लखनऊ: यूपी लोकसभा उपचुनाव में हार के बाद से ही योगी आदित्यनाथ की सरकार डैमेज कंट्रोल में जुट गयी है. फोकस दलितों और पिछड़ी जाति पर है. भीमराव अंबेडकर का नाम बदल कर भीमराव रामजी अंबेडकर कर दिया गया. योगी सरकार ने सभी सरकारी दफ्तरों में बाबा साहेब की तस्वीर लगाने के आदेश दिए हैं. अंबेडकर जयंती पर 14 अप्रैल को दलित बस्तियों में फ्री बिजली कनेक्शन देने की तैयारी है.
सबसे दिलचस्प मुख्यमंत्री ऑफिस से जारी एक रिपोर्ट है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि दलित और पिछड़े समाज के अफसरों को योगी राज में बड़ी जिम्मेदारी दी गयी है. बीजेपी की सहयोगी पार्टियां अपना दल और सुहेलदेव समाज पार्टी इनकी अनदेखी करने का आरोप लगाती रही हैं. इसके जवाब में ही यूपी सरकार ने महत्वपूर्ण पदों पर तैनात दलित और पिछड़े अफसरों का ब्यौरा दिया है.
प्रमुख गृह सचिव अरविन्द कुमार दलित समाज से आते है. समाज कल्याण आयुक्त से लेकर नगर विकास विभाग के सचिव पद पर भी दलित आईएएस अधिकारी तैनात हैं. गोरखपुर के दावा शेरपा और बरेली के एडीजी प्रेम प्रकाश दोनों ही दलित समाज से हैं. वाराणसी, आजमगढ़ और मिर्ज़ापुर के आईजी और डीआईजी भी इसी वर्ग के हैं.
वहीं कानपुर, फ़िरोज़ाबाद, सुल्तानपुर, रायबरेली और गाजीपुर समेत कई ज़िलों में तैनात एसपी और एसएसपी भी दलित जाति के हैं. 75 में से नौ जिलों के डीएम भी दलित आईएएस अधिकारी हैं. 18 मंडलों में से तीन के कमिश्नर दलित और चार मंडलों में पिछड़े समाज के कमिश्नर तैनात किये गए हैं. सीएम ऑफिस में दो विशेष सचिव नितीश कुमार और आदर्श सिंह भी पिछड़ी जाति के आईएएस अफसर हैं.
राज्य सभा चुनाव से पहले अपना दल के अध्यक्ष आशीष पटेल ने थानेदार से लेकर डीएम तक दलितों और पिछड़े अधिकारियों को तैनात करने का मुद्दा उठाया था. इस पार्टी के यूपी में नौ विधायक हैं. सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर की भी यही मांग रही है. इस बात को लेकर वे कई बार अपनी ही सरकार का विरोध कर चुके हैं. समाजवादी पार्टी और बीएसपी के गठबंधन के बाद से ही योगी सरकार सामाजिक समीकरण साधने की जुगत में है.