सरकार ने दिया चूल्हा और बिजली, महंगाई की मार ने छीनी सुविधाएं, किसान त्रस्त, पढ़ें मिर्जापुर की खास रिपोर्ट
UP Election 2022: केंद्र सरकार ने चूल्हा दिया और राज्य की योगी सरकार ने बिजली दी, लेकिन इस बढ़ती महंगाई ने फिर गोबर के उपले से चूल्हा जलाकर घर चलाने पर मजबूर कर दिया.
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UP Election 2022: आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियां एड़ी से चोटी तक जोर लगा रही हैं. उत्तर प्रदेश में फिलहाल बीजेपी और समाजवादी पार्टी की सीधी लड़ाई सबको दिख रही है. अखिलेश यादव भी बीजेपी और मुख्यमंत्री योगी पर प्रहार कर रहे हैं. वहीं, बीजेपी ने भी अब सीधे निशाने पर समजावादी पार्टी को ले लिया है. बात करें मिर्जापुर की तो पुराना शहर होने के बाद भी यह विकास के मामले में अभी पिछड़ा हुआ है. यहां के किसान और लोग महंगाई से परेशान हैं. हालांकि, मिर्जापुर से बीजेपी विधायक रत्नाकर मिश्रा कहते हैं कि 2017 के मुकाबले इस बार बहुत कम मुद्दे हैं. वहीं, मिर्जापुर की एक मात्र महिला विधायक सुष्मिता मौर्य का कहना है कि पिछले सरकारों द्वारा अधूरे कामों को पूरा करने में काफी समय लगा.
मिर्जापुर के लोग महंगाई से परेशान हैं. मिर्जापुर जिले के कई घरों में गैस होने के बावजूद लोग चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हैं. केंद्र सरकार ने चूल्हा दिया और राज्य की योगी सरकार ने बिजली दी, लेकिन इस बढ़ती महंगाई ने फिर गोबर के उपले से चूल्हा जलाकर घर चलाने पर मजबूर कर दिया. चिंता देवी की सबसे बड़ी चिंता महंगाई की मार है. चुनाव सामने है, लेकिन इस चूल्हे के धुएं के सामने सब धुंधला है. चिंता देवी कहती हैं, "गैस बहुत महंगी हो गई है इसलिए गैस का इस्तेमाल नहीं करते हैं और खाना चूल्हे पर ही बनाते हैं. हमे इस चूल्हे के कारण धुआं भी बहुत लगता है. हम धान और गेहूं काटते हैं और उसी से घर चलता है. उसी के पैसे से हम बच्चों को पढ़ाते हैं और घर का खर्च भी चलते हैं."
पूजा कुमारी कहती हैं, "गैस सिलेंडर का दाम 1,000 रुपये हो गया है और हम हम इतनी गैस नहीं ले पा रहे हैं. बिजली मुफ्त किया गया, तो हम लोगों ने इंडक्शन ले लिया. अब इंडक्शन का बिल बहुत आने लगा, तो हम चूल्हा का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधा का भी फायदा नहीं मिल रहा है. हमें गैस और बिजली मिली है, इसके अलावा कुछ नहीं मिला है. हमें घर नहीं मिला है. उपले बनाने से बहुत बचत हो जाती है और जो उपले बच जाते हैं उसको बेच देते हैं."
अंजिला कुमारी का कहती हैं, "केंद्र सरकार ने चूल्हे के धुएं से होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए गैस की योजना तो बना दी, लेकिन गैस सिलेंडर के दाम इतने बढ़ा दी कि घर में दो वक्त का खाना उपले से ही बनता है, क्योंकि महंगा होने के चलते हम गैस नहीं भरवा पा रहे हैं, इसलिए अब हम फिर से चूल्हे पर आ गए हैं. महंगाई इतनी बढ़ गई है कि हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं."
महंगाई की मार से त्रस्त हैं किसान
मिर्जापुर के किसान महंगाई से परेशान हैं. इनकी समस्या खेतों में सिंचाई के लिए पानी से शुरू होती हैं और खत्म घर पर 40 किलो धान से पूरे साल परिवार का पेट भरने की लाख नाकामयाब कोशिशों पर होती है. किसान खेतों में खून पसीना एक करके धान का उत्पादन कर पूरे देश का पेट भरता है, लेकिन उसके पास खुद के खाने के लिए कुछ नहीं बचता.
खेतो में धान काटती पारवती ने अपने दुःख को साझा करते हुए कहा, "धान काट कर एक क्विंटल तक मिल जाता है. उसी से साल भर का खाने का इंतजाम हो जाता है. मंगाई इतनी है कि सरकार ने गैस सिलेंडर दी, लेकिन गैस के दाम बढ़ने से हम उसे भरवा ही नहीं पा रहे हैं. चार बच्चे हैं. मुझे उनको पढ़ाना लिखाना भी मुश्किल हो रखा है. हम गरीब आदमियों के लिए बच्चों को पढ़ा कर आगे बढ़ाना भी मुश्किल है. इतनी महंगाई है कि गुजरा ही नहीं हो रहा. मजदूरी में ही पूरा दिन निकल जाता है."
योजनाओं का फायदा नहीं मिल पाता
अंधीप कुमार सिंह पटेल करते हैं, "सरकार की योजनाएं बहुत अच्छी है, लेकिन इन योजनाओं को किसान तक समय पर पहुंचाने के लिए एक पूल की तरह काम करने की जरूरत है. सरकार गरीब और किसान पर जितना खर्च करती है उन योजनाओं का फायदा नहीं मिल पाता है. सरकार को गांव में आकर एक बार देखना चाहिए कि वे जो योजना बनाई है उसका फायदा कितना मिल रहा है. मजदूरों को 2 रुपये किलो चावल मिल तो रहा है, लेकिन वो मजदूरों के पास पहुंच रहा है या नहीं. सरकार की जो तमाम योजनाएं हैं उससे किसान को कितना मिल रहा है यह सरकार को देखना चाहिए. हम चाहते हैं कि इसकी पूरी सूचि बनाई जाए. किसानों से एफिडेविट लिया जाए कि आपने धान बेचा और कितने में बेचा."
राजेंद्र प्रसाद शास्त्री की माने तो खेतो की फसलों का सही दाम नहीं मिलता है. वे कहते हैं, "पहली समस्या सिंचाई के लिए पानी, दूसरी समस्या खाद की, तीसरी समस्या धान पैदा कर लिए तो अब इसको बेचने की. हमको सही भाव नहीं मिलता है. व्यापारी हमसे औने-पौने दाम में लेते हैं और ले जाकर सरकारी जहां भ्रष्टाचार का आलम मचा हुआ है वहां पूरे एमएसपी के रेट पर दाम लेंगे. "
यह समस्या केवल एक की नहीं, बल्कि मिर्जापुर के सभी किसानों का यही कहना है कि योजनाओं से कुछ नहीं होगा, जब तक उसका लाभ नहीं मिल जाता है. वहीं, दुरश्यंग सिंह पटेल ने बताया, " यहां गाय का आतंक इतना है कि अरहर और सरसो की फसल बर्बाद हो रही है. दूसरी समस्या यह है कि बिजली के दाम सरकार बहुत बढ़ा रही है. अगर उसको कम करे तो हमे राहत मिले. डीजल पर सब्सिडी भी दे. किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने जाते हैं, तो बैंक वाले काफी चक्कर लगवाते हैं. बैंक वाले किसान क्रेडिट कार्ड पर जबरदस्ती बीमा ले लेते हैं. इससे हमे उसका कोई लाभ नहीं मिलता है. फसल नुकसान हो जाती है. शिकायत करने के बाद भी कुछ नहीं मिलता है."
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