अबू सलेम की रिहाई पर केंद्रीय गृह सचिव का जवाब : सुप्रीम कोर्ट न करे याचिका पर विचार, 2030 में सरकार लेगी फैसला
अबु सलेम ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि भारत सरकार ने 2002 में पुर्तगाल सरकार से यह वादा किया था कि उसे न तो फांसी की सज़ा दी जाएगी, न ही किसी भी केस में 25 साल से अधिक कैद की सज़ा होगी.
गैंगस्टर अबू सलेम की याचिका पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है. केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला की तरफ से दाखिल जवाब में कहा गया है कि भारत सरकार की तरफ से पुर्तगाल को दिए गए आश्वासन से देश के अदालतें बंधीं नहीं हैं. वह कानून के हिसाब से अपना निर्णय देती हैं. भल्ला ने यह भी कहा है कि सलेम का प्रत्यर्पण 2005 में हुआ था. उसकी रिहाई पर विचार करने का समय 2030 में आएगा. तब सरकार तय करेगी कि क्या करना है.
क्या है मामला?
कुख्यात अपराधी अबु सलेम ने दावा किया है कि भारत में उसकी कैद 2027 से ज़्यादा तक नहीं हो सकती. सुप्रीम कोर्ट ने 2 फरवरी को इस पर सीबीआई, केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से इस पर जवाब मांगा था. सलेम को 2005 में पुर्तगाल से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया था. उसने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि भारत सरकार ने 2002 में पुर्तगाल सरकार से यह वादा किया था कि उसे न तो फांसी की सज़ा दी जाएगी, न ही किसी भी केस में 25 साल से अधिक कैद की सज़ा होगी. लेकिन मुंबई के विशेष टाडा कोर्ट से उसे अब तक 2 मामलों में उम्रकैद की सज़ा दी जा चुकी है. सलेम ने मांग की थी कि उसे रिहा करने के लिए 2002 की तारीख को आधार बनाया जाना चाहिए क्योंकि तभी उसे पुर्तगाल में हिरासत में ले लिया गया था. इस हिसाब से 25 साल की समय सीमा 2027 में खत्म होती है.
सरकार बताए वादा निभाएगी या नहीं?
मामले में सीबीआई ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि सरकार का आश्वासन कोर्ट पर लागू नहीं होता. वह केस के तथ्य के आधार पर सज़ा देता है. रिहाई को लेकर फैसला लेना सरकार का काम है. समय आने पर इसे देखा जाएगा. मार्च में हुई सुनवाई में जस्टिस संजय किशन कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच ने इस जवाब को असंतोषजनक बताया. उन्होंने कहा कि भारत सरकार की तरफ से विदेशी सरकार से किए गए वायदे की अहमियत है. अगर उसे लेकर यह रवैया अपनाया गया, तो भविष्य में विदेश से किसी का प्रत्यर्पण करना कठिन हो जाएगा. कोर्ट ने केंद्रीय गृह सचिव से हलफनामा दाखिल करने को कहा था. 21 अप्रैल को मामले की सुनवाई होगी.
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