Govt Tells In Parliament About UP Jail Inmates: उत्तर प्रदेश की जेलों में 24 फीसदी कैदी दलित और 45 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रहे. ये बात सरकार ने 2021 के आंकड़ों का हवाला देते हुए संसद में बताई. दरअसल राज्य मंत्री (MoS) अजय कुमार मिश्रा ने संसद में एक सवाल के जवाब में ये आंकड़े पेश किए. ये सवाल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सदस्य श्याम सिंह यादव ने पूछा था.
ताकि जेलों में बेवजह न रहें कैदी
राज्य मंत्री मिश्रा ने कैदियों के कल्याण के लिए किए गए अन्य उपायों को सूचीबद्ध करते हुए बताया कि 2021 तक, यूपी राज्य में 90,606 अंडरट्रायल कैदी थे, जिनमें से 21,942 एससी समुदाय के थे, 4,657 एसटी समुदाय के थे और 41,678 ओबीसी वर्ग के थे. इस दौरान सरकार ने विचाराधीन कैदियों को जेल में सड़ने से रोकने के लिए की गई पहलों के बारे में भी जानकारी दी.
इसके साथ ही उन्होंने इस तरफ भी ध्यान दिलाया कि केंद्र सरकार ने मॉडल प्रिज़न मैनुअल 2016 (Model Prison Manual 2016) प्रसारित किया है और ये राज्य सरकारों की जिम्मेदारी और जवाबदेही है कि इस बारे में राज्यों में जागरूकता बढ़ाएं. इसके तहत उन सुविधाओं के बारे में बताया जाता है जो विचाराधीन कैदियों को दी जाती हैं. इनमें अंडर ट्रायल कैदियों की कानूनी मदद के साथ ही याचिका के लिए सौदेबाजी जैसी सुविधाएं शामिल हैं.
दरअसल बीएसपी सांसद श्याम सिंह यादव ने जेलों में कैदियों के बारे में चिंता जताई थी, जिसमें उनके परीक्षण, जेलों की भीड़भाड़ और वंचित सामाजिक-आर्थिक समूहों से संबंधित कैदियों के मामले शामिल थे, जो मुकदमे का इंतजार कर रहे थे.
'ई-जेल सॉफ्टवेयर है मददगार'
गृह मंत्रालय ने संसद में बताया, “ई-जेल सॉफ्टवेयर, एक जेल मैनेजमेंट एप्लीकेशन है. ये इंटरऑपरेबल आपराधिक न्याय प्रणाली के साथ जुड़ा है जो राज्य में जेल अधिकारियों को कैदियों के डेटा को तेजी और कुशल तरीके से एक्सेस करने की सुविधा देता है, जिससे उन्हें उन कैदियों की पहचान करने में मदद मिलती है जिनके मामले विचाराधीन समीक्षा समिति के विचार के लिए बकाया हैं.“
बसपा सांसद ने आगे गृह मंत्रालय से जेल में संचारी रोगों (Communicable Diseases) के प्रसार में स्पाइक के बारे में पूछा, क्योंकि लॉकडाउन के बाद के वक्त में गिरफ्तारियों में बढ़ोतरी देखी गई. इस पर जवाब देते हुए मंत्रालय ने जवाब दिया कि राज्य सरकारें जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के मुद्दे से निपटने में सक्षम हैं.
मंत्रालय ने कहा कि राज्य सरकार ने जरूरत और आवश्यकता के अनुसार जेल के कैदियों को समायोजित करने के लिए अतिरिक्त बैरकों और अतिरिक्त जेलों के लिए पर्याप्त प्रावधान किए हैं. मंत्रालय ने ये भी कहा, "राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों ने जेलों में कानूनी सेवा क्लीनिक स्थापित किए हैं, जो जरूरतमंद व्यक्तियों को मुफ्त कानूनी मदद देते हैं." भारत की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट (2021) के मुताबिक, 5,54,034 कैदियों में से 4,27,165, (76%) विचाराधीन कैदी थे. इसी रिपोर्ट से जेलों में भीड़भाड़ की स्थिति का पता चलता है
गृह मामलों के मंत्रालय ने संसद को बताया कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) जेलों में मुफ्त कानूनी मदद देने, प्ली बार्गेनिंग, लोक अदालतों और कैदियों के जमानत के अधिकार सहित उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए शिविर भी लगाता है.
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