नई दिल्ली: दुनिया में कोरोना वायरस का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. वहीं कोरोना वायरस के कारण मरने वाले लोगों का आंकड़ा भी थम नहीं रहा है. दुनिया में लाखों लोगों की मौत कोरोना वायरस के कारण हो चुकी है. इस बीच मालदीव ने श्रीलंका से मुसलमानों के शव न जलाकर उन्हें सौंप देने की बात कही थी, जिसकी अब निंदा की गई है.


संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञ ने मालदीव की घोषणा की निंदा की है. मालदीव ने कहा था कि वह श्रीलंका के कोरोना वायरस से मरने वाले मुसलमानों को दफनाने पर विचार कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञ अहमद शाहीद ने बयान जारी किया है. जिसमें कहा गया है कि मालदीव के जरिए किए गए इस तरह के ऐलान से श्रीलंका का मुसलमान अलग-थलग हो सकता है. उन्होंने कहा कि इससे श्रीलंका के मुसलमान हाशिए पर आ जाएंगे.


शाहिद ने बयान में कहा कि ऐसा लगता है कि मालदीव की ओर से किया गया अनुरोध मुस्लिम समुदाय की मर्जी से नहीं किया गया है. इस ऐलान के जरिए श्रीलंका में मुस्लिम लोग और ज्यादा हाशिए पर आ जाएगा. बता दें कि कोरोना वायरस से जुड़ी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की गाइडलाइन में कोरोना से मरने वाले लोगों को दफनाने और जलाने दोनों तरीके से अंतिम संस्कार की इजाजत दी गई है.


क्या है मामला?


बता दें कि कोरोना वायरस से मरने वाले मुसलमानों का श्रीलंका में जलाकर अंतिम संस्कार किया जा रहा है. जिसको लेकर मालदीव ने कहा था कि मालदीव श्रीलंका में कोरोना वायरस से मरने वाले मुसलमानों के शवों को अपने यहां दफनाने के लिए राजी है. दरअसल, श्रीलंका सरकार ने मार्च महीने में एक आदेश जारी कर कोरोना से मरने के बाद शवों को जलाना अनिवार्य कर दिया था. हालांकि इस्लाम में शवों को दफनाकर अंतिम संस्कार किए जाने का रिवाज है.


श्रीलंका सरकार की ओर से दिए गए इस आदेश का काफी विरोध भी किया गया था. मुस्लिम समुदाय ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी. वहीं श्रीलंका में मुसलमान काफी वक्त से मांग कर रहे हैं कि कोरोना से मरने वालों मुस्लिमों का इस्लामिक तरीके से अंतिम संस्कार की इजाजत मिलनी चाहिए.


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