नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की दो प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के 'अप्रत्यक्ष गठबंधन' ने लोकसभा उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल कर बीजेपी को सकते में डाल दिया है. जिन सीटों पर एसपी-बीएसपी ने जीत दर्ज की है एक गोरखपुर है जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है. वहीं दूसरी फूलपुर जहां से प्रदेश बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य सांसद रहे और उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद इस्तीफा दिया.


दरअसल, पिछले दिनों बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने अपनी करीब 23 साल पुरानी दुश्मनी भुलाकर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी का साथ देने का ऐलान किया था और इसका फायदा समाजवादी पार्टी को खूब मिला. यही वजह रही की जीत हासिल करते हुए एसपी प्रमख अखिलेश यादव मायावती के दर पहुंचे जहां मायावती ने खुद 'बबुआ' की आगवानी की. अखिलेश ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी और गुलदस्ता देते हुए 'प्रणाम बुआ' कहा. अखिलेश-मायावती के बीच करीब 45 मिनट तक बातचीत हुई. इस दौरान राजधानी लखनऊ की गलियों में 'बुआ-बबुआ जिंदाबाद' के नारे गूंजते रहे.


गेस्ट हाउस कांड भूलेंगी मायावती?

उपचुनाव के दौरान बीजेपी अखिलेश-मायावती को 1995 में हुए लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाते रहे. दरअसल, 1995 में बीएसपी ने एसपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. गुस्साए एसपी कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के गेस्ट हाउस में मायावती के साथ बदसलूकी की. ये दूरी इतनी बढ़ी की पिछले करीब 23 सालों में कभी भी मायावती ने समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात तक नहीं की. अब दोनों पुरानी दुश्मनी को भुला चुके हैं.


IN DEPTH: सिर्फ आंकड़ों से समझिए, 2019 में बीजेपी के लिए खतरे की घंटी


अब खबर है कि अखिलेश यादव उपचुनाव में मदद का रिटर्न गिफ्ट देंगे. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, अखिलेश-मायावती ने मुलाकात के दौरान 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर कोई बात नहीं की हालांकि दोनों ने मुलाकात के दौरान सिर्फ राज्यसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनाई. अखिलेश के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती मायावती के उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने की है, जो आसान नहीं है. राज्यसभा चुनाव में बीएसपी ने भीमराव आंबेडकर को उम्मीदवार बनाया है.


राज्यसभा चुनाव के लिए क्या है वोटों का समीकरण?


यूपी में राज्यसभा की 10 सीटों के लिए 23 मार्च को चुनाव है. बीजेपी ने 9 उम्मीदवार उतारकर अखिलेश-मायावती का सारा समीकरण बिगाड़ दिया है. यूपी की 10 राज्यसभा सीटों पर बीजेपी के 8 उम्मीदवारों का जीतना तय माना जा रहा है लेकिन पार्टी सिर्फ इतने से संतुष्ट नहीं है. इसलिए बीजेपी ने अपने 9वें उम्मीदवार के तौर पर गाजियाबाद में कई शिक्षण संस्थान चलाने वाले अनिल अग्रवाल को भी मैदान में उतार दिया. बीजेपी के इस दांव का मतलब समझने के लिए आपको राज्यसभा चुनाव का गणित समझना होगा.


DETAIL: 40 मिनट की मुलाकात में अखिलेश और मायावती के बीच क्या बात हुई?


यूपी में एक राज्यसभा सीट के लिए 37 विधायकों के वोट जरूरी हैं. बीजेपी के पास कुल 324 विधायक हैं यानी 8 सदस्यों के चुने जाने के बाद भी उसके पास 28 वोट ज्यादा होंगे. वहीं नौवीं सीट पर 47 विधायकों वाली समाजवादी पार्टी की जीत तय है. अपने उम्मीदवार को जिताने के बाद समाजवादी पार्टी के पास भी 10 वोट ज्यादा है. अब असली लड़ाई 10वीं सीट की है जिसके लिए बीएसपी ने अपने उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर को उतारा है. लेकिन यूपी में बीएसपी के सिर्फ 19 विधायक ही हैं. ऐसे में एसपी के 10 और कांग्रेस के 7 विधायकों के साथ बीएसपी के कुल 36 वोट हो जाएंगे.


एसपी के बागी बढ़ा सकते हैं मुश्किल


समाजवादी पार्टी से अलग हो चुके नरेश अग्रवाल पहले ही अपने बेटे का वोट बीजेपी को देने की बात कर चुके हैं. अब सबकी नजर समाजवादी पार्टी के शिवपाल यादव और उनके समर्थक विधायकों पर होगी, अगर वो पार्टी लाइन से अलग हटकर वोट करते हैं तो बीजेपी 10वीं सीट जीते या न जीते बीएसपी के लिए अपनी एक सीट निकालना भी मुश्किल हो जाएगा.


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