नई दिल्ली: देश की एक ऐसी बेटी जिसका चेहरा नहीं दिखाया जा सकता. जिसकी पहचान नहीं बताई जा सकती. वो बेटी भी हम जैसी ही एक इंसान है लेकिन उसके साथ जो जुल्म हुआ उसने उसकी नाम और पहचान दोनों को गुम कर दिया. पहले उसने रेप का जुल्म सहा. इसके बाद जब उसने गुनहगार के खिलाफ जंग छेड़ी तो उसकी जान पर बन गई. तीन दिन से लखनऊ के अस्पताल में उसका इलाज हो रहा है, लेकिन वो जिंदगी की जंग हर दिन, हर पल लड़ रही है. उन्नाव गैंगरेप की पीड़िता पिछले दो सालों से संघर्ष की जिंदगी जी रही है. उसका गुनहगार एक ताकतवर पार्टी का ताकतवर विधायक है.


उन्नाव गैंगरेप पीड़िता से साल 2017 में गैंगरेप हुआ था. दो साल गुजरने के बाद भी शासन और प्रशासन ने उसके साथ इंसाफ नहीं किया और अब जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है. दरअसल पीड़िता से गैंगरेप का आरोप बीजेपी के बाहुबली विधायक कुलदीप सेंगर पर है. जुलाई 2017 में पीड़िता ने इंसाफ पाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक को चिट्ठी लिखी. लेकिन उसे न्याय नहीं मिला.


इसके बाद पीड़िता ने उन्नाव जिला अदालत में अर्जी दी. इस अर्जी में पीड़िता ने विधायक के समर्थक शुभम नाम के आरोपी की मां पर नौकरी के बहाने विधायक के घर ले जाने का आरोप लगाया था. मामले ने जब तूल पकड़ा तो विधायक कुलदीप सेंगर के समर्थकों ने पीड़िता के परिवार पर मानहानि का केस कर दिया.


पिछले साल 3 अप्रैल को जब पीड़िता कोर्ट से लौट रही थी तो उसके परिवार पर हमला कर दिया गया. विधायक के भाई पर बदमाशों के साथ मिलकर पीटने का आरोप लगा. पुलिस ने आरोपियों की जगह पीड़िता के पिता पर ही आर्म्स एक्ट में केस कर दिया. इसके बाद इस घटना की डीएम से शिकायत हुई. जिसके बाद पुलिस ने विधायक समर्थकों पर तो केस दर्ज किया, लेकिन विधायक के भाई पर कोई केस नहीं किया.


पीड़िता का संघर्ष कितना कठिन था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि न्याय की भीख मांग रही गैंगरेप पीड़िता के सिर से पिता का साया भी उठ जाता है. पीड़िता के पिता को जेल के अंदर इतनी बेरहमी से पीटा जाता है कि वह दम तोड़ देता है. बावजूद इसके पीड़िता हार नहीं मानती और न्याय के लिए उसकी लड़ाई लगातार जारी रहती है.


मामला हाई कोर्ट पहुंचता है. हाई कोर्ट की फटकार के बाद पुलिस आरोपी विधायक के खिलाफ मुकदमा दर्ज करती है. बाद में केस की जांच सीबीआई को सौंप दी जाती है. इसके बाद आखिरकार 13 अप्रैल को सीबीआई आरोपी बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर को उसके लखनऊ स्‍थ‍ित आवास से गिरफ्तार करती है और उसे जेल भेज देती है.


यहीं खत्म नहीं होता पीड़िता का संघर्ष...


विधायक के जेल जाने के बावजूद गैंगरेप पीड़िता और उसके परिवार को अपनी जान का खतरा रहता है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पीड़िता के परिवार ने पिछले एक साल में 33 बार पुलिस और प्रशासन से लिखित शिकायत की थी. परिवार ने आशंका जताई थी कि गैंगरेप में आरोपी बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर उनको निशाना बना सकते हैं. बावजूद इसके देश का सिस्टम उसे उसके हाल पर छोड़ देता है.


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उन्नाव के एसपी एमपी वर्मा ने भी माना है कि पुलिस को 33 शिकायतें मिली थीं लेकिन उनमें कोई दम नहीं नजर आया, इसलिए उन्हें खारिज कर दिया गया.


इतना ही नहीं पीड़िता की जब कोई गुहार नहीं सुनी गई तो उसने इसी महीने 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्टी को लिखी और कहा कि उन्हे आरोपी लगातार धमकी दे रहा है. लेकिन लगता है कि पीडिता की वो चिट्ठी चीफ जस्टिस की वक्त पर टेबल तक पहुंची ही नहीं.


अब इसका खुलासा होने पर चीफ जस्टिस ने पीड़ित परिवार की तरफ से लिखी गई चिट्ठी की जानकारी सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से मांगी है. उन्होंने ये भी पूछा है कि 12 जुलाई को भेजी गई चिट्ठी उनके पास बढ़ाने में देर क्यों हुई? रजिस्ट्रार जनरल से पीड़ित परिवार की चिंताओं पर एक नोट भी पेश करने को कहा है.


कहा जा रहा है कि बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की तरफ से मिल रही धमकियों की वजह से पीड़िता और उसके वकील ने प्रशासन से हथियार का लाइसेंस मांगा था. रायबरेली में ट्रक से टक्कर के बाद पीड़िता अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है.