नई दिल्ली: विकास दुबे एनकाउंटर मामले में यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर जानकारी दी है कि जांच निष्पक्ष तरीके से करवाई जा रही है. 14 जुलाई को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद एनकाउंटर की तरह इस मामले की जांच के लिए भी आयोग बनाने की मंशा जताई थी. लेकिन यूपी सरकार ने कहा है कि यह मामला हैदराबाद केस से बिल्कुल अलग है. इसमें पुलिस की भूमिका असंदिग्ध है. यूपी सरकार ने भी नियमों का पूरा पालन किया है.
यूपी सरकार के हलफनामे में कहा गया है :-
- विकास कुख्यात गैंगस्टर था. उस पर 64 मामले दर्ज थे.
- 2 जुलाई की रात उसे पकड़ने पहुंची पुलिस टीम पर पूरी योजना बनाकर उसने हमला करवाया. 80-90 बदमाशों ने पुलिस टीम पर हमला किया.
- 8 पुलिस वालों को मार दिया गया. सर्कल ऑफिसर को मारने के बाद उनका पैर भी काटा गया. विकास अपनी दहशत फैलाना चाहता था.
- घटना के बाद सब फरार हो गए. अगले दिन विकास के घर से भारी मात्रा में हथियार मिले, जिन्हें दीवारों और छत पर छेद बना कर छुपाया गया था. इनकी तलाश के दौरान जब बिल्डिंग कमज़ोर हो गई और आगे की तलाश सुरक्षित नहीं रही, तब जेसीबी से मकान को गिराना पड़ा.
- बाद में विकास के कई सहयोगियों को पकड़ा गया. अमर दुबे समेत उसके कुछ सहयोगियों ने गिरफ्तारी की कोशिश के दौरान पुलिस टीम पर हमला किया.
- जवाबी गोलीबारी में उनकी मौत हुई.
- विकास दुबे ने आत्मसमर्पण नहीं किया था. बल्कि उसे उज्जैन पुलिस ने पकड़ा था.
- ग्वालियर में मौजूद यूपी एसटीएफ की टीम ने उज्जैन जाकर उसे अपने कब्जे में लिया. बाद में गुना में दूसरी टीम ने उसे अपने साथ लिया. इसलिए गाड़ी बदल गई.
- उज्जैन से गुना तक वह UP 32BG 4485 नंबर की गाड़ी में था. वहां से आगे UP 70AG 3497 नंबर की TUV में.
- 3 गाड़ियों के एस्कॉर्ट में 15 पुलिसकर्मी थे. विकास को 2 कॉन्स्टेबल के बीच में बैठाया गया था. इसलिए, हथकड़ी नहीं लगाई गई थी.
- कानपुर से 25 किलोमीटर पहले भारी बारिश और सड़क पर मवेशियों के आ जाने के चलते गाड़ी पलट गई. विकास ने पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन ली और भागने लगा. उसे समर्पण करने के लिए कहा गया. लेकिन वह गोलियां चलाता रहा.
- गोली चलाने के दौरान वह जब पुलिस टीम के तरफ मुड़ा था, तभी उसे पुलिस की 3 गोलियां लगीं.
- यह कहना गलत है कि वह पैर में रॉड लगी होने के चलते भागने में सक्षम नहीं था. वह पूरी तरह से सक्षम था.
- घटनास्थल से 2 किमी पहले मीडिया की गाड़ियों को रोकने का आरोप गलत है. वह गाड़ियां चेक पॉइंट पर लगे जाम में फंस गई थीं. घटना के तुरंत बाद 2 चैनलों की टीम वहां पहुंच गई.
- पूरे मामले में पुलिस टीम की भूमिका असंदिग्ध रही है. फिर भी मामले की जांच के लिए न सिर्फ एसआईटी का गठन किया गया है, बल्कि हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमेटी भी बनाई गई है.
- एसआईटी और न्यायिक आयोग मामले के अलग-अलग पहलुओं की जांच कर इसकी तह तक पहुंचने में लगे हैं. विकास को अब तक संरक्षण देने वाले लोगों का पता लगाया जा रहा है.
इस मामले की सुनवाई सोमवार, 20 जुलाई को होनी है. चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच मामले की जांच के लिए आयोग के गठन का संकेत दे चुकी है. ऐसे में इस हलफनामे के ज़रिए यूपी सरकार ने कोशिश की है कि उसकी तरफ से करवाई जा रही जांच ही जारी रहे.