लखनऊ: यूपी लोकसभा उपचुनाव में मायावती की पार्टी बीएसपी अखिलेश यादव के समाजवादी पार्टी का समर्थन करेगी. अब सवाल है कि ठीक 23 साल बाद बीएसपी और समाजवादी पार्टी कैसे क़रीब आये? बुआ और भतीजे में बात बनी तो कैसे? किसने पहले किसको फोन किया? दो कट्टर विरोधियों ने बिना हाथ मिलाए मन कैसे मना लिया? इस बात का ख़ुलासा अखिलेश यादव ने ही कर दिया. गोरखपुर में मंच से उतरने के बाद वे बोले, “ बीएसपी से समझौते की पहल मैंने की थी.”


23 फ़रवरी को पहली बार बातचीत का माहौल बना


बीएसपी के एक सांसद ने बताया कि 23 फ़रवरी को पहली बार बातचीत का माहौल बना. समाजवादी पार्टी के एक सीनियर नेता ने पहल की. बात आगे बढ़ी. मामला गोरखपुर और फूलपुर में हो रहे लोकसभा उपचुनाव का था. समाजवादी पार्टी चाहती थी कि बीएसपी उनके उम्मीदवारों का समर्थन करें. बीएसपी पिछले नौ साल से उपचुनाव नहीं लड़ती है.


मायावती ने ख़ुद एसपी और बीएसपी के समझौते की एलान किया


बीएसपी के नेताओं ने बात अपने सुप्रीमो मायावती तक पहुंचाई. बहनजी ने कहा, “अगर वे लोग इतने सीरियस हैं तो फिर अखिलेश सीधे बात करें.'' ऐसा ही हुआ. एसपी अध्यक्ष ने बीएसपी के मुखिया से लंबी बातचीत की. मायावती ने उपचुनाव में समर्थन के बदले राज्य सभा के चुनाव में समर्थन मांग लिया. अखिलेश यादव तैयार हो गए. जब तक डील पक्की नहीं हो गई, सारी बातें गोपनीय रखी गईं. दीवार के भी कान होते हैं, इस फ़ार्मूले पर समझौते को लेकर भेंट मुलाक़ात होती रही. जब खिचड़ी पक गई तब गोरखपुर और फूलपुर में बीएसपी नेताओं को मीटींग करने का आदेश हुआ. इधर लखनऊ में भी मायावती ने ख़ुद एसपी और बीएसपी के समझौते की एलान किया. इस दौरान अखिलेश यादव समेत एसपी के सभी नेता ख़ामोश रहे.


बीएसपी से भीमराव अंबेडकर और एसपी से जया बच्चन राज्य सभा उम्मीदवार


बीएसपी से भीमराव अंबेडकर और एसपी से जया बच्चन राज्य सभा की उम्मीदवार होंगी, ये भी काफ़ी पहले ही तय हो गया था. क़रीब दस दिनों पहले ही भीमराव को लखनऊ और कानपुर का ज़ोनल कोऑर्डिनेटर बनाया गया था. इस से पहले वे इटावा में गुमनामी की ज़िंदगी जी रहे थे. इसीलिए उन्हें एक बड़ी ज़िम्मेदारी देने का मायावती का फ़ैसला किसी की समझ में नहीं आया. लेकिन बहनजी तो सब तय कर चुकी थीं. इस बात की जानकारी अखिलेश यादव को भी थी. समाजवादी पार्टी जया बच्चन को टिकट दे रही है, इस बात की ख़बर मायावती को भी थी.


मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव थे बेखबर


बेख़बर थे तो मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव. व्यक्तिगत तौर पर अखिलेश यादव ने मायावती के बारे में कभी बुरा नहीं कहा. वे मायावती के मना करने पर भी हमेशा उन्हें बुआ ही कहते रहे. लोकसभा के उपचुनाव में वोट ट्रांसफ़र कराना बीएसपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. मायावती का वोटर ईवीएम में हाथी निशान ढूंढेगा. नहीं मिलने पर वो अपनी मर्ज़ी से बटन दबायेगा. बीएसपी के नेता गांव-गांव जाकर अब कैसे समझाएं कि वोट साइकिल को देना है. इसीलिए बहनज़ी ने अपनी पार्टी के छोटे बड़े नेताओं को इस काम में लगा दिया है. वे बड़ी गंभीरता से एसपी नेताओं को जिताने में जुटी हैं.


फूलपुर और गोरखपुर के नतीजों से तय होगी मायावती-अखिलेश यादव की दोस्ती


फूलपुर और गोरखपुर के नतीजों से मायावती और अखिलेश यादव की दोस्ती की क़िस्मत तय होगी. अगर जीते तो फिर 2019 के चुनाव तक साथ साथ चलने को तैयार हो जाएं. लेकिन हारे तो फिर समझिए दोनों के रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं. कांग्रेस से गठबंधन के बावजूद हारने के बाद अखिलेश यादव का मन पार्टी नेताओं को लेकर खट्टा गो गया है. वैसे बीएसपी और एसपी, दोनों ही पार्टियों के अधिकतर नेता गठबंधन के पक्ष में हैं. ताकतवर बीजेपी से बचने का इसके अलावा और कोई तरीक़ा नहीं है.