लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद अब गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनावों पर सबकी निगाहें जमी हैं.
बीजेपी का दावा है कि वह दोनों लोकसभा सीटों पर कब्जा बरकरार रखेगी और जीत का अंतर सुधरेगा हालांकि भाजपा के राजनीतिक विरोधी 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इन दो सीटों के उपचुनाव को नये अवसर के रूप में ले रहे हैं.
बीजेपी के भीतर के लोगों की मानें तो दोनों ही लोकसभा सीटें बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हैं. गोरखपुर में पार्टी का 1991 से दबदबा रहा है जबकि फूलपुर सीट पर बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की. फूलपुर सीट कांग्रेस के वर्चस्व वाली मानी जाती थी लेकिन 2014 में केशव प्रसाद मौर्य यहां से चुनाव जीते थे.
पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि पार्टी गोरखपुर और फूलपुर में फिर विजयी होगी और इस बार जीत का अंतर भी सुधरेगा. उन्होंने कहा कि,' राज्य की जनता को पिछले तीन साल के दौरान केन्द्र सरकार की उपलब्धियों का पता है. उसे यह भी पता है कि छह महीने के अल्प समय में उत्तर प्रदेश सरकार ने क्या कुछ किया है.विरोधी दल भी दोनों सीटों के उपचुनाव को प्रतिष्ठा की लड़ाई मानकर चल रहे हैं.'
त्रिपाठी ने कहा कि बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत के बूते दोनों सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है.
वहीं दूसरी तरफ अखिलेश यादव ने कल समाजवादी पार्टी के प्रांतीय अधिवेशन में कहा था कि अगर उपचुनाव के नतीजे सपा के पक्ष में आये तो इससे 2019 के लोकसभा चुनावों तथा 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर जनता में मजबूत संदेश जाएगा.
सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने कहा कि जनता के सामने भाजपा की पोल खुल चुकी है और बदलाव की शुरूआत गोरखपुर एवं फूलपुर लोकसभा उपचुनाव से हो जाएगी.
बीजेपी के दावे पर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अशोक सिंह ने कहा कि गोरखपुर से ही बदलाव की बयार शुरू होगी. जनता ने केन्द्र के तीन वर्ष और प्रदेश सरकार के छह माह के कार्य को देखा है. जनता बदलाव चाहती है.
आपको बता दें कि फूलपुर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस नेता विजय लक्ष्मी पंडित करती रही थीं. इस सीट पर सपा और बसपा भी जीत दर्ज कर चुकी हैं.
वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 1998 से ही गोरखपुर लोकसभा सीट पर जीत का सिलसिला बनाये हुए थे.