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पत्रकार सिद्दीक को हाथरस में हिंसा भड़काने की साज़िश का हिस्सा मान रही है यूपी सरकार, रिहाई की मांग का किया विरोध

5 अक्टूबर को दिल्ली से हाथरस जा रहे हैं चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था. उनके नाम हैं- सिद्दीक कप्पन, अतीक उर रहमान, आलम और मसूद. इनमें से सिद्दीक केरल की एक वेबसाइट के लिए काम करने वाले पत्रकार हैं.

नई दिल्ली: क्या हाथरस मामले की आड़ में यूपी में बड़े पैमाने पर हिंसा की साजिश रची जा रही थी? उत्तर प्रदेश सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा यह दावा करता है. राज्य सरकार ने पत्रकार सिद्दीक कप्पन की रिहाई की मांग करने वाली याचिका का विरोध करते हुए यह जवाब दाखिल किया है.

5 अक्टूबर को दिल्ली से हाथरस जा रहे हैं चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था. उनके नाम हैं- सिद्दीक कप्पन, अतीक उर रहमान, आलम और मसूद. इनमें से सिद्दीक केरल की एक वेबसाइट के लिए काम करने वाले पत्रकार हैं. उनकी रिहाई के लिए केरल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन नाम की संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है.

16 नवंबर को याचिकाकर्ता के तरफ से वकील वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में यह दावा किया था कि सिद्दीक को अवैध तरीके से हिरासत में लिया गया था. उनके परिवार को गिरफ्तारी की सूचना नहीं दी गई. मथुरा जेल में बंद सिद्दीक को वकील से भी नहीं मिलने दिया जा रहा है. इस वजह से वह अपनी जमानत के लिए याचिका दाखिल करने में सक्षम नहीं है. सुप्रीम कोर्ट उनकी रिहाई का आदेश दे.

इस याचिका पर कोर्ट के नोटिस का जवाब देते हुए यूपी सरकार ने सभी दलीलों को गलत बताया है. राज्य सरकार ने बताया है कि 5 अक्टूबर को दिल्ली से एक स्विफ्ट डिजायर गाड़ी में हाथरस जा रहे चार लोगों को बहुत ही संदिग्ध परिस्थितियों में मथुरा पुलिस ने हिरासत में लिया था. इनके पास से भारी मात्रा में पोस्टर और दूसरी भड़काऊ प्रचार सामग्री मिली थी. इन लोगों को बकायदा कोर्ट में पेश किया गया. इसके बाद न्यायिक हिरासत में भेजा गया. इसलिए, इनकी हिरासत को अवैध बताने का दावा गलत है.

यूपी सरकार ने हलफनामे में यह भी कहा है कि असल में सिद्दीक विवादित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के कार्यालय सचिव हैं. उन्होंने पत्रकार होने की आड़ ले रखी है. केरल के जिस अखबार तेजस का पहचान पत्र को बतौर पत्रकार दिखाते हैं, वह 2018 में ही बंद हो चुका है. उनके साथ गिरफ्तार किए गए बाकी तीनों लोग पीएफआई के छात्र संगठन केंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के सक्रिय सदस्य हैं. अब तक हुई जांच में मामले में गहरी साजिश के सबूत मिल रहे हैं. पूरे इलाके को जातीय हिंसा की आड़ में झोंकने की साजिश रची गई थी. इसलिए, चारों आरोपियों पर हिंसा भड़काने और राजद्रोह की धाराओं के अलावा यूएपीए की धाराओं में भी मुकदमा दर्ज किया गया है.

राज्य सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जिरह करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दावे को भी झूठा बताया कि सिद्दीक को अपने परिवार या वकीलों से नहीं मिलने दिया जा रहा है. मेहता ने कोर्ट को बताया कि हिरासत के तुरंत बाद सिद्दीक के परिवार को फोन के जरिए पूरी जानकारी दी गई. उसने 3 बार अपने परिवार के लोगों से फोन पर बात भी की है. लेकिन अब तक कोई मिलने नहीं आया है. उनके साथ गिरफ्तार बाकी तीनों लोगों ने वकील के जरिए जमानत याचिका दाखिल की. जिसे कोर्ट ने खारिज किया. ऐसे में यह कहना कि आरोपियों को वकील से मिलने की इजाजत नहीं है, एक झूठा दावा है.

तुषार मेहता ने कहा कि जब आरोपी को अपने वकील से मिलने से नहीं रोका जा रहा है, तो वह खुद ही उपयुक्त कोर्ट में अपने लिए जमानत याचिका दाखिल कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट को किसी और संस्था की याचिका पर विचार नहीं करना चाहिए. इस पर चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने कपिल सिब्बल से सवाल पूछा. कोर्ट ने कहा, “जब आरोपी खुद याचिका दाखिल करने में सक्षम है, तो आप लोगों ने याचिका क्यों दाखिल की है?”

सिब्बल ने यूपी सरकार के जवाब को गलत करार दिया. उन्होंने कहा कि अभी तक सिद्दीक कप्पन को वकील से नहीं मिलने दिया गया है. इस पर मेहता ने कहा कि आज ही कोई वकील चाहे तो जाकर उनसे मथुरा जेल में मुलाकात कर सकता है. वकालतनामे पर दस्तखत ले सकता है. न तो पहले इस पर कोई रोक थी, न अब कोई पाबंदी है.

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के की तरफ से दिए गए इस बयान को रिकॉर्ड पर लिया और सुनवाई 1 हफ्ते के लिए टाल दी. अगले हफ्ते अगर कोर्ट इस बात पर संतुष्ट होता है कि सिद्धीक कप्पन के कानूनी अधिकारों का हनन नहीं किया जा रहा है. उन्हें वकील के जरिए अपने लिए खुद याचिका दाखिल करने से नहीं रोका जा रहा है, तो वह केरल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की याचिका का निपटारा कर सकता है.

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