सिराथू विधानसभा सीट: दलितों के भी नेता बन चुके हैं केशव! बीते एक दशक के आंकड़े कुछ ऐसी ही देते हैं बानगी
उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले की सिराथू विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश सरकार के मौजूदा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य खुद चुनावी मैदान में हैं. इसीलिए, इस सीट की खूब चर्चा भी हो रही है.
उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले की सिराथू विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश सरकार के मौजूदा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य खुद चुनावी मैदान में हैं. इसीलिए, इस सीट की खूब चर्चा भी हो रही है. यह प्रदेश की हॉट सीटों में गिनी जा रही है. ऐसे में अगर इस सीट को बीते एक दशक के माध्यम से देखें तो केशव प्रसाद मौर्य यहां के दलितों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब नजर आते हैं और शायद इसीलिए पार्टी ने उन्हें यहां से चुनावी मैदान में उतारा होगा. दरअसल, इस सीट को बसपा का गढ़ माना जाता था और केशव प्रसाद मौर्य ही वह नेता हैं, जिन्होंने 2012 में यहां बसपा के तिलिस्म को तोड़ कर जीत दर्ज की और संदेश दिया कि वह दलितों के अपने साथ जोड़ने में सफल रहे हैं.
2012 से 2022 में क्या स्थिति बदली
यहां सबसे बड़ी चुनौती दलितों को साथ लाने की ही है. पहले बसपा इस काम को बखूबी करती आई थी. इसीलिए, लंबे समय तक इस सीट को बसपा की पक्की सीट माना जाता रहा था लेकिन 2012 के बाद से यहां बसपा चुनाव नहीं जीती है. 2012 में केशव ने चुनाव जीता और फिर 2017 में जब वह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे, तब उनके गृह जनपद कौशांबी में भाजपा ने जिले की तीनों सीटों पर जीत हासिल की. बता दें कि बता दें कि सिराधू विधानसभा सीट पर लगभग 60 हजार पासी वोटों के साथ करीब 90 हजार दलित वोट हैं. वहीं, जिले की अन्य चायल और मंझनपुर विधानसभा सीट पर करीब एक-एक लाख दलित वोटर हैं.
पटेल वोटरों के लिए अनुप्रिया पटेल से कराया प्रचार
लेकिन, पहले से कमजोर रही समाजवादी पार्टी इस बार यहां से दम भर रही है. समाजवादी पार्टी ने यहां से केशव के सामने अपने टिकट पर पल्लवी पटेल को चुनाव मैदान में उतारा है. ऐसे में पलेट वोटों के कटने की संभावना देखी जा रही है लेकिन अब भाजपा ने दांव चला और पल्लवी पटेल के खिलाफ तथा केशव प्रसाद मोर्य के समर्थन में प्रचार के लिए अनुप्रिया पटेल को उतार दिया. अनुप्रिया पटेल ने हाल ही में यहां मोर्य के समर्थन में प्रचार किया. ऐसे में पटेल वोटरों में असमंजस की स्थिति हो सकती है कि दो बहनों में से किसका साथ दें.
हालांकि, बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा ने तब पटेल समुदाय को अपने साथ जोड़ने का काम किया था, जब उसने पटेल समुदाय के शीतला प्रसाद पटेल को चुनाव मैदान में उतारा था. शीतला प्रसाद पटेल ने भाजपा के लिए सीट पर जीत भी दर्ज की थी. हालांकि, फिर भी पल्लवी पटेल के आने से पटेल वोटरों पड़ने वाले प्रभाव को पूरी तरह से नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है, जिसकी भरपाई के लिए भाजपा की नजर पासी, सोनकर और कोरी सहित दलित समुदाय पर होगी. भाजपा इन्हें अपने साथ मानकर चल रही है.
क्या दलितों को साथ जोड़ने की पहले से थी प्लानिंग?
दरअसल, दलित समुदाय को लेकर भाजपा यहां पहले से तैयार थी. शायद इसीलिए, बीजेपी नें कौशांबी के सांसद विनोद सोनकर को राष्ट्रीय सचिव बनाकर समाज को प्रतिनिधित्व दिया है. इसके अलावा उपरगामी सेतु का नामकरण पासी साम्राज्य के आखिरी राजा बिजली पासी के नाम पर किया गया है. ऐसे में लगता है भाजपा पहले से इस स्थिति के लिए तैयार थी.
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