UP Madarsa News: उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड ने कहा है कि वह राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के तहत गैर-मुस्लिम बच्चों को प्रवेश देने वाले पंजीकृत मदरसों की जांच नहीं करेगा, क्योंकि इससे मुस्लिम और गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच विभाजन हो सकता है.


बता दें कि दिसंबर में वैधानिक बाल अधिकार निकाय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र भेजकर उन सभी पंजीकृत मदरसों की विस्तृत जांच करने को कहा था, जिनमें गैर-मुस्लिम छात्र पढ़ते हैं. तर्क यह था कि मदरसे मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं और माता-पिता की सहमति के बिना गैर-मुस्लिम बच्चों को धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए बाध्य करना संविधान के अनुच्छेद 28(3) का उल्लंघन होगा.


'समुदायों के बीच विभाजन नहीं होने देंगे'


हालांकि, बुधवार (18 जनवरी) को मदरसा शिक्षा बोर्ड ने बैठक में इसे "खारिज" करने का फैसला किया.  बोर्ड के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद ने ईटी को बताया, "हमने अपने पंजीकृत मदरसों में जांच नहीं करने का फैसला किया है. हम मुसलमानों और गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच विभाजन नहीं होने देंगे, क्योंकि यह बीजेपी के सबका साथ सबका विकास के सिद्धांत के खिलाफ है. मिशनरी स्कूलों में भी गैर ईसाई छात्र पढ़ रहे हैं." 


'मदरसे दे रहे आधुनिक शिक्षा'


उल्लेखनीय है कि एनसीपीसीआर के अध्यक्ष- प्रियंका कानूनगो, जिन्होंने पत्र भेजा था और बोर्ड अध्यक्ष जावेद दोनों बीजेपी के सदस्य हैं. जावेद ने कहा कि मदरसे आधुनिक शिक्षा दे रहे हैं और छात्र विज्ञान और गणित भी पढ़ रहे हैं और अगर गैर-मुस्लिम छात्रों को धार्मिक ग्रंथ भी पढ़ाए जा रहे हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है.


'मैंने गीता भी पढ़ी है'


जावेद ने कहा, "दूसरे धर्म के ग्रंथों का अध्ययन करने में क्या हर्ज है? मैंने गीता भी पढ़ी है. इसके अलावा, बच्चों के माता-पिता अपनी मर्जी से अपने बच्चों को संस्थानों में भेज रहे हैं." अध्यक्ष ने कहा कि पत्र दिसंबर में भेजा गया था, लेकिन बोर्ड को 12 जनवरी को मुख्य सचिव के कार्यालय से प्राप्त हुआ, जिसे बोर्ड के फैसले के बारे में सूचित किया जाएगा.


NCERT पाठ्यक्रम होगा लॉन्च


बैठक में पंजीकृत मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को चरणबद्ध तरीके से लागू करने के साथ-साथ बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण की तर्ज पर मदरसों में शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का भी निर्णय लिया गया, ताकि प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके.


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