Unparliamentary Words Row: 'प्रतिबंध का सवाल ही नहीं', असंसदीय शब्द विवाद पर बोले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष की शंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि किसी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. ये उन शब्दों का संकलन भर जो संसद या विधानसभाओं में घोषित किये जा चुके हैं असंसदीय.
Unparliamentary Words Row: संसदीय (Parliamentary) और असंसदीय शब्दों (Unparliamentary Words) को लेकर चल रहे विवाद को गुरुवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (OM Birla) ने पटाक्षेप कर दिया. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि संसद या विधानसभा में किसी भी शब्द के इस्तेमाल पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. उन्होंने कहा कि सदस्यों को सदन में बोलने की आजादी है और पीठासीन अधिकारी (Chair) ये तय करता है कि कोई शब्द असंसदीय है या नहीं.
18 जुलाई से शुरू हो रहे संसद सत्र से पहले एक नया विवाद खड़ा हो गया था. इस विवाद में लोकसभा सचिवालय ने इस साल असंसदीय शब्दों के लिये नया शब्दकोश जारी किया है. इसमें जो शब्दकोश जारी किया गया है उसके कुछ शब्दों को लेकर बवाल हो रहा है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि नई सूची में कई ऐसे शब्द शामिल किए गए हैं जो मोदी सरकार को कटघरे में शामिल करते हैं. इन शब्दों में जुमलेबाजी, असत्य, बालबुद्धि, घड़ियाली आंसू और ड्रामा जैसे शब्द शामिल हैं.
क्या बोले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला?
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष की सभी शंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि किसी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. बिरला के मुताबिक यह केवल उन शब्दों का संग्रह भर है जिनको संसद में या अलग-अलग विधानसभाओं में असंसदीय घोषित किया जा चुका है. मसलन, असत्य शब्द को 13 फरवरी 2021 को राजस्थान विधानसभा की कार्यवाही से जोड़ा गया है. इसी तरह 'आदिवासी' शब्द को छत्तीसगढ़ विधानसभा से लिया गया है. लोकसभा अध्यक्ष ने बताया कि 1954 से ही लोकसभा सचिवालय असंसदीय शब्दों का संकलन प्रकाशित करता आया है.
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि 1954 , 1986, 1992 , 1999 , 2004 और 2009 में भी ऐसे संकलन प्रकाशित हो चुके हैं. जबकि 2010 से सालाना ऐसे संकलन प्रकाशित किए जा रहे हैं. इनमें ऐसे शब्द संकलित किए जाते हैं जो संसद या राज्य की विधानसभाओं में पहले ही एक्सपंज यानि रिकॉर्ड से हटा दिए गए हों.
'प्रतिबंध' नहीं है शब्द का संकलन में आना - ओम बिरला
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने स्पष्ट किया कि ऐसे किसी शब्द का संकलन में आने का मतलब प्रतिबंध नहीं है. बल्कि सदन में कहा गया है कि कोई शब्द असंसदीय है या नहीं इसका फैसला उस संदर्भ को देखते हुए सदन का पीठासीन अधिकारी करता है.
संविधान में है बोलने की आजादी, प्रतिबंध का सवाल ही नहीं
ओम बिरला (OM Birla) ने कहा कि संविधान (Constitution Of India) में बोलने की आजादी दी गई है इसलिए किसी शब्द के प्रतिबंध का सवाल नहीं उठता है. संविधान की धारा 105 में संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि कुछ शर्तों के साथ सांसदों को सदन के अंदर बोलने की आजादी होगी. इसी धारा के उपखंड (2) में ये भी कहा गया है कि सदन के अंदर किसी सदस्य के द्वारा कहे गए किसी भी बात या शब्द को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
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