योगी के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने SC-ST act पर अदालत के फैसले का समर्थन किया
उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने अदालत के फैसले का समर्थन किया है. राजभर ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है क्योंकि इस कानून का भी दहेज उत्पीड़न रोकथाम एक्ट की तरह ही दुरुपयोग किया जाता है और अक्सर बेगुनाह लोग भी इसका शिकार होते हैं.
बलिया: अनुसूचित SC-ST अत्याचार निरोधक एक्ट से जुड़ी सुप्रीम कोर्ट की ताजा व्यवस्था को लेकर आज केन्द्र सरकार द्वारा पुनरीक्षण याचिका दाखिल किये जाने के बीच उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने अदालत के फैसले का समर्थन किया है. राजभर ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है क्योंकि इस कानून का भी दहेज उत्पीड़न रोकथाम एक्ट की तरह ही दुरुपयोग किया जाता है और अक्सर बेगुनाह लोग भी इसका शिकार होते हैं.
उन्होंने कहा कि इस एक्ट के तहत मजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारी की जांच के बाद ही किसी मामले का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिये. जो दोषी हैं, उन्हीं के खिलाफ कार्रवाई हो. सुप्रीम कोर्ट की नयी व्यवस्था को लेकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा पुनरीक्षण याचिका दाखिल किये जाने पर राजभर ने कहा, ‘‘वोट के लिये कुछ भी किया जा सकता है. सारा काम इसी के लिये हो रहा है.‘‘
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते 20 मार्च को दिये गये एक आदेश में एससी-एसटी कानून के तहत तुरन्त गिरफ्तारी और फौरन मुकदमा दर्ज किये जाने पर रोक लगा दी थी. इसे लेकर आज विभिन्न संगठनों ने ‘भारत बंद‘ का आह्वान किया है.
एसपी-बीएसपी गठबंधन को लेकर पूछे गये सवाल पर राजभर ने कहा कि बीजेपी अगर उनका सुझाव स्वीकार कर ले तो यह गठबंधन बेअसर साबित हो जाएगा. उन्होंने दावा भी किया कि एसपी-बीएसपी गठबंधन 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी और सहयोगी दलों के सामने टिक नहीं पाएगा.
विवाद क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद दलित समुदाय में नाराजगी है. सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी. सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत की व्यवस्था दी. 7 दिनों के अंदर शुरूआती जांच पूरा करने का आदेश दिया है. दलित एक्ट के तहत गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की अनुमति जरूरी कर दी गई. सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी के लिए उच्च अधिकारी की अनुमति जरूरी है. दलित संगठन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं.