Uttar Pradesh Politics: कहा जाता है कि एक लीडर वो होता है जो रास्ता जानता है, रास्ते पर चलता है और रास्ता दिखाता है. हमारे देश में ऐसे कई नेता हुए हैं लेकिन इन दिनों जिनकी सबसे ज्यादा चर्चा है वो हैं राहुल गांधी और अखिलेश यादव. लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई दिशा दी. इस सियासी गठबंधन ने बीजेपी को बहुमत का आंकड़े तक पहुंचने से रोका तो एक दशक से हाशिये पर रहे विपक्ष को संसद में नई ऊर्जा देने का काम भी किया.


राहुल और अखिलेश की जुगलबंदी संसद में भी देखने को मिल रही है. राहुल और अखिलेश का कॉन्फिडेंस बता रहा है कि ये साझेदारी लंबी चल सकती है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या बीजेपी को 27 में बड़ी चुनौती मिल सकती है. यूपी में होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी यूपी के दो लड़कों का सियासी चक्रव्यूह कैसे भेदेगी?


...जब संसद में गरजे राहुल गांधी


जुलाई महीने की पहली तारीख थी. 18वीं लोकसभा का संसद में पहला सत्र चल रहा था. पहली बार नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी संसद में बोल रहे थे. भाषण की शुरुआत में ही राहुल गांधी ने संविधान का जिक्र किया. भगवान शंकर की तस्वीर दिखाई. दस साल में पहली बार सरकार बैकफुट पर नजर आई.


इसके बाद जुलाई का ही महीना और 29 तारीख. 18वीं लोकसभा का पहला बजट सत्र चल रहा था. राहुल गांधी ने फिर भगवान शिव का जिक्र किया. महाभारत की कहानी सुनाई. चक्रव्यूह का किस्सा बताया और बता दिया कि INDIA गठबंधन की राजनीति किस राह पर बढ़ने वाली है. झक सफेद टी शर्ट, हल्की बढ़ी दाढ़ी और फुल कॉन्फिडेंस से सरकार पर तीखे वार. राहुल गांधी जब भी संसद में आते हैं ऐसे ही नजर आते हैं. सरकार वही है लेकिन राहुल गांधी के शब्दों में पहले से कहीं ज्यादा तेज धार है जो सीधे सत्ता को ललकारती है.


संसद में अखिलेश यादव का अंदाज


बदला अंदाज है. बदले हुए तेवर हैं और सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं बल्कि अखिलेश यादव भी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. बजट सत्र पर चर्चा के दौरान अनुराग ठाकुर जातिगत जनगणना पर राहुल गांधी को घेर रहे थे तो जवाब अखिलेश यादव की तरफ से आया.


अभी तो नई ससरकार बने दो महीने हुए हैं लेकिन संसद में राहुल और अखिलेश यादव की जिस तरह की केमिस्ट्री नजर आ रही है वो बताती है कि यूपी के लड़कों का साझेदारी लंबी चलने वाली है और बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बनने वाली है लेकिन सवाल ये है कि राहुल-अखिलेश सरकार पर क्यों हमलावर हैं? यूपी के दो लड़के सरकार के लिए कितनी चुनौती हैं? और सबसे बड़ा सवाल ये के राहुल और अखिलेश के कॉन्फिडेंस की वजह क्या है?


राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जुगलबंदी


नीट का मुद्दा हो, जातिगत जनगणना की बात हो या फिर बजट संसद में जब भी मौका मिला राहुल और अखिलेश की गजब की जुगलबंदी देखने को मिली है. दोनों ने लगातार और एक ही अंदाज में सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी. संसद ही अंदर ही नहीं बल्कि संसद के बाहर भी यूपी के लड़कों की जोड़ी सरकार को हर मोर्चे पर चुनौती दे रही है. दोनों आत्मविश्वास से लबरेज नजर आते हैं. जिसकी सबसे बड़ी वजह है यूपी में बीजेपी की करारी हार.


यूपी में जिस तरह से राहुल और अखिलेश की जोड़ी बीजेपी की राह में स्पीड ब्रेकर बनी उसकी कल्पना राजनीति के शायद किसी जानकार ने ही की होगी. जो बीजेपी 80 में से 80 सीटें जीतने का टारगेट लेकर चल रही थी. वो एक दशक पीछे चली गई लेकिन सबसे बड़ा झटका फैजाबाद सीट पर लगा.


बीजेपी को हराकर इन लड़कों में आया कॉन्फिडेंस?


अयोध्या भगवान राम की नगरी जहां आस्था और आध्यात्म का संगम है. उसी अयोध्या में पांच सौ साल बाद भव्य, दिव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ. अयोध्या का कायाकल्प हुआ लेकिन लोकसभा चुनाव में फैजाबाद लोकसभा सीट से बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. फैजाबाद में चुनावी हार बीजेपी के लिए नई बात नहीं थी. अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद भगवा पार्टी को इस सीट पर तीन बार हार का सामना करना पड़ा है जो ये बताने के लिए काफी है कि बीजेपी फैजाबाद में चुनाव पहली बार नहीं हारी है.


2024 के बाद बीजेपी ने फैजाबाद सीट पर लगातार जीत हासिल की. इस बार राम मंदिर बनने से भगवा पार्टी को जीत की पूरी उम्मीद थी लेकिन ऐसा न हो सका. फैजाबाद के साथ ही बीजेपी ने 29 सीटें खो दीं जिनमें से कई सीटें उस रूट पर पड़ती थीं जिसे राम वन गमन पथ माना जाता है. यही वजह है कि फैजाबाद में मिली जीत से INDIA गठबंधन को नई एनर्जी मिल गई लेकिन बात सिर्फ इतनी सी ही नहीं है.


बीजेपी साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 71 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जो अपने आपमें एक रिकॉर्ड है. पांच साल के बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें 71 से घटकर 62 पर आ गई थीं. इस तरह बीजेपी को 9 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. इसके बाद अब 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 62 से घटकर 33 सीटों पर पहुंच गई. बीजेपी को इस बार 29 सीटों का घाटा हुआ है.


क्या उत्तर प्रदेश में कम हो गया नरेंद्र मोदी का प्रभाव?


साफ है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्मे से बीजेपी को जो उत्थान मिला था. उसका असर यूपी में कम होता जा रहा है. ऐसे में राहुल गांधी और अखिलेश यादव को देश के सबसे बड़े सियासी सूबे में फिर से सत्ता हासिल करने का मुफीद मौका नजर आ रहा है.


नतीजों के बाद बीजेपी के बड़े नेता लगातार कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन के बिखरने की भविष्यवाणी कर रहे थे लेकिन यूपी के दो लड़कों की जोड़ी टूटने के बजाय संसद से सड़क तक मजबूत होती दिख रही है. राहुल गांधी और अखिलेश यादव का जुगलबंदी को बीजेपी भी शिद्दत से महसूस कर रही है. बीजेपी जानती है कि यूपी में कांग्रेस को सियासी संजीवनी मिली है और समाजवादी पार्टी को ताकत. अगर दोनों पार्टियां इसी तरह 2027 के विधानसभा चुनाव में उतरती हैं, तो बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बढ़ना लाजमी है लेकिन क्या वाकई ऐसा है?


2017 में फ्लॉप हो गई थी दो लड़कों की जोड़ी


वैसे ये पहली बार नहीं है जब राहुल और अखिलेश की जोड़ी साथ आई है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी ये एक्पेरिमेंट हो चुका है लेकिन तब दोनों की जोड़ी बीजेपी की विजय रथ रोकने में नाकाम रही थी लेकिन चौबीस में सियासी हालात बदल चुके हैं. ‘यूपी को ये साथ पसंद है’ ये नारा दिया गया था. करीब 7 साल पहले उत्तर प्रदेश में ये नारा काफी सुर्खियों में था. यूपी के ही 2 लड़के यूपी में बीजेपी का रथ रोकने के लिए साथ आ गए थे. राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने हाथ मिलाया था. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच मजबूत गठबंधन हुआ था.


2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटें जीतीं थी, जबकि समाजवादी पार्टी सिर्फ 47 सीट पर सिमट गई थी. कांग्रेस को सिर्फ 7 सीटें मिली थीं. 2017 में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन बुरी तरह फ्लॉप रहा था. हालात ये थे कि हार के बाद दोनों ने एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ा था लेकिन 2024 में राहुल -अखिलेश की केमिस्ट्री ने तो कमाल किया ही दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच भी गजब का तालमेल नजर आया.


अखिलेश-राहुल की जोड़ी को लिया जा रहा सीरियसली


जानकार मानते हैं कि कांग्रेस का समर्थन लेकर, अखिलेश यादव 2027 में यूपी की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं. इसके साथ ही, अखिलेश का टारगेट अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देना है. यूपी में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है और मुस्लिम वोट उनके पक्ष में लामबंद हैं लेकिन महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में मुसलमानों का झुकाव कांग्रेस की तरफ है. यूपी में भी मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ लौट रहा है. ऐसे हालात में राहुल और अखिलेश यूपी में बीजेपी से मुकाबला कर सकते हैं. यही वजह है कि बीजेपी यूपी को दो लड़कों के सियासी अटक को सीरियसली ले रही हैं.