नई दिल्ली: कोरोना से ठीक हुए मरीजों में लिवर में पस भरने के असामान्य मामले दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में देखे गए हैं. इस साल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान, कोविड-19 मरीज कुछ असामान्य परेशानियों के साथ सर गंगा राम अस्पताल पहुंचे.


अस्पताल के मुताबिक पिछले दो महीनों में कोविड-19 संक्रमण से उबरने के बाद चौदह मरीजों में असामान्य रूप से पस से भरे हुए लिवर के फोड़े के केस सामने आए है. ये मरीज 28-74 वर्ष की आयु वर्ग के थे, जिनमें दस पुरुष और चार महिलाएं थीं. इन सभी मरीजों को बुखार और पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द था और 3 मरीजों में काले रंग के मल के साथ रक्तस्राव भी था.


इनमें से आठ मरीजों को कोविड-19 लक्षणों के क्लीनिकल मैनेजमेंट के लिए स्टेरॉयड दिया गया था. इसमें से 6 मरीजों में जिगर के दोनों तरफ कई बड़े फोड़े थे, जिनमें से 5 मरीजों में बड़े फोड़े (>8 से.मी.) थे, जिनमें से सबसे बड़ा 19 से.मी. आकार था.


लीवर के दोनों हिस्से बहुत ज्यादा मवाद से भरे हुए थे- प्रो अनिल अरोड़ा


सर गंगाराम अस्पताल में इन मरीजों का इलाज कर रहे प्रो अनिल अरोड़ा, चेयरमैन, इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड पैन्क्रियाटिकोबिलरी साइंसेज, के मुताबिक मरीजों में कोविड से ठीक होने के 22 दिन के बाद जो प्रतिरक्षात्मक (इम्यूनोकम्पीटेंट) थे, उनके लीवर के दोनों हिस्से बहुत ज्यादा मवाद से भरे हुए थे, जिन्हें तुरंत ड्रेनेज और अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत थी.


अनिल अरोड़ा ने बताया, “मई 2021 में जब कोविड महामारी चल रही थी उस दौरान 14 केस लिवर अबसेसिस के आए थे. ये कोविड-19 के मरीजों के रिकवरी के तीन हफ्ते के बाद हुई. आमतौर पर ये लिवर अबसेसिस कॉमन इन्फेक्शन होता है. सिंगल अबसेसिस करता है लिवर की राइट साइड पर लेकिन इस दौरान जो हमे अद्भुत लगी वो ये कि अबसेसिस दोनों लोब में थी और बड़ी-बड़ी थी और कुछ लोगों में पूरा लिवर पस से भरा हुआ था.”


पेट में भारी रक्तस्राव के कारण मरीज की मृत्यु हो गई- डॉक्टर अरोड़ा


डॉक्टर अरोड़ा के मुताबिक मल में खून आने वाले तीन मरीजों ने बड़ी आंत में अल्सर दिखा जो कोलोनोस्कोपी, यानी एक तरह के कैमरे के माध्यम से बड़ी आंत को देखा गया और उसके बाद इसका पता लगा. कोविड-19 लक्षणों और लीवर फोड़े के निदान के बीच की औसत अवधि 22 दिन थी. चौदह में से तेरह रोगियों का एंटीबायोटिक दवाओं, मेट्रोनिडाज़ोल दवाओं और जिगर से मवाद की निकासी के साथ सफलतापूर्वक इलाज किया गया था, जबकि बड़े फोड़े वाले एक रोगी की लिवर लोब में मवाद के फटने के बाद पेट में भारी रक्तस्राव के कारण मृत्यु हो गई. बाकी मरीज स्थिर हैं और उन्हें छुट्टी दे दी गई है.


प्रो. अनिल अरोड़ा ने कहा कि "हमारे मरीजों में हमें कई और बड़े फोड़े मिले जो एक प्रतिरक्षात्मक (इम्यूनोकम्पीटेंट) व्यक्ति के लिए बहुत ही असामान्य है. हमारा मानना है कि कोविड-19 संक्रमण द्वारा इम्यूनिटी के दमन के साथ-साथ कोविड संक्रमण के इलाज के लिए स्टेरॉयड का उपयोग और इस महामारी में कोविड से स्वस्थ होने वाले मरीजों में लीवर के फोड़े के लिए संदेह, व इलाज में देरी के कारण संभवतः इन रोगियों में कई बड़े फोड़ों का विकास हुआ.


‘एंटअमीबा हिस्टोलिटिका’ खराब स्वच्छता सेवाओं वाले देशों में एक आम परजीवी है. ये परजीवी अमीबियासिस का कारण बनता है, एक आंतों का संक्रमण जिसे अमीबिक पेचिश भी कहा जाता है. संक्रमण होने के बाद, परजीवी रक्तप्रवाह द्वारा आंतों से लिवर तक पहुंच सकता है और यकृत के फोड़े का कारण बनता है. आम तौर पर ये फोड़े अकेले होते हैं और बहुत बड़े नहीं होते हैं. इतने बड़े साइज़ (आकार) में और लिवर में कोविड के वजह से कई फोड़े होना असामान्य व चिंता का विषय है.


संक्रमण से ठीक होने के बाद अगर दर्द हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना- डॉक्टर अरोड़ा


मरीजों में बुखार और संबंधित लक्षणों के लिए पेट की अल्ट्रासोनोग्राफी जांच की जाती है. खराब पोषण, प्रतिरक्षात्मक स्थिति (जैसे एच.आई.वी. और कैंसर के रोगियों में) स्टेरॉयड का उपयोग और अमीबा द्वारा संक्रमण के कारण मरीजों के यकृत में फोड़े हो जाते हैं. इसलिए उनके मुताबिक संक्रमण से ठीक होने के बाद अगर दर्द हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए.


अनिल अरोड़ा ने कहा, “हमारा ये मनना है कि जब कोविड से रिकवरी हो रही हो तो कोविड की वजह से या उसकी वजह से दिए गए स्टेरॉयड से या अंडरलाइन डियाबिटीज़ की वजह से इस तरह का इन्फेक्शन सामान्य नहीं है. वहीं, जब भी बुखार हो, दर्द हो, पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द हो लीवर अबसेसिस पर धयान जरूर जाना चाहिए. डॉक्टर के मुताबिक लीवर में पस से भरा हुआ फोड़ा आमतौर पर ‘एंटअमीबा हिस्टोलिटिका’  नामक परजीवी के कारण होता है जो दूषित भोजन और पानी से फैलता है.


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