्च कर रखी है.


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