UP Election 2022: इस महीने के अंत तक अमित शाह यूपी में बीजेपी के लिए चाणक्य के रोल में आ जाएंगे. यानि गृह मंत्री चुनावी रणनीति की कमान संभाल लेंगे. दो दिनों के लखनऊ दौरे में अमित शाह चुनाव को लेकर पार्टी की तैयारी पर मंथन करेंगे. अलग-अलग पांच बैठकें रखी गई हैं. लेकिन पहले एजेंडे पर है सदस्यता अभियान. बीजेपी नए मेंबर बनाने के लिए कैम्पेन शुरू कर रही है. इस बार बीजेपी यूपी में सत्ता बचाने के लिए लड़ रही है. जबकि पिछली बार ये लड़ाई चौदह साल के वनवास के बाद सत्ता में आने की थी.
2017 में हुए चुनाव के दौरान अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष थे. तब उन्होंने कई तरह के प्रयोग किये थे. उनका हर दांव सुपर हिट रहा. सामाजिक समीकरण से लेकर शमशान और कब्रिस्तान तक. अखिलेश यादव और मायावती की पार्टी के कई बड़े नेताओं को बीजेपी में शामिल कराया. जिसका नतीजा ये रहा कि बीजेपी की प्रचंड बहुमत से सरकार बनी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीत का सेहरा अमित शाह के सर बांध दिया था.
एक बार फिर अमित शाह के सामने बहुत बड़ी चुनौती है यूपी में बीजेपी की जीत का रोडमैप बनाने की. ये काम उन्होंने शुरू कर दिया है. 29 अक्टूबर को अमित शाह लखनऊ पहुंच रहे हैं. अपने पिछले दौरे में उन्होंने मिर्ज़ापुर में विंध्याचल कॉरिडोर का शिलान्यास किया था. इस बार के दौरे में उन्हें यूपी विजय की नींव रखनी है. पांच साल में यूपी में हालत बहुत बदल चुके है. चुनावी राजनीति के खेल और उसके नियम भी बदले है.
पिछली बार अखिलेश सरकार के खिलाफ लोगों ने बीजेपी को झोली भर कर वोट दिए थे. इस बार बीजेपी को अपने काम के नाम पर वोट मांगना है. हिंदुत्व का एजेंडा अलग है और जातियों का सामाजिक समीकरण भी. ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी की साथ छोड़ दिया है तो संजय निषाद की पार्टी की एन्ट्री अब एनडीए में हो चुकी है.
बीजेपी इसी महीने के आखिर में अपना सदस्यता अभियान शुरू कर रही है. पार्टी के पास अभी 2.5 करोड़ सदस्य हैं. पार्टी का लक्ष्य 4 करोड़ सदस्य बनाने का है. मतलब ये है कि अभी करीब 1.5 करोड़ नए मेंबर बनाने होंगे. अमित शाह ने पहला टास्क यूपी के बीजेपी नेताओं को यही दिया है. यूपी में करीब 15 करोड़ वोटर हैं. पार्टी का मानना है कि अगर चार करोड़ मेंबर बना लिए गए तो इनसे जुड़े परिवार के सदस्य मिला कर सात - आठ करोड़ लोग बीजेपी वाले हो सकते हैं. ऐसा होने पर करीब 50 प्रतिशत वोटर पार्टी के समर्थक हो जायेंगे.
अमित शाह के पास दूसरी सबसे बड़ी चुनौती ही सबसे बड़ा सिरदर्द है. ये काम है बेकार हो चुके विधायकों का टिकट काटना. वैसे विधायक जिनको चुनाव लड़ाने पर पार्टी हार सकती है. कहा जा रहा है कि ऐसे नेताओं के खिलाफ उनके इलाके में ऐंटी इंकम्बेंसी लहर है. उनके विधान सभा क्षेत्र के वोटर उनसे नाराज़ हैं. पर ऐसे विधायकों का टिकट काटना समझिये किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है.
ऐसे सभी नेताओं के अपने अपने सरंक्षक भी हैं जो या तो बीजेपी से हैं या फिर आरएसएस में हैं. कई तो अभी से अपनी टिकट बचाने की लॉबिंग में जुट गए है. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक़, पार्टी अलग अलग तरीके से कई सर्वे करा चुकी है. इन सर्वे के आधार पर कम से कम 125 विधायकों की छुट्टी हो सकती है. कुछ ज़िलें तो ऐसे भी हैं जहां किसी भी विधायक को फिर टिकट मिलने की संभावना ज़ीरो के बराबर है.