Kota Quota Row: केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने शुक्रवार (2 अगस्त 2024) को अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षण में “क्रीमी लेयर” मानदंड लागू करने के किसी भी कदम का विरोध किया. यह फैसला कोटा लाभ के लिए इन समुदायों के भीतर उप-वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के कुछ दिनों बाद आया है.
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए में शामिल रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के चीफ रामदास अठावले ने कहा, "एससी/एसटी के लिए आरक्षण जाति पर आधारित है. एससी और एसटी के लिए आरक्षण में क्रीमी लेयर के मानदंड लागू करने के किसी भी कदम का हमारी पार्टी कड़ा विरोध करेगी."
SC की 7 जजों की बेंच ने SC/ST पर क्या कहा?
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को 6:1 बहुमत से फैसला सुनाया था. इसमें उन्होंने कहा था कि राज्य इन समूहों में सबसे वंचित जातियों के लिए कोटा सुनिश्चित करने के लिए एससी और एसटी को और उप-वर्गीकृत कर सकते हैं. इस फैसले का समर्थन करने वाले 6 में से 4 जजों ने अलग-अलग फैसले लिखे, जिसमें क्रीमी लेयर को आरक्षण लाभ से बाहर रखने का सुझाव दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का रामदास अठावले ने किया स्वागत
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि कि इससे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में पिछड़ी जातियों को न्याय मिलेगा. अठावले ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और सामान्य वर्ग के सदस्यों के लिए भी इसी तरह के उप-वर्गीकरण की मांग की.
जानें जस्टिस बीआर गवई क्या बोले?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण लाभ से बाहर रखने के लिए एक पॉलिसी बनानी चाहिए. उन्होंने कहा, "जब इंद्रा साहनी मामले में 9 जजों की पीठ ने फैसला किया था कि ओबीसी के लिए इस तरह की परीक्षा लागू करने से संविधान के अनुसार समानता को बढ़ावा मिलेगा, तो यह परीक्षा एससी और एसटी पर भी क्यों नहीं लागू होनी चाहिए?"
5 जजों ने जस्टिस गवई की राय का किया समर्थन
जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि क्रीमी लेयर का मतलब एक निश्चित इनकम सोर्स से ऊपर के व्यक्तियों से है, जिनमें ओबीसी के लिए 8 लाख रुपए सालाना है, जिन्हें कोटा लाभ से बाहर रखा गया है. हालांकि, इसको लेकर सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने जस्टिस गवई की राय का समर्थन किया.
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