नई दिल्ली: अक्सर लोग पीएम नरेंद्र मोदी से मदद की गुहार लगाते हैं लेकिन इस बार यूपी के 50 से ज्यादा लोग उनसे इच्छामृत्यु की इजाजत चाहते हैं. दरअसल यूपी के ये पचास लोग सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद प्रदेश के परिवहन निगम में नौकरी के लिए पिछले 29 साल से भटक रहे हैं. अब थक हारकर उन्होंने पीएम मोदी से इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी है.


पीड़ितों का दावा है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद यूपी रोडवेज के अधिकारियों की अनदेखी ने पचास से ज्यादा लोगों को अब तक उनकी नौकरी नहीं दी है. लिहाजा उन्होंने इच्छामृत्यु के लिए प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है.


पूरा मामला यह है कि साल 1989 में उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में प्रशिक्षु अभ्यर्थियों की नियुक्ति होनी थी. लेकिन उस पर किसी वजह से रोक लग गई. इसके बाद ये लोग हाईकोर्ट पहुंचे. हाईकोर्ट ने इनकी बात सुनी और फैसला भी इन्हीं के हक में दे दिया, लेकिन यूपी सरकार के अधिकारियों पर कोर्ट के आदेश का असर नहीं हुआ. पीड़ित यूपी रोडवेज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए.


सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के तत्कालीन मुख्य सचिव को तलब किया और फटकार लगाई. मुख्य सचिव ने कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल किया और साल 1996 तक नियुक्ति देने की बात कही. 1996 में राज्य में बीएसपी की सरकार थी.


इनका का दावा है कि बीएसपी सरकार में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को तो नियुक्तियां मिल गई लेकिन जब सामान्य वर्ग के लोगों की बारी आई तो उनसे पल्ला झाड़ लिया गया. पीड़ित सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद 29 सालों से यूपी रोडवेज के दफ्तर के धक्के खाकर थक चुके हैं. अब थक हारकर इन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इच्छामृत्यु की मांग की है.


उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में नियुक्तियों पर रोक की ये पहली कहानी नहीं है. अलग-अलग वक्त पर सरकारी नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाती है, जिससे लोग बेरोजगार हो जाते हैं. साल 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी की दर 3.6 फीसदी है जबकि उत्तर प्रदेश में 6.8 फीसदी लोग बेरोजगार हैं.