नजूल भूमि विधेयक: सीएम योगी के ड्रीम प्रोजेक्ट पर बीजेपी का ब्रेक, अब क्या होगा?
BJP On Nazul Land Bill: योगी आदित्यनाथ के पिछले सात साल के कार्यकाल में ये पहला मौका है, जब योगी आदित्यनाथ को बैकफुट पर आना पड़ा है. लेकिन क्या योगी बैकफुट पर रहेंगे.
Nazul Land Bill: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक ड्रीम प्रोजेक्ट पर बीजेपी ने ही ब्रेक लगा दिया है. और ये ऐसा वाकया है, जिसने फिर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार के इकबाल पर सवाल खड़े कर दिए हैं. तो आखिर हुआ क्या है उत्तर प्रदेश में, जिसे योगी आदित्यनाथ के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है. आखिर सीएम योगी के सामने ये नौबत आई ही क्यों कि सियासी दुश्मन तो छोड़िए, उनके अपने भी उनके साथ गैरों जैसा व्यवहार करने लगे हैं और अब इस चुनौती से उबरने के लिए योगी आदित्यनाथ का अगला कदम क्या होगा?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की विधानसभा में एक विधेयक पेश किया था. विधेयक नजूल की ज़मीन से जुड़ा हुआ था, जिसमें योगी सरकार का प्रस्ताव था कि नजूल की ज़मीनों पर सरकार का कब्जा होगा और सरकार उसे सार्वजनिक काम में इस्तेमाल करेगी. इसको लेकर विधानसभा में बीजेपी ही दो धड़ों में बंटी दिखी. बीजेपी के विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह और हर्षवर्धन वाजपेयी ने अपनी ही सरकार के विधेयक का विरोध कर दिया.
इसके अलावा कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी इसका विरोध कर दिया. बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी इस विधेयक का विरोध किया. विपक्ष तो पहले से ही विरोध में था. इसके बावजूद योगी सरकार ने इस विधेयक को विधानसभा से ध्वनिमत से पारित करवा लिया. विधेयक पास हुआ तो योगी सरकार को उम्मीद थी कि अब ये विधानपरिषद से भी पास हो जाएगा.
विधानसभा से पास हुआ बिल विधानपरिषद में अटका
लेकिन विधानपरिषद में इस विधेयक के पेश होने के साथ ही ऐसा हुआ, जिसकी उम्मीद खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी नहीं की थी. हुआ ये कि विधानपरिषद में इस विधेयक को सरकार की तरफ से केशव प्रसाद मौर्य ने पेश किया. अभी विपक्ष का कोई नेता इस विधेयक का विरोध करता, उससे पहले ही इस विधेयक का विरोध बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने ही कर दिया. और भूपेंद्र चौधरी के विरोध का मतलब था कि पूरी बीजेपी ही इस विधेयक के खिलाफ है, क्योंकि भूपेंद्र चौधरी महज एमएलसी ही नहीं हैं बल्कि वो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं.
उन्होंने विरोध तो किया ही किया, विधानपरिषद के सभापति से अनुरोध किया कि विधेयक को प्रवर समिति के पास भेज दिया जाए. तो सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने भूपेंद्र चौधरी की बात को मानते हुए विधेयक को प्रवर समिति को भेज दिया. और जो बिल योगी सरकार ने विधानसभा में आसानी से पास करवा लिया था वो बिल विधानपरिषद में जाकर लटक गया और वो भी विपक्ष की वजह से नहीं बल्कि अपने ही लोगों के विरोध की वजह से. खुद भूपेंद्र चौधरी ने अपने विरोध की वजह भी बताई है.
बाकी योगी सरकार के ही मंत्री और एनडीए के अहम सहयोगी संजय निषाद ने इस विधेयक के लिए योगी आदित्यनाथ के साथ ही अधिकारियों की नीयत पर सवाल खड़े कर दिए हैं और कहा है कि कुछ अधिकारी ऐसे हैं जो सरकार को ऐसे घुमा रहे हैं कि वोटर नाराज हो जाएं.
इसके अलावा एनडीए की एक और सहयोगी, मीरजापुर की सांसद और मोदी सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार को इस विधेयक को तत्काल वापस लेना चाहिए और इस मामले में जिन अधिकारियों ने गुमराह किया है उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए. योगी सरकार के ही मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भी इस विधेयक पर विचार करने की बात कही थी. और आखिरकार योगी सरकार का वो विधेयक लटक गया, जिसे विधानसभा से बाकायदा पास करवा लिया गया था.
पार्टी के अंदर उठाए जा रहे योगी के ऊपर सवाल
अब भले ही बीजेपी के नेता और सहयोगी इस बिल की खामियां गिनाएं, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी चाहे जो वजह बताएं, लेकिन सवाल तो फिर से मौजूं हो ही गया है कि क्या अब उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इकबाल घट गया है. क्योंकि अभी तक यही देखने में आया है कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो चाहा है, वही हुआ है. लेकिन अब योगी आदित्यनाथ पर लगातार सवाल उठ रहे हैं और ये सवाल पार्टी के अंदर से ही उठ रहे हैं, जिसकी अगुवाई उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कर रहे हैं.
पिछले दिनों केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि संगठन सरकार से बड़ा होता है. और ये बयान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में दिया गया था. तब इस बयान को लेकर संगठन बनाम सरकार की लड़ाई पर खूब बातें हुई थीं, लेकिन अब तो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने ही सरकार के विधेयक को रोककर केशव प्रसाद मौर्य की उस बात को साबित कर दिया है कि बीजेपी में तो संगठन सरकार से बड़ा है.
कहीं ये मामला स्क्रिप्टेड तो नहीं?
हालांकि कहने वाले तो ये भी कह रहे हैं कि ये पूरा स्क्रिप्टेड मामला है. और योगी आदित्यनाथ को भी विधानसभा में विधेयक के पास होने के बाद अंदेशा हो गया था कि उनसे गलती हो गई है. और इस विधेयक में ऐसे प्रावधान हैं, जिससे आने वाले दिनों में लाखों लोग तो प्रभावित होंगे ही होंगे, बीजेपी का वोट बैंक भी प्रभावित होगा. लिहाजा इस विधेयक को अभी इस तरह से पास करके कानून नहीं बनने देना है. लिहाजा तय किया गया कि विधानपरिषद में सरकार की ओर से केशव प्रसाद मौर्य इस विधेयक को पेश करें, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी इसे प्रवर समिति को भेजने की सिफारिश करें और सभापति इसे प्रवर समिति को भेज दें. हुआ भी यही है. औऱ बीजेपी चाहती है कि इसका क्रेडिट उसे ही मिले कि उसने किसी के साथ नाइंसाफी नहीं होने दी और वक्त रहते गलती सुधार ली.
सीएम योगी के इकबाल पर सवाल
लेकिन भले ही बीजेपी इस पूरे मामले का क्रेडिट लेना चाहे, भले ही ये कहा जाए कि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही ये पूरी स्क्रिप्ट लिखी थी, लेकिन इस पूरे वाकये ने मुख्यमंत्री के इकबाल पर सवाल तो खड़े किए ही हैं. क्योंकि ये शायद पहला मौका है कि सरकार विधेयक पास करवा दे और जिस पार्टी की सरकार है, उसका ही अध्यक्ष उस विधेयक को रोक दे. बाकी रही-सही कसर तो केशव प्रसाद मौर्य ने पूरी कर ही दी है. अभी गोरखपुर में कद्दावर नेता रहे हरिशंकर तिवारी के गांव में उनकी प्रतिमा वाली जगह पर बुलडोजर चला है, तो केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि 'ये गोरखपुर वाले जानें, ये सरकार का मामला नहीं है. और गोरखपुर वाला कौन है, ये तो उत्तर प्रदेश की राजनीति को जानने वाला बच्चा-बच्चा जानता है.
हिंदू युवा वाहिनी होगी सक्रिय?
ऐसे में सवाल योगी आदित्यनाथ के सामने है कि वो क्या करेंगे. उन्हें विपक्ष को भी जवाब देना है और अपनों की उलझन को भी सुलझाना है. क्योंकि योगी आदित्यनाथ के पिछले सात साल के कार्यकाल में ये पहला मौका है, जब योगी आदित्यनाथ को बैकफुट पर आना पड़ा है. लेकिन क्या योगी बैकफुट पर रहेंगे. और रहेंगे तो कितने दिन, इसका जवाब आने वाले दिनों में मिल जाएगा. क्योंकि पूर्वांचल में एक बार फिर से हिंदू युवा वाहिनी के सक्रिय होने की सुगबुगाहट मिलने लगी है, जिसके मुखिया कभी योगी आदित्यनाथ हुआ करते थे.
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