लखनऊ: एससी-एसटी कानून पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ जारी दलितों के प्रदर्शनों के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अंबेडकर महासभा 'दलित मित्र' से सम्मानित करेगा. लखनऊ में विधानसभा के अंबेडकर महासभा महासभा 14 अप्रैल को एक कार्यक्रम कर रही है. इसी समारोह में योगी 'दलित मित्र' से नवाजे जायेंगे.


दरअसल, विपक्षी दल, दलित संगठन और पार्टी और गठबंधन के कई नेता योगी सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते रहे हैं. 2 अप्रैल को हुए दलित आंदोलन से ठीक पहले रविवार को बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले ने अपनी ही सरकार के खिलाफ राजधानी लखनऊ स्थित काशीराम स्मृति उपवन में 'भारतीय संविधान व आरक्षण बचाओ महारैली का आयोजन' किया.


इस दौरान उन्होंने कहा कि आरक्षण कोई भीख नहीं बल्कि प्रतिनिधित्व का मामला है. अगर आरक्षण को खत्म करने का दुस्साहस किया गया तो भारत की धरती पर खून की नदियां बहेंगी.


2 अप्रैल को भारत बंद (दलित आंदोलन) के दौरान उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर हिंसा हुई थी और 2 लोगों की मौत हो गई. कई अन्य जख्मी भी हो गए.


बीजेपी की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और बीजेपी के पूर्व सांसद रामाकांत यादव भी योगी सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगा चुके हैं. रामाकांत यादव ने पिछले दिनों कहा था, 'पिछड़े और दलितों को फेंका जा रहा है, मैं आज भी अपने दल को कहना चाहता हूं, अगर आप दलितों और पिछड़ों को साथ लेके चलेंगे तो 2019 में संतोषजनक स्थिति बन सकती है.'


छवि सुधारने की कोशिश


दलित विरोधी होने के लग रहे आरोपों के बीच उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने बाबा साहेब भीम राम अंबेडकर की तस्वीर हर सरकारी दफ्तर में लगाने का आदेश दिया था. इसके बाद राज्यपाल राम नाईक की सलाह पर अंबेडकर के नाम में उनके पिता का नाम भी जोड़ दिया गया.


अब यूपी के सरकारी रिकॉर्ड में 'भीमराव रामजी आंबेडकर' लिखा जाता है. दावा है कि इसी नाम से उन्होंने संविधान की कॉपी पर दस्तखत किए थे. अब अंबेडकर महासभा ने सीएम योगी आदित्यनाथ को ‘दलित मित्र’ से सम्मानित करने का फैसला किया है.


बीजेपी के अनुसूचित जाति मोर्चा ने अंबेडकर जयंती से एक दिन पहले सभी शहरों में यात्रा निकालने का फैसला किया है. मायावती की पार्टी बीएसपी ने भी अपनी तैयारी पूरी कर ली है. मायावती खुद लखनऊ के अंबेडकर पार्क में जयंती मनाती रही हैं. लेकिन इस बार मौका कुछ खास होगा.


अखिलेश का साथ


23 सालों बाद दुश्मनी भुला कर बीएसपी और समाजवादी पार्टी साथ हुए हैं. अखिलेश यादव ने इस बार पार्टी के लोगों को सार्वजनिक जगहों पर अंबेडकर जयंती मनाने के लिए कहा है. कांग्रेस पार्टी भी हर जिले में अंबेडकर जयंती मनाएगी.


दरअसल, हाल ही में मायावती के समर्थन से एसपी ने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट बड़े अंतरों से जीत लिए. इस सफलता के बाद एसपी-बीएसपी ने लोकसभा चुनाव साथ लड़ने का फैसला किया है. बीजेपी के लिए एसपी-बीएसपी-कांग्रेस गठबंधन से लड़ना किसी मुश्किल से कम नहीं है. ऐसे में बीजेपी अंबेडकर के बहाने दलितों की हतैषी बताने की कोशिश कर रही है. ताकि मायावती के दलित वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके.


डॉ. भीमराव अंबेडकर दलितों के मसीहा माने जाते हैं. दलित राजनीति अंबेडकर के सिद्धांतों इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. उत्तर प्रदेश में मायावती की दलित पर अच्छी पकड़ रही है. राज्य में 20 प्रतिशत के करीब दलित आबादी है. ऐसे में उनके वोट का खासा असर होता है और सत्ता दिलाने और हटाने में उनकी अहम भूमिका होती है.


यूपी में लोक सभा की 80 सीटें हैं, जिनमें 17 सुरक्षित सीटें हैं. पिछली बार सभी जगहों पर बीजेपी जीत गई. विधानसभा की भी 86 में से 76 सीटें बीजेपी की झोली में चली गई. पिछली बार लोकसभा चुनाव में तो बीएसपी का खाता भी नहीं खुला था. अब राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं ऐसे में सभी की नजर 20 प्रतिशत आबादी पर है.